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बीस साल बाद भी केजीएमयू को एक बर्न यूनिट का इन्तजार

 

शासन से लेकर संस्थान तक की लापरवाही का खामियाजा भुगत रहे मरीज

लखनऊ. 20 वर्षों से किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी एक बर्न यूनिट नहीं तैयार कर पाया है. देश ही नहीं विदेश में भी अपना विशिष्ट स्थान रखने वाले केजीएमयू ने बड़े-बड़े प्लास्टिक सर्जन तैयार किये हैं. यहाँ से निकलने वाले प्लास्टिक सर्जन अस्पतालों में बर्न यूनिट चला रहे हैं लेकिन केजीएमयू को आज भी एक अदद बर्न यूनिट का इन्तजार है. अधिकारियों की लापरवाही का खामियाजा आम आदमी भुगत रहा है. आज अगर केजीएमयू के पास बर्न यूनिट होती तो एनटीपीसी हादसे में घायल मरीजों को दूसरे अस्पतालों में भेजने की जरूरत नहीं पड़ती. ज्ञात हो इतनी बड़ी घटना होने के बाद केजीएमयू में सिर्फ 13 मरीज लाये गए, बाकी मरीज दूसरे अस्पतालों में भेज दिए गए. यहाँ तक कि घटना में घायल एनटीपीसी के अधिकारियों को केजीएमयू में भर्ती न कराकर सड़क के उस पार स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया जहाँ बर्न यूनिट है.

लगभग 20 वर्षों से यह प्रस्ताव चल रहा है कि यहाँ बर्न यूनिट बनायी जानी है. लेकिन शर्मनाक स्थिति है कि यूनिवर्सिटी से लेकर शासन तक के अधिकारी इस मानवीय जरूरत पर लापरवाह बने हुए हैं. इस बारे में केजीएमयू के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के मुखिया डॉ.एके सिंह से जब सवाल किया गया तो उनका कहना था कि कोशिश तो बराबर की जा रही थी लेकिन शासन से इसकी अप्रूवल नहीं मिल सकी.

ज्ञात हो वर्तमान में केजीएमयू के प्लास्टिक सर्जरी विभाग में 25 बिस्तरों की बर्न यूनिट तैयार हो रही है. इस बर्न यूनिट को बनाने के लिए महिला कल्याण से 9 करोड़ रुपये विभाग को मिल चुके हैं. विभागाध्यक्ष का कहना है कि बर्न यूनिट करीब 90 फीसदी तैयार हो चुकी है, अब पैसे की कमी आड़े आ रही है. यही नहीं इसकी सबसे बड़ी बाधा मैन पॉवर की है. इसे चलाने के लिए करीब 100 लोगों का स्टाफ चाहिए. फिलहाल हमारे पास 4 फैकल्टी हैं और 10 रेजिडेंट डॉक्टर हैं.

डॉ. सिंह बताते हैं कि बर्न यूनिट पूरी करने के लिए हमने 2 करोड़ रुपयों की मांग की है. यह पूछने पर कि बजट में इतना फर्क कैसे आ गया तो उन्होंने बताया कि इसमें कुछ निर्माण और जोड़ दिया गया है जैसे रैम्प बनाना, अकेले रैम्प बनाने में ही 35 लाख रुपये खर्च हो रहे हैं. इसके अलावा पहले निर्माण एरिया कम था अब बढ़ गया है, इसी प्रकार जीएसटी लागू होने से भी कॉस्ट बढ़ गयी है.

यहाँ गौरतलब यह है कि अदूरदर्शिता से प्लान तैयार किया गया था. क्योंकि जब प्लान बन रहा था तो रैम्प बनाने का ध्यान क्यों नहीं रखा गया. जाहिर है अगर लिफ्ट खराब हो जाये तो मरीज को ऊपर के तल से नीचे कैसे लाया जायेगा. कुल मिलाकर देखा जाए तो यहाँ बर्न यूनिट कब तक तैयार हो जायेगी और इसका लाभ मरीजों को कब तक मिलने लगेगा इस बारे में कुछ निश्चित नहीं है.

 

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