बुरे व्यवहार को छुड़वाने के लिए उसके कारणों को जानें, सख्ती न करें : डॉ निरुपमा पाण्डेय
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। अच्छे और बुरे बच्चे नहीं होते हैं, अच्छा और बुरा व्यवहार होता है, इसलिए जरूरी यह है कि बच्चा अगर बुरा व्यवहार कर रहा है तो उसे सजा देने के बजाय, यह जानने की जरूरत है कि वह ऐसा क्यों कर रहा है। माता-पिता के साथ टीचर्स को भी बच्चों के व्यवहार के कारणों के पीछे जाना चाहिये। उसे सकारात्मक तरीके से अनुशासित करना चाहिये। उन्हें ढंग से समझाने की जरूरत है। इसमें बच्चे से रोज की डायरी लिखाना एक अच्छा कदम हो सकता है। उन्होंने कहा कि जब बच्चा डायरी लिखेगा तो उसे समझ में आ जायेगा कि कब उसने क्या काम किया, उन काम में कितने अच्छे थे कितने बुरे। उन्होंने बताया कि एक टीचर ने बच्चे के साथ यही किया। जिससे उसकी बुरी आदतें खत्म हो गयीं।
यह बात बाल रोग विशेषज्ञ डॉ निरुपमा पाण्डेय ने रविवार को हजरतगंज स्थित एक होटल में एडोल्सेंट हेल्थ एकेडमी के तत्वावधान में आयोजित सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) में अपने प्रेजेन्टेशन में कही। उन्होंने कहा कि आजकल बच्चों विशेषकर लड़कों में अनुशासनहीनता, हिंसा की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, अध्यापिकाओं को भी बच्चों से यही शिकायत है। डॉ निरुपमा ने कहा कि व्यवहार की तह में जाना चाहिये, जैसे अगर वह मारपीट कर रहे हैं तो यह जानने की कोशिश करें कि क्या उसके अंदर हीनभावना है या कुछ और। उन्होंने कहा कि बहुत से बच्चे होते हैं जो चाहते हैं कि उन पर ध्यान दिया जाये, तो इस लिए वे ऐसी हरकतें करते हैं जिससे लोगों का ध्यान उन पर जाये।
डॉ निरुपमा ने बताया कि बहुत से बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं, इसमें यह देखा गया है कि आत्महत्या करने से पहले वे इसका संकेत देते हैं, ऐसी बातें करते हैं तो उसको हल्के में नहीं लेना चाहिये बल्कि ध्यान दें कि वह ऐसा क्यों कह रहा है। इसके विपरीत बहुत से लोग यह सोच लेते हैं कि बच्चा ऐसी बात इसलिए कह रहा है जिससे उस पर ध्यान दिया जाये, लेकिन जब बच्चा आत्महत्या कर लेता है तो उन्हें समझ में आता है कि बच्चा सही कह रहा था।
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एक अन्य विषय जेन्डर सेंसेटाइजेशन ऑफ मेल पर डॉ निरुपमा ने बताया कि सामाजिक भेदभाव दूर करने के लिए लड़कों को समझाया जाना चाहिये कि लड़का और लड़की में कोई भेद नहीं है। उन्होंने कहा कि दरअसल बहुत बार ऐसा होता है कि लड़कियों को डांट दिया जाता है, लड़कों को नहीं, या कोई फैसला लेना होता है तो पुरुष लेते हैं। इन सामाजिक पहलुओं का असर बच्चों पर पड़ता है। इसमें बदलाव लाने के लिए यह जरूरी है कि किशोरावस्था से ही लड़कों को यह समझाया जाये कि लड़का और लड़की बराबर हैं। उन्हें जब बचपन से ही यह सिखाया जायेगा तो बड़े होकर वे महिला की इज्जत करना, उन्हें बराबरी का दर्जा दे पायेंगे।