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त्वचा रोग में स्टेरॉयड से तुरंत लाभ तो मिलता है लेकिन बाद में और बढ़ जाती है परेशानी

-केजीएमयू में इंडियन एकेडमी ऑफ डर्मेटोलॉजिस्ट, वेनेरोलॉजिस्ट और लेप्रोलॉजिस्ट के तत्वावधान में सीएमई आयोजित

सेहत टाइम्स

लखनऊ। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के कलाम सेंटर में 7 दिसम्बर को इंडियन एकेडमी ऑफ डर्मेटोलॉजिस्ट, वेनेरोलॉजिस्ट और लेप्रोलॉजिस्ट के तत्वावधान में रीकैल्सीट्रेंट डर्मेटोफाइटोसिस पर एक सतत चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रम (सीएमई) आयोजित की गई। इसमें चर्चा का एक मुख्य विषय सामयिक स्टेरॉयड का व्यापक दुरुपयोग था, जिसे अक्सर अयोग्य चिकित्सकों द्वारा निर्धारित किया जाता है या बिना चिकित्सकीय सलाह के स्वयं लोग इस्तेमाल करते हैं।

विशेषज्ञों ने कहा कि ये स्टेरॉयड अस्थायी राहत प्रदान करते हैं, लेकिन इसके सेवन से त्वचा की प्रतिरक्षा सुरक्षा दब जाती है, जिससे डर्मेटोफाइट्स बढ़ते हैं और प्रतिरोधी उपभेदों में विकसित होते हैं। बताया गया कि इस दुरुपयोग के कारण पारंपरिक उपचारों के प्रति अनुत्तरदायी फंगल प्रजातियां उभरी हैं, जिसके लिए उच्च खुराक और नए एंटीफंगल उपचारों की आवश्यकता होती है, जिससे रोग प्रबंधन और भी जटिल हो जाता है।

आयोजन अध्यक्ष डॉ प्रशान्त गुप्ता और आयोजन सचिव डॉ पारुल वर्मा के साथ त्वचा विज्ञान की विभागाध्यक्ष डॉ. स्वास्तिका सुवीर्या द्वारा आयोजित इस सीएमई में 100 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इनमें डॉ. मधु रेंगसामी (चेन्नई), डॉ. शीतल पुजारी (मुंबई), डॉ. शिखा बंसल (सफदरजंग, नई दिल्ली), डॉ. सुनील गुप्ता (एम्स, गोरखपुर) और स्थानीय लखनऊ के संकाय जैसे डॉ. विकास पठानिया (कमांड हॉस्पिटल) और डॉ. अबीर सारस्वत सहित प्रसिद्ध वक्ताओं ने रीकैल्सीट्रेंट डर्मेटोफाइटोसिस पर अपने विचार रखे।

सीएमई में उचित निदान और उपचार के लिए योग्य त्वचा विशेषज्ञों से परामर्श के महत्व पर जोर दिया गया। विशेषज्ञों ने प्रतिनिधियों से अपील की कि वे स्व-चिकित्सा और नकली उपचारों को हतोत्साहित करने में सहयोग दें। जिससे स्थिति को खराब होने से रोकने और ठीक होने में देरी से बचा जा सके। सीएमई में KOH परीक्षा और MALDI-TOF तकनीकों पर एक घंटे की कार्यशाला भी शामिल थी, जिसमें प्रतिभागियों को प्रतिरोधी फंगल संक्रमण के शीघ्र सटीक निदान और प्रभावी प्रबंधन के लिए व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान किया गया।

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