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डेटा बेस प्रमाण रखने की प्रधानमंत्री की सलाह का स्‍वागत किया डॉ गिरीश गुप्‍ता ने

-आयुष पद्धतियों से इलाज करने वाले चिकित्‍सकों को उपचार का डेटा रखने की सलाह दी थी प्रधानमंत्री ने

-डॉ गिरीश ने कहा, वर्ष 1993 से रख रहा हूं डेटा, इसीलिए साबित कर सका होम्‍योपैथी से इलाज की वैज्ञानिकता

डॉ गिरीश गुप्‍ता

सेहत टाइम्‍स  

लखनऊ। राजधानी लखनऊ स्थि‍त गौरांग क्‍लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्‍योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के संस्‍थापक व चीफ कंसल्‍टेंट डॉ गिरीश गुप्‍ता ने प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के आयुष चिकित्‍सा पद्धतियों से उपचार के शोध के डेटा बेस प्रमाण रखने की सलाह का स्‍वागत करते हुए आयुष पद्धतियों से उपचार को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री के प्रति अपना आभार व्‍यक्‍त किया है। आपको बता दें कि डॉ गुप्‍ता ने विभिन्‍न प्रतिष्ठित जर्नल्‍स में प्रकाशित अपने दर्जनों शोधों से अनेक जटिल रोगों का सफल उपचार करके देश-विदेश में अपना लोहा मनवाया है।

इस बारे में ‘सेहत टाइम्‍स’ से बात करते हुए डॉ गुप्‍ता ने कहा कि साक्ष्‍य आधारित उपचार के प्रति लोगों में विश्‍वास दृढ़ होता है जो कि आज के युग में और भी ज्‍यादा प्रासंगिक है, क्‍योंकि आज झूठ और सच के दावे को साक्ष्‍य की कसौटी पर ही परखा जा सकता है, खासतौर से स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़े मामले में लोगों को जब तक विश्‍वास नहीं होता है तब तक वे कदम नहीं बढ़ाते हैं। उन्‍होंने कहा कि प्रधानमंत्री आयुष पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए जो कदम उठा रहे हैं वे निश्चित ही इन पद्धतियों के जन-जन तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्‍त करेंगे।

उन्‍होंने कहा कि इस विषय में मेरा स्‍पष्‍ट मत है कि जब तक हम किसी के सामने सफल उपचार के साक्ष्‍य नहीं रखेंगे तब तक हम अपने दावे को पुख्‍ता नहीं कर सकेंगे। उन्‍होंने अपने द्वारा किये जाने वाले होम्‍योपैथिक उपचार के बारे में कहा कि मैं स्‍वयं पहले उपचार का डेटा नहीं रखता था लेकिन डॉक्‍यूमेंटेशन का महत्‍व 1993 में उन्‍हें पहली बार तब पता चला जब उनके सीनियर डॉ नरेश अरोरा के द्वारा ठीक‍ किये गये फायब्रायड के चार केस के बारे में एशियन होम्‍योपैथिक जर्नल में छपा, इसके बाद मैंने डॉक्यूमेंटेशन शुरू किया। इसका नतीजा यह हुआ कि अनेक प्रकार के रोगों पर किये गये उनके दर्जनों शोधों को राष्‍ट्रीय-अंतर्राष्‍ट्रीय जर्नल्‍स ने प्रकाशित किया। उन्‍होंने कहा कि साक्ष्‍य रखने का एक लाभ यह भी हुआ कि जो लोग होम्‍योपैथिक दवाओं को प्‍लेसबो करार देते थे, उनको भी जवाब मिल सका। 

स्‍त्री रोगों, त्‍वचा रोगों व एक्‍सपेरिमेंटल रिसर्च पर तीन पुस्‍तकें लिखी हैं डॉ गुप्‍ता ने

ज्ञात हो डॉ गिरीश गुप्‍ता ने जो रिसर्च की हैं, उनके बारे में उन्‍होंने अब तक तीन किताबें भी लिखी हैं, इनमें पहली किताब एवीडेंस बेस्‍ड रिसर्च ऑफ होम्‍योपैथी इन गाइनीकोलॉजी (Evidence-based Research of Homoeopathy in Gynaecology) है, इसमें यूट्राइन फायब्रॉयड, ओवेरियन सिस्‍ट, पॉलिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम, ब्रेस्‍ट लीजन्‍स, नेबोथियन सिस्‍ट, सर्वाइ‍कल पॉलिप जैसे स्‍त्री रोगों के होम्‍योपैथिक दवाओं से उपचार पर की गयी रिसर्च का डेटा सहित विस्‍तार से वर्णन किया गया है।

दूसरी किताब एविडेंस बेस्ड रिसर्च ऑफ होम्योपैथी इन डर्मेटोलॉजी Evidence-based Research of Homoeopathy in Dermatology है। इसमें ल्‍यूकोडर्मा (सफेद दाग), सोरियासिस (इसमें लाल परतदार चकत्‍ते हो जाते हैं), एलोपीशिया एरियटा (इसमें बाल झड़ने लगते हैं), लाइकिन प्‍लेनस (इसमें त्‍वचा पर बैंगनी कलर के दाने हो जाते हैं), वार्ट (वायरल इन्‍फेक्‍शन), मोलस्‍कम कॉन्‍टेजियोसम (वायरल इन्‍फेक्‍शन) तथा माइकोसेस ऑफ नेल (नाखूनों में फंगस इन्‍फेक्‍शन) के मरीजों पर की गयी रिसर्च का डेटा है।

तीसरी पुस्‍तक “एक्सपेरिमेंटल होम्योपैथी”  Experimental Homoeopathy है। इसमें सीडीआरआई, एनबीआरआई जैसी प्रतिष्ठित  सरकारी प्रयोगशालाओं में की गयीं रिसर्च के 16 शोध पत्रों का संकलन है। ये शोध पत्र रोगजनक वायरस तथा फंगस (Black and White Fungus etc.) पर होम्योपैथिक औषधियों के प्रभाव तथा होम्योपैथिक औषधियों पर विभिन्न प्रतिबंधित खाद्य पदार्थों जैसे प्याज, लहसुन, कॉफी आदि के प्रभाव को दर्शाते हैं।

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