लक्षण लम्बे समय तक रहें तो दिखाना चाहिये पेट रोग विशेषज्ञ को
लखनऊ। इन्फ्लामेट्री बॉवेल डिजीजेस यानी आईबीडी दो प्रकार की होती है पहली अल्सरेटिव कोलाइटिस दूसरी क्रॉह्न्स डिजीज। इस बीमारी में शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति ही शरीर के सेल्स के विरुद्ध कार्य करने लगती है, इसका इलाज अभी नहीं खोजा जा सका है सिर्फ इस पर नियंत्रण रखा जा सकता है। चिंता की बात यह है कि इसकी पहचान सिर्फ कोलोनोस्कोपी से ही की जा सकती है लेकिन कोलोनोस्कोपी की सुविधा पूरे उत्तर प्रदेश में सिर्फ कुछ मेडिकल संस्थानों में ही है। यहां तक कि जिला अस्पतालों तक में यह सुविधा नहीं है।
वर्ल्ड आईबीडी डे पर शनिवार को यहां किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय स्थित शताब्दी अस्पताल के गैस्ट्रोइन्ट्रोलॉजी विभाग में केजीएमयू के असिस्टेंट प्रोफेसर सुमित रूंगटा और एसजीपीजीआई के एसोसिएट प्रोफेसर अभय वर्मा ने पत्रकार वार्ता में इस बीमारी के लक्षणों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि अगर लम्बे समय तक पतले दस्त आयें, स्टूल में खून आये, वजन कम हो रहा हो, पेट दर्द, हल्का बुखार, आयरन की कमी हो तो किसी पेट रोग विशेषज्ञ को जरूर दिखायें।
चिकित्सकों ने बताया कि एक लाख लोगों में 45 लोगों में यह बीमारी होती है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इसके बारे में जैसे-जैसे लोगों में जागरूकता बढ़ रही है वैसे-वैसे इसकी संख्या में इजाफा हो सकता है क्योंकि फिलहाल पंजाब और हरियाणा में पूर्व में हुई स्टडी में यह संख्या सामने आयी थी।
उन्होंने बताया कि आईबीडी होने के कारणों में कई चीजें शामिल हैं, जैसे जैनेटिक, लाइफ स्टाइल, खानपान विशेषकर धूम्रपान और तम्बाकू के सेवन से होना पाया गया है। उन्होंने सलाह दी कि लोगों को फाइबरयुक्त भोजन करना चाहिये जैसे कि फल, मोटा अनाज आदि। चिकित्सकों ने बताया कि इस बीमारी के इलाज के लिए पहले तो दवा बहुत महंगी आती थी लेकिन अब जब से भारत में यह दवा बनने लगी है तब भी 20 से 25 हजार रुपये प्रतिमाह की दवा आ जाती है। उन्होंने बताया कि इसके अतिरिक्त एक अल्टरनेटिव थैरेपी है फीकल माइक्रोबैक्टीरिया ट्रांसप्लांट एफएमटी, इसमें हम दूसरे व्यक्ति के फीकल से अच्छे बैक्टीरिया लेकर रोगी की आंतों में प्रत्यारोपित कर देते हैं।