-एनआईसीयू में कार्यरत कर्मियों की केजीएमयू में ट्रेनिंग के लिए राज्य संसाधन केंद्र का उद्घाटन
-एफबीएनसी ऑब्जर्वेशन ट्रेनिंग के लिए अब दिल्ली जाने की आवश्यकता नहीं, इसी केंद्र पर हो जायेगी
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। यहां स्थित किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल डॉ बिपिन पुरी ने कहा है कि राज्य में अभी भी जन्म दर बहुत अधिक है और नवजात शिशु के लिए पहला स्वर्णिम मिनट महत्वपूर्ण है, लेबर रूम के भीतर नवजात शिशु के जीवन को बचाने के लिए कर्मचारियों की क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही गर्भावस्था के दौरान मां की देखभाल पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि नवजात शिशुओं का जीवन सुरक्षित रह सके।
कुलपति ने यह बात बाल रोग विभाग में राज्य संसाधन केंद्र के उद्घाटन के मौके पर अपने सम्बोधन में कही। इस केंद्र पर आज से पहले बैच की ट्रेनिंग भी शुरू हो गयी। इसके तहत बीमार नवजात देखभाल इकाइयों में तैनात डॉक्टरों और स्टाफ नर्सों की 2 सप्ताह की एफबीएनसी ऑब्जर्वेशन ट्रेनिंग शुरू की गई है।
सत्र की शुरुआत विभागाध्यक्ष, बाल रोग, प्रोफेसर शैली अवस्थी के स्वागत भाषण से हुई। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की नवजात मृत्यु दर 32 प्रति हजार जीवित जन्म है। जो भारत के 23 प्रति हजार जीवित जन्म की तुलना में काफी अधिक है। 2030 तक 12 प्रति हजार जीवित जन्म के एसडीजी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अस्पताल स्तर पर बीमार नवजात शिशु की देखभाल बहुत जरूरी है।
नोडल अधिकारी, राज्य संसाधन केंद्र प्रो. माला कुमार ने एसएनसीयू में तैनात डॉक्टरों और स्टाफ नर्सों द्वारा कौशल आधारित देखभाल की गुणवत्ता के महत्व पर जोर दिया। राष्ट्रीय सहयोग केंद्र, कलावती सरन और यूनिसेफ के सहयोग से भारत सरकार ने एक व्यापक सुविधा आधारित नवजात देखभाल कार्यक्रम प्रशिक्षण पैकेज विकसित किया है, जिसमें मेडिकल कॉलेज में तृतीयक देखभाल इकाई में 04 दिनों के क्लास रूम प्रशिक्षण के बाद 14 दिनों का पर्यवेक्षक प्रशिक्षण शामिल हैं। बाल रोग विभाग की केजीएमयू संकाय प्रो माला कुमार, प्रो एसएन सिंह एवं प्रो शालिनी त्रिपाठी इस बैच के लिए प्रशिक्षक हैं। इसमे और भी अधिक संकाय जोड़े जाएंगे।
बाल स्वास्थ्य महाप्रबंधक डॉ वेद प्रकाश ने बताया कि राज्य के 69 जिलों में 86 कार्यात्मक एसएनसीयू हैं और 4 दिवसीय एफबीएनसी प्रशिक्षण पूर्व में वीएबी अस्पताल लखनऊ और आईएमएस, बीएचयू लखनऊ में आयोजित किया गया था, लेकिन तब 14 दिनों के लिए पर्यवेक्षक प्रशिक्षण के लिए कलावती सरन अस्पताल, नई दिल्ली जाना पड़ता था। अब राज्य संसाधन केंद्र न सिर्फ एक प्रशिक्षण केंद्र के रूप में कार्य करेगा, बल्कि एसएनसीयू में परामर्श यात्राओं के माध्यम से अंतराल को भरने में भी सहायता करेगा। डॉ. निर्मल सिंह, यूनिसेफ ने आशा के माध्यम से सुविधा और सामुदायिक जुड़ाव पर जोर दिया, जो खतरे के संकेतों की शीघ्र पहचान और पास की सुविधा में बीमार नवजात शिशु के रेफरल में प्रमुख भूमिका निभा सकती हैं।
प्रो उमा सिंह, डीन अकादमिक और प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग हेड ने जोर देकर कहा कि मां और नवजात देखभाल दोनों साथ-साथ चलती हैं और नवजात शिशु की शुरुआती देखभाल नवजात के लिए महत्वपूर्ण है। प्रशिक्षण में लेबर रूम में 02 दिवसीय प्रशिक्षण और पीएनसी वार्ड में 02 दिवसीय प्रशिक्षण भी शामिल होगा और प्रतिभागी सर्वोत्तम अभ्यास सीखेंगे।
अंत में प्रो एस एन सिंह ने प्रतिभागियों सहित सभी गणमान्य व्यक्तियों को धन्यवाद दिया। इस मौके पर एडीशनल प्रोफेसर डॉ शालिनी त्रिपाठी तथा राज्य समन्वयक बाल जीवन रक्षा डॉ प्रमित श्रीवास्तव और अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।