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सतत शल्य चिकित्सा शिक्षा के अंतिम दिन सिखायी यूरो, बेरिएट्रिक व पीडियाट्रिक सर्जरी

-केजीएमयू के स्थापना दिवस पर चल रहे कार्यक्रम में शोध के लिए नैतिक प्रस्ताव का पाठ भी पढ़ाया

सेहत टाइम्स

लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के जनरल सर्जरी विभाग के 113वेें स्थापना दिवस पर आयोजित सतत सर्जिकल शिक्षा कार्यक्रम के चौथे और अंतिम दिन छात्रों को मूत्र संबंधी रोगों, बेरिएट्रिक प्रोसीजर्स, बाल चिकित्सा सर्जिकल रोगों के बारे में सिखाया गया। इसके अतिरिक्त सर्जिकल नैतिकता, सांख्यिकी, अनुसंधान और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बारे में भी छात्रों को बताया गया।

डॉ अपुल गोयल ने मूत्रमार्ग विकारों के बारे में विस्तार से और विभिन्न उपचार विकल्पों के बारे में चर्चा की। डॉ एचएस पाहवा ने पुरुषों में एक बहुत ही आम समस्या प्रोस्टेट रोगों और मूत्र पथ के संक्रमण के बारे में जानकारी दी।
डॉ अरशद अहमद और डॉ संजीव कुमार ने बहुत प्रचलित और परेशान करने वाली बीमारी गुदा भगंदर, बवासीर और फिस्टुला के बारे में विस्तार से चर्चा की। डॉ अवनीश कुमार ने मोटापे की जटिलताओं से बचने के लिए विभिन्न बेरिएट्रिक सर्जरी विकल्पों के बारे में चर्चा की। उन्होंने विभिन्न बेरिएट्रिक प्रक्रियाओं और उनके संकेतों के बारे में भी बताया। उन्होंने बताया कि बैरिएट्रिक सर्जरी वजन घटाने के साथ मधुमेह को बेहतर बनाने में मदद करती है।

प्रो एसएन कुरील, प्रो जेडी रावत और डॉ आनंद पांडे (बाल चिकित्सा सर्जरी विभाग, केजीएमयू) ने विभिन्न बाल चिकित्सा सर्जिकल स्थितियों जैसे हाइपोस्पेडिया, एनोरेक्टल विकृति और वृषण रोगों के प्रबंधन पर एक बहुत ही दिलचस्प चर्चा की। डॉ मनीष ने विभिन्न संस्थानों से आए छात्रों की पोस्टर प्रस्तुति का भी संचालन किया।
डॉ इमरान रिजवी, प्रो हरदीप और डॉ सौम्या सिंह और प्रोफेसर हिमांशु द्वारा अनुसंधान पद्धति और सर्जिकल नैतिकता पर एक अलग सत्र भी लिया गया, इसमें चिकित्सा नैतिकता, सांख्यिकी और अनुसंधान और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बारे में बात की गयी। अंत में सत्र का समापन एक एंडो-प्रशिक्षण कार्यशाला के साथ हुआ, जिसने छात्रों को लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में अपने व्यावहारिक कौशल को बढ़ाने का अवसर दिया। सत्र का संचालन डॉ सौम्या सिंह और डॉ वैभव राज गोपाल ने किया।

विश्वसनीय शोध की नींव है नैतिकता

असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सौम्या सिंह ने “शोध के लिए नैतिक प्रस्ताव कैसे लिखें” विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने सर्जिकल शोध में स्वायत्तता, उपकार, अहानिकरता और न्याय जैसे नैतिक सिद्धांतों के महत्व पर जोर दिया। नूरेमबर्ग ट्रायल और टस्केगी सिफलिस अध्ययन जैसे ऐतिहासिक मामलों से सबक लेते हुए, डॉ. सौम्या ने प्रतिभागियों की सुरक्षा और रोगियों की देखभाल की आवश्यकता पर बल दिया।

उन्होंने आईसीएमआर नैतिक दिशानिर्देश और बेलमोंट रिपोर्ट जैसे महत्वपूर्ण दिशानिर्देशों पर चर्चा की और नैतिक शोध प्रस्ताव तैयार करने, सूचित सहमति प्राप्त करने और डेटा गोपनीयता सुनिश्चित करने पर व्यावहारिक सुझाव दिए। उन्होंने कहा, “नैतिकता विश्वसनीय शोध की नींव है—यह पेशेवर जिम्मेदारी और नैतिक दायित्व दोनों है।”

उन्होंने कहा कि इस अवसर पर, हम नैतिक शोध के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हैं, जो सर्जिकल देखभाल में प्रगति करते हुए प्रतिभागियों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा करता है।

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