एक व्यक्ति ने 38 साल ठोस भोजन का स्वाद चखा.इसकी वजह एक एक्सीडेंट थी जिसके कारण उसका मुंह नहीं खुल पा रहा था. इस व्यक्ति का दुर्भाग्य था कि इसकी माली हालत ठीक न होने के कारण यह अभी तक सर्जरी नहीं करा सका. अंततः एक हॉस्पिटल ने ही उनकी मदद की जिससे उनका ऑपरेशन हो सका. अब उसने धीरे-धीरे ठोस पदार्थ वाला भोजन करना शुरू कर दिया है.
पुणे के राजीव नगर के रहने वाले राजेंद्र पंचाल जब एक साल के थे, तब दुर्घटना के शिकार हो गए। इससे उनको मुंह खोलने में परेशानी आने लगी। इसके बाद धीरे-धीरे उनका मुंह बंद हो गया। मुंह बंद होने से पंचाल खाना नहीं चबा पाते थे और उन्हें पेय पदार्थों और हल्के खाने से काम चलाना पड़ता था। ऐसा करते-करते उन्हें 38 साल बीत गए |
बताया जाता है कि ठोस भोजन नहीं करने की वजह से पंचाल कुपोषण के शिकार हो गए। उनके परिवार की माली हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि वह इसका इलाज करा सकें। हालांकि उन्होंने कई अस्पतालों में इसका इलाज कराया लेकिन सर्जरी के लिए पैसे नहीं थे। पिछले कुछ महीनों से पंचाल के दांतों में तेज दर्द होने लगा। काफी जांच के बाद डॉक्टरों ने पाया कि पंचाल अपना मुंह खोलने में पूरी तरह से असमर्थ है। इससे उनके दांतों तक पहुंच पाना असंभव है |
डॉक्टरों के अनुसार इस तरह के मामलों में चेहरे के जॉइंट खोपड़ी से मिल जाते हैं। कई बार तो मरीज का पूरी तरह से जॉइंट बदलना पड़ता है। इसके लिए बेहद कुशल तरीके से सर्जरी करना पड़ता है। पंचाल के मामले में एमए रंगूनवाला कॉलेज के डॉक्टरों की टीम ने सर्जरी की। इसके परिणामस्वरूप करीब 38 साल बाद पंचाल ठोस भोजन कर सके। वह अब सामान्य जीवन बिता सकेंगे |
मीडिया में आ रही खबर के अनुसार हॉस्पिटल के डॉक्टर अरुण तांबूवाला ने कहा, ‘हमने पंचाल की जांच की और उनके सामाजिक-आर्थिक स्थिति को देखते हुए मैनेजमेंट से बात की और उनका फ्री में सर्जरी किया गया। हालांकि इसके बाद भी समस्या का समाधान नहीं हुआ। उनके सीटी स्कैन और लैब जांच फ्री में हुए लेकिन हमने पाया कि पंचाल का ब्लड ग्रुप ओ नेगेटिव है, जो दुर्लभ है।’
डॉक्टर ने बताया कि इस सर्जरी को संभव बनाने के लिए विभाग के एक छात्र ने ब्लड का पैसा दे दिया। इस सफल सर्जरी के बाद पंचाल को विश्वास हैं कि अभी वह धीरे-धीरे खा पा रहे हैं लेकिन उन्हें पूरी आशा है कि जल्द ही आम आदमी की तरह से खाना खाने लगेंगे. उन्होंने अपने ऑपरेशन के लिए की गयी मदद पर ख़ुशी जताते हुए कहा कि यह बेहद खुशी की बात है कि इस तरह के हॉस्पिटल भी हैं जो सिर्फ पैसे के लिए काम नहीं कर रहे हैं।’ हालांकि यह सरकार के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी संस्थाओं के लिए भी सोचने का विषय है कि कोई व्यक्ति इतने लम्बे समय तक ऐसी सहायता के लिए मोहताज रहे जो उसकी मूलभूत आवश्यकता से जुड़ी है |