
लखनऊ। प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में एईएस (एक्यूट इन्सेफ्लाइटिस सिन्ड्रोम)/जेई (जापानी इन्सेफ्लाइटिस) रोगियों की विशिष्ट जांच एवं उनके उपचार की व्यवस्था को सुदृढ़ करने के निर्देश दिये हैं। उन्होंने कहा कि वृहद स्तर पर वेक्टर नियंत्रण के लिए फॉगिंग, कीटनाशकों का छिडक़ाव, एन्टीलॉरवा स्प्रे आदि के कार्य प्रभावी रूप से सुनिश्चित किया जाना चाहिए। ताकि इस रोग पर नियंत्रण पाया जा सके। उन्होंने ब्लॉक स्तरीय इन्सेफिलाईटिस ट्रीटमेन्ट सेन्टर (ईटीसी) पर चिकित्सक एवं पैराचिकित्सा कर्मियों की उपस्थिति अनिवार्य रूप से सुनिश्चित करने के भी निर्देश दिये।
ईटीसी पर चिकित्सक एवं पैरा-मेडिकल स्टॉफ की उपस्थिति अनिवार्य
श्री सिंह आज यहां अपने कार्यालय कक्ष में एईएस/जेई की रोकथाम के लिए किये जा रहे कार्यो की समीक्षा कर रहे थे। उन्होंने आजमगढ़, मऊ, गोण्डा, रायबरेली, सीतापुर एवं हरदोई में 10 शैय्या एवं 5 वेंटीलेटर युक्त पीड्रियाटिक आईसीयू की स्थापना के कार्य में तेजी लाने के निर्देश दिये। उन्होंने कहा कि जेई की रोकथाम हेतु प्रदेश के 38 जनपदों में लक्ष्य के सापेक्ष जेई टीकाकरण की शतप्रतिशत उपलब्धि सुनिश्चित की जानी चाहिए। इसके साथ ही स्क्रब टाइफस रोग के उपचार के लिए राज्य के सभी उपचार केन्द्रों पर एजिथ्रोमाइसिन/ डॉक्सीसाइक्लिन एण्टीबायोटिक औषधि की समुचित व्यवस्था पहले से ही सुनिश्चित कर ली जाये।


व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार सुनिश्चित करने के भी निर्देश
स्वास्थ्य मंत्री ने एईएस/जेई की रोकथाम के लिए सरकार द्वारा उठाये जा रहे प्रभावी कदमों का व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार सुनिश्चित करने के भी निर्देश दिये। उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में इस सम्बन्ध में मोबाइल संदेश वाहनों के माध्यम से ऑडियो-विजुअल डिस्प्ले प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, एसएमएस, के माध्यम से और गोष्ठी, रैली और चैपाल में बैठकें आदि करके उनके द्वारा जेई की रोकथाम के लिए ‘‘क्या करें एवं क्या न करें’’ के बारे में जनसाधारण को जागरूक किया जाना चाहिए।
श्री सिंह ने कहा कि एईएस रोग को उत्पन्न करने वाले विभिन्न कारकों की पहचान के लिए सेन्टर फॉर डिजीज कन्ट्रोल अटलान्टा/इण्डिया एवं निम्हांस, बंगलुरू के तकनीकि विशेषज्ञों द्वारा जेई एवं एण्ट्रोवायरस के अतिरिक्त अन्य कारकों की पहचान करने के प्रयास किये जा रहे हैं, जिनकी रिपोर्ट प्रतीक्षारत है। उन्होंने एईएस रोग में जेई रोग की पुष्टि एवं अन्य कारको की पहचान के लिए 19 जनपदों तथा रीजनल प्रयोगशाला, स्वास्थ्य भवन, लखनऊ में सेन्टीनल प्रयोगशाला तथा अन्य कारकों की पहचान हेतु विशेष प्रयोगशाला परीक्षण के लिए केजीएमयू, एसजीपीजीआई लखनऊ तथा एनआईवी पुणे, फील्ड यूनिट, गोरखपुर की प्रयोगशाला में परीक्षण की व्यवस्था तत्काल सुनिश्चित किये जाने के भी निर्देश दिये।
सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य वी एकाली झिमोमी ने एईएस/जेई रोग नियंत्रण हेतु विभाग द्वारा की गयी कार्यवाही से अवगत कराते हुए बताया कि गोरखपुर एवं बस्ती मण्डल के सभी जिलों में ब्लॉक स्तर पर 104 इन्सेफ्लाइटिस ट्रीटमेन्ट सेन्टर स्थापित किये गये हैं। एईएस रोगियों को जनपद स्तर पर ही विशिष्ट उपचार उपलब्ध कराने के लिए गोरखपुर के जिला चिकित्सालय में 12 शैय्या एवं वेंटीलेटर युक्त तथा कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज, बस्ती, सिद्धार्थ नगर, संत कबीर नगर, बहराइच एवं लखीमपुर खीरी के जिला चिकित्सालयों में तथा ओपेक चिकित्सालय, कैली बस्ती में 10 शैय्यायुक्त पीडियाट्रिक आईसीयू की स्थापना की गयी है जो सप्ताह में 24 घण्टे क्रियाशील हैं।
समीक्षा बैठक में महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य डॉ पद्माकर सिंह समेत स्वास्थ्य विभाग के अनेक वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया।
