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कोरोना पर वैज्ञानिक तर्कों का निचोड़ भी कर रहा है चीन के झूठ की चुगली

-पहली बार चिकित्‍सा विशेषज्ञों के व्‍याख्‍यान का विषय बना कोरोना की उत्‍पत्ति का रहस्‍य!

-चेस्ट काउंसिल ऑफ इंडिया के वेबिनार में मॉडरेटर की भूमिका निभायी डॉ सूर्यकान्‍त ने

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। करीब डेढ़ साल से ज्‍यादा का समय हो गया है, चीन के वुहान से फैली कोरोना महामारी के वायरस कोविड-19 की उत्‍पत्ति कैसे हुई, इसे लेकर दुनिया भर के सभी देशों में शंकाएं बहुत हैं, और उन शंकाओं के पीछे के जो तथ्‍य हैं वे बड़े ही पुख्‍ता हैं, इसलिए चीन एक शक्तिशाली देश होने के चलते भले ही अपनी कहानी गढ़ रहा है, लेकिन उसकी कहानी दूसरे देशों के गले नहीं उतर रही है।

 

चेस्ट काउंसिल ऑफ इंडिया के तत्वावधान में 24 जून को “एक नदी की उत्पत्ति, एक संत की उत्पत्ति और कोविड 19 का मूल देश हमेशा रहस्यमय रहे हैं’’ विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख डॉ सूर्यकांत इस वेबिनार के मॉडरेटर थे। आईएमए-एएमएस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ सूर्यकान्त द्वारा एक अद्भुत व्याख्यान दिये जाने के बाद इस विषय पर चर्चा के लिए, भारत के प्रख्यात पल्मोनोलॉजिस्ट, मुंबई से डॉ अमिता नेने और डॉ अगम वोरा, बेंगलुरु से डॉ बी वी मुरलीमोहन, कर्नाटक के दावणगेरे से डॉ एन एच कृष्णा और कोलकाता से डॉ राजाधर शामिल हुए। संभवत: यह भी एक रिकॉर्ड होगा कि वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर वेबिनार में लगभग 10,000 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

 

डॉ सूर्यकान्‍त ने बताया कि कोरोना की उत्‍पत्ति को लेकर बने रहस्‍य के विषय पर अमेरिका हो या भारत, इंग्‍लैंड हो या अन्‍य देश सभी जगह राजनीतिक आदि मंचों पर तो काफी चर्चा हुई, चीन पर उंगलियां उठायी गयीं। जबकि चिकित्‍सकों, वैज्ञानिकों ने अपने मंच पर कोरोना से निपटने के उपायों पर तो चर्चाएं कीं लेकिन इसकी उत्‍पत्ति के रहस्‍य पर विचार नहीं किया। ऐसे में चे‍स्‍ट काउंसिल ऑफ इंडिया के तहत यह मुद्दा उठाया जाना निश्चित ही प्रशंसनीय है।

 

वेबिनार में पैनलिस्‍ट्स ने जिन बिंदुओं पर चर्चा की उसके बारे में जानकारी देते हुए डॉ सूर्यकान्‍त ने बताया कि चर्चा में हमारे प्रख्यात पैनलिस्टों द्वारा जिन बिन्‍दुओं की ओर ध्‍यानाकर्षित किया गया वे सभी सभी बिंदु मूल्यवान हैं और यह प्रत्येक व्‍यक्ति के लिए आंख खोलने वाला था जिसने उन्हें कोविड की उत्पत्ति के बारे में सोचने और अधिक जानने के लिए प्रेरित किया है। उन्‍होंने कहा कि जब तक वायरस की उत्पत्ति का तरीका स्पष्ट नहीं है, वर्तमान महामारी को समाप्त करने का कोई तरीका नहीं है, न ही भविष्य में ऐसी आपदाओं को रोका जा सकता है। यह वेबिनार गलती खोजने का अभ्यास नहीं है बल्कि एक तथ्य खोजने वाला है, क्योंकि केवल तथ्यों के आधार पर ही इस महामारी को समाप्त किया जा सकता हैं।

 

