-विश्व निमोनिया दिवस (12 नवम्बर) पर केजीएमयू के पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर विभाग ने आयोजित की प्रेस वार्ता
सेहत टाइम्स
लखनऊ। आजकल चल रहे मौसम में श्वास के रोग होने की संभावना बढ़ जाती है, इसकी वजह हवा में सूखापन है, क्योंकि नमी वाली हवा की अपेक्षा सूखी हवा में वायरस आसानी से सांस की नली के सहारे शरीर में प्रवेश कर जाता है। सांस के रोगों में एक रोग है निमोनिया, जो कि पांच वर्ष तक के बच्चों और बुजुर्गों में ज्यादा पाया जाता है। निमोनिया मानव जीवन के लिए एक गम्भीर समस्या है। निमोनिया से बचाव, त्वरित पहचान एवं समय पर इलाज जीवन दान साबित हो सकता हैं। आदर्श स्थिति तो यह है कि निमोनिया को होने से रोका जायेे, इसके लिए बच्चों और बड़ों दोनों के लिए वैक्सीन भी उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि सभी माताओं को शिशु को स्तनपान जरूर कराना चाहिये क्योंकि मां का दूध एक ऐसा प्राकृतिक कवच है जो अनेक प्रकार की बीमारियों को रोकने में कवच का काम करता है। उन्होंने कहा कि निमोनिया होने के लक्षण दिखायी दें तो तुरंत ही अपने चिकित्सक से सम्पर्क स्थापित करना चाहिये, जिससे समय रहते इलाज हो सके।
यह जानकारी पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो वेद प्रकाश ने विश्व निमोनिया दिवस (12 नवम्बर) पर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में देते हुए कहा कि इस वर्ष 2024 विश्व निमोनिया दिवस की थीम है ”हर सांस मायने रखती है : निमोनिया को उसके रास्ते पर रोकें”। यह थीम निमोनिया के प्रारम्भिक पहचान, उपचार और उपयुक्त उपचार से निमोनिया को रोकने की तात्कालिकता पर जोर देती है। उन्होंने बताया कि निमोनिया के इलाज में एंटीबायोटिक की जबरदस्त भूमिका है, लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि इस जानलेवा गंभीर रोग से बचाने में सक्षम एंटीबायोटिक अपना कार्य कर सके, और यह तभी संभव है जब मरीज उस एंटीबायोटिक का इम्यून न हुआ हो, उन्होंने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि कई बार देखा जाता है कि थोड़े से भी बुखार होने पर कथित झोलाछाप डॉक्टर हैवी एंटीबायोटिक दे देते हैं, यही नहीं कुछ मरीज बिना किसी चिकित्सक की सलाह के स्वयं ही एंटीबायोटिक का सेवन करते रहते हैंं, ऐसा करने से वे एंटीबायोटिक के इम्यून हो जाते हैं, यानी स्थिति यह हो जाती है कि जब निमोनिया के इलाज के लिए जब उस एंटीबायोटिक को मरीज को दिया जाता है तो इससे लाभ नहीं होता है। इसलिए मेरी अपील है कि बिना चिकित्सक की सलाह के कभी भी किसी भी रोग में अपने मन से एंटीबायोटिक का सेवन न करें। उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि यदि ध्यान न दिया गया तो एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध के कारण 2050 तक सालाना 1 करोड़ मृत्यु हो सकती हैं, जिसमें निमोनिया एक प्रमुख कारण रहेगा है।
इंन्फ्लूएंजा का हर साल, निमोनिया का पांच साल में लगवायें टीका : डॉ केके सावलानी
प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद मेडिसिन विभाग के प्रो केके सावलानी ने कहा कि निमोनिया में दी जाने वाली हैवी एंटीबायोटिक वर्ष 2017 से भारत सरकार ने (PSV) नियमोकोकल वैक्सीन को यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किया। भारत सरकार का लक्ष्य वर्ष 2030 तक बच्चों में निमोनिया से रोकी जा सकने वाली मृत्यु को समाप्त करना। उन्होंने कहा कि सभी अभिभावकों को चाहिये कि वे यह सुनिश्चित करें कि उनका शिशु का प्रॉपर टीकाकरण हो रहा है अथवा नहीं, चाहे शिशु का जन्म सरकारी अस्पताल में हुआ हो अथवा निजी अस्पताल में। उन्होंने कहा कि बच्चों और बड़ों दोनों इंन्फ्लूएंजा का टीका साल में एक बार और निमोनिया का टीका प्रत्येक पांच वर्ष पर लगवाना चाहिये।
