-कामकाजी महिलाओं के लिए स्तनपान एक चुनौती विषय पर यूनिसेफ की राय
सेहत टाइम्स
लखनऊ। कामकाजी महिलाओं के लिए स्तनपान कराना एक बड़ी चुनौती है। यह चुनौती जरूर है लेकिन यदि इसमें घर के दूसरे सदस्यों का सहयोग मिले तो इतना मुश्किल भी नहीं है। यह कहना है यूनिसेफ़ उत्तर प्रदेश के पोषण अधिकारी डॉ रवीश शर्मा का।
इस समय विश्व स्तनपान सप्ताह (1 से 7 अगस्त) चल रहा है। शिशुओं के स्वास्थ्य पर फोकस रखने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था यूनिसेफ भी स्तनपान को लेकर जागरूक कर रही है। डॉ रवीश कहते हैं कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2020 के अनुसार, भारत में 20.33 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं हैं। इनमें से केवल 40% कामकाजी माताएं ही अपने बच्चे को 6 महीने तक स्तनपान और 2 साल तक के पूरक भोजन के साथ विशेष रूप से स्तनपान करा पाती हैं।
डॉ शर्मा कहते हैं कि कामकाजी महिलाओं (जिन्हें बच्चों को छोड़ कर घर के बाहर जाना पड़ता है) के लिए मां अपना दूध निकाल कर स्टोर करना एक बेहतर विकल्प हो सकता है। एक्सप्रेस ब्रेस्ट मिल्क को कमरे के तापमान पर 4 से 6 घंटे तक और फ्रिज में 24 घंटे तक सुरक्षित रखा जा सकता है। शिशुओं को यह दूध नियमित अंतराल पर परिवार के किसी भी व्यक्ति द्वारा साफ़ कटोरी चम्मच दिया जा सकता है।
नौकरीपेशा महिलाओं के लिए अपने बच्चे को स्तनपान करवाना एक बड़ी चुनौती है। कार्यस्थलों पर अनुकूल माहौल की ग़ैरमौजूदगी से लेकर स्तनपान के लिए समुचित सुविधाओं का अभाव इस दिशा में सबसे बड़ी बाधा है। इसकी वजह से जहां माताएं अपने बच्चों को समुचित स्तनपान नहीं करा पातीं, वहीं उनका कामकाज भी प्रभावित होता है।
सार्वजनिक स्थानों पर भी स्तनपान कॉर्नर की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि माँ अपने शिशु को स्तनपान करा सके। अक्सर इन सुविधाओं की कमी के कारण मां शिशु को बोतल का दूध देना प्रारम्भ कर देती हैं। यदि स्तनपान कराने के लिए हर स्थान पर उचित व्यवस्था हो तो मां बिना किसी परेशानी के शिशु का स्तनपान जारी रख सकती है।
डॉ रवीश शर्मा कहते हैं कि स्तनपान हर बच्चे का अधिकार है। कार्यालयों, संस्थानों आदि को इस बारे में संवेदनशील करने की ज़रूरत है ताकि कामकाजी महिलाएं अपने बच्चों को समुचित स्तनपान करवा पाएं। यदि दफ्तर स्तनपान कराने वाली माताओं की ज़रूरत के हिसाब से सुविधाजनक कार्यस्थल में बदल दिए जाएं और वहां क्रेच, ब्रेस्टफीडिंग कक्ष आदि की व्यवस्था हो तो महिला कर्मचारियों की कार्य क्षमता में तेज़ी आ सकती है। संस्थानों की तरफ़ से हर रोज़गार और कामकाज की जगह पर महिलाओं के लिए अपने नवजात बच्चे को स्तनपान कराने की व्यवस्था होनी चाहिए। स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए, पिता के लिए भी अवकाश का प्रावधान होना चाहिए ताकि पिता भी स्तनपान कराने में मां का सहयोग कर सके।