उन्‍होंने बताया‍ कि‍ पैनल चर्चा के दौरान कोविड-19 की उत्पत्ति के चार सिद्धांतों प्राकृतिक उत्पत्ति, लैब रिसाव, आनुवंशिक हेरफेर और खाद्यशीत श्रृंखला सिद्धांत पर चर्चा की गई।वेबिनार में कहा गया कि इस संक्रमण से मचे त्राहिमाम से पहले ही कई शोधपत्र प्रकाशित हुए थे, जो यह साबित करने की कोशिश कर रहे थे कि यह वायरस प्राकृतिक है, तब तक किसी ने चीन पर उंगली भी नहीं उठायी थी, लेकिन जबरदस्‍ती चीन की ओर से दी गयी सफाई ऐसे ही नजर आयी जैसे- ’’चोर की दाढ़ी में तिनका’’। डॉ सूर्यकान्‍त ने बताया चर्चा में कहा गया कि समय से पहले अपनों को खोने वाले लोगों में बहुत गुस्सा और पीड़ा होती है, कोरोना के मामले में भी ऐसा ही हुआ है इसलिए इस महामारी के मूल देश चीन से पारदर्शिता और जवाबदेही ही इस पीड़ा को जल्द ही कम कर सकती है।

 

चर्चा में कहा गया कि पशु या खाद्य शीत श्रृंखला हो, वायरस की प्राकृतिक उत्पत्ति के लिए दिये गये हर सिद्धांतों के आधार पर कोई ठोस सबूत खोजने में विफल रहे हैं। कोविड-19 के लिए उत्पत्ति के अन्य सिद्धांत अंततः कृत्रिम उत्पत्ति की ओर इशारा करते हैं। क्‍योंकि बहु केंद्रीय प्रयोगशालाओं में वायरस संरचना के विस्तृत अध्ययन में किसी भी ज्ञात सार्स वेरिएंट के साथ रासायनिक विन्यास में कोई समानता नहीं पाई गई है। यह बार-बार इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि वायरस की उत्पत्ति प्राकृतिक रूप से नहीं हुई थी।

 

डॉ सूर्यकान्‍त बताते हैं कि यह भी शक पैदा करता है कि चीन के वैज्ञानिकों ने जल्द से जल्द वैक्सीन विकसित करने का दावा किया। क्या इसलिए कि वे वायरस के क्रम को पहले से जानते थे? उन्‍होंने कहा कि वुहान जैसी अनुसंधान प्रयोगशालाओं को अनुसंधान करने के लिए जिम्मेदार होना चाहिए। मानव जाति की भलाई के लिए अनुसंधान के बीच एक पतली रेखा है, और एक बार वो अगर अव्यवस्थित हो जाती है, तो इसका परिणाम महामारी हो सकता है। ऐसे में पूरी दुनिया के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही सर्वोपरि है।

 

डॉ सूर्यकान्‍त बताते हैं कि चर्चा में कहा गया कि महामारी ने चीन को आधिकारिक तौर पर उनके द्वारा रिपोर्ट किए जाने की तुलना में अधिक प्रभावित किया है। वर्तमान में अलग-अलग वेरिएंट के साथ एक दूसरी (या तीसरी) लहर देख रहे हैं लेकिन फिर से वे शायद कम रिपोर्टिंग कर रहे हैं। इसलिए मूल देश महामारी से नहीं बचा, लेकिन पर्याप्त अंतर्राष्ट्रीय जांच से बच रहा है।

 

डॉ सूर्यकान्‍त कहते हैं कि यह भी विचारणीय तथ्‍य है कि वायरस की उत्पत्ति का देश इस बीमारी को इतनी अच्छी तरह से लड़ने में सक्षम है, जबकि बाकी दुनिया अभी भी त्रासदी से जूझ रही है। उन्‍होंने कहा कि पैनलिस्‍ट्स का मानना था कि अब जब इस सबसे पूरी दुनिया जूझ रही है, ऐसे में चीन की महामारी की रोकथाम के मंत्रों को पूरी दुनिया से साझा किया जाना चाहिए, ताकि मानवता को बचाया जा सके।