पुरानी बीमारियों से ग्रस्त लोगों को निमोनिया होने का खतरा ज्यादा : डॉ आरएएस कुशवाहा
पत्रकार वार्ता में उपस्थित पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के डॉ आरएएस कुशवाहा ने कहा कि वैश्विक स्तर पर 70 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में लगभग 6 में से 1 मौत का कारण निमोनिया है। अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में, 65 वर्ष अधिक उम्र के लोगों में लगभग 50,000 व्यक्तियों की प्रतिवर्ष निमोनिया से मृत्यु होती हैं। भारत में निमोनिया का आर्थिक बोझ काफी है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया के इलाज से जुड़ी स्वास्थ्य देखभाल की लागत सालाना लगभग ₹3,000 करोड़ होने का अनुमान है।
उन्होंने निमोनिया के जोखिम कारकों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि निमोनिया बैक्टीरिया, वायरस और कवक के कारण हो सकता है। स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया बैक्टीरिया, निमोनिया का सबसे प्रमुख कारण है। जबकि वायरस:- रेस्पिरेटरी सिंकाइटियल वायरस (आरएसवी), इन्फ्लूएंजा और कोरोना वायरस सामान्य वायरल कारक हैं।
कवकः- न्यूमोसिस्टिस जिरोवेसी म्यूकर, एसपरजिलम जैसे फंगल संक्रमण, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले व्यक्तियों में अधिक पाये जाते हैं।
उन्होंने कहा कि पुरानी बीमारियाँ जैसे अस्थमा, हृदय रोग और मधुमेह जैसी बीमारी से ग्रसित व्यक्तियों को निमोनिया होने का खतरा ज्यादा रहता है। पर्यावरणीय कारकों में वायु प्रदूषण, धूम्रपान और निष्क्रिय धुएं के संपर्क में आना, निमोनिया के लिए महत्वपूर्ण कारण हैं। शरीर की प्रतिरक्षा तंत्र को कम करने वाली बीमारियाँ जैसे एचआईवी (एड्स) और कैंसर के उपचार, के लिए इस्तेमाल होने वाली कीमोंथेरेपी एवं स्टेराॅइड के दीर्घकालिक इस्तेमाल से भी प्रतिरक्षा तंत्र के कमजोर होने की वजह से निमोनिया जैसे बीमारियां हो सकती है।
खराब पोषण भी निमोनिया होने का एक कारण : डॉ राजेश यादव
पत्रकार वार्ता में उपस्थित पीडियाट्रिक विभाग के प्रोफेसर राजेश श्रीवास्तव ने कहा कि एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2019 में, पांच साल से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया से लगभग 14 प्रतिशत मृत्यु के लिए निमोनिया जिम्मेदार था। एक अध्ययन के अनुसार अनुमानतः वर्ष 2019 में निमोनिया से 5 वर्ष से कम आयु के लगभग 6 लाख 10 हजार बच्चों की मृत्यु हुई अर्थात् लगभग प्रतिदिन 2000 बच्चों की मृत्यु निमोनिया के कारण हुई थी। भारत में हर साल पांच साल से कम उम्र के बच्चों में गंभीर निमोनिया के लगभग 26 लाख मामले सामने आते हैं, जिनमें से लगभग 8,00,000 मामलों में अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि अनुमान है कि पांच साल से कम उम्र के लगभग 43 लाख बच्चे, ठोस ईंधन के साथ खाना पकाने के कारण होने वाले घरेलू वायु प्रदूषण के हानिकारक स्तर के संपर्क में हैं, जो निमोनिया के लिए एक प्रमुख जोखिम कारक है। यह जोखिम कारक, पांच साल से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया के लगभग 40 प्रतिशत मामलों में योगदान देता है। डॉ यादव ने कहा कि खराब पोषण के कारण कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली से संक्रमण की संभावना बढ़ सकती है।
निमोनिया के लक्षण
* लगातार खांसी रहना
* बुखार और ठंड लगना
*सांस लेने में तकलीफ
*सीने में दर्द
*थकान और कमजोरी
*भ्रम
*भूख न लगना
*निम्न रक्त चाप व ऑक्सीजन स्तर कम होना।