ऐलोपैथी से जुड़े 90 प्रतिशत निजी नर्सिंग होम, डायग्नोस्टिक सेंटर रहे बंद
लखनऊ में भी चिकित्सकों ने निकाला शांति मार्च, की सभा
नयी दिल्ली/लखनऊ। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन आईएमए से जुड़े करीब हजारों चिकित्सकों ने अपनी मांगों को लेकर 6 जून को देश की राजधानी दिल्ली में शांतिपूर्ण एक सत्याग्रह किया। जबकि उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश भर में करीब 90 प्रतिशत प्राइवेट नर्सिंग होम और डायग्नोस्टिक सेंटर बंद होने का दावा किया गया है। इसी क्रम में लखनऊ में भी नर्सिंग होम, डायग्नोस्टिक सेंटर बंद रहे तथा चिकित्सकों ने आईएमए भवन से शहीद स्मारक तथा वापस आईएमए भवन तक एक मार्च निकाला, इसमें दर्जनों चिकित्सक शामिल रहे। आईएमए वापस पहुंचकर चिकित्सकों ने एक सभा की।
लखनऊ में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद से भेंट की
लखनऊ मेंं आंदोलन का नेतृत्व करने वाली आईएमए लखनऊ की उपाध्यक्ष डॉ रमा श्रीवास्तव ने बताया कि शांतिपूर्ण मार्च के बाद सभा करने के बाद हम अपनी मांगों को लेकर लखनऊ में उपस्थित केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद से मिलने पहुंचे। डॉ रमा ने बताया कि हमने अपनी मांगों को जब केंंद्रीय मंत्री को बताया तो उनका कहना था कि आप लोग अपनी मांग पहले उत्तर प्रदेश सरकार को सौंपें फिर केंद्र को भेजें। उन्होंने बताया कि हम लोग शीघ्र ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री से मुलाकात करेंगे।
आईएमए द्वारा ज्ञारी विज्ञप्ति के अनुसार आईएमए ने चिकित्सा व्यवसाय की तमाम विसंगतियों और समस्याओं के समाधान हेतु, एक बड़ा कदम उठाते हुए आज ‘दिल्ली चलो’ अभियान के तहत राष्ट्रीय राजधानी में अब तक का सबसे बड़ा एक शांतिपूर्ण सत्याग्रह किया, जिसमें देश भर से आये चिकित्सकों, एमबीबीएस छात्रों व अन्य ने भाग लिया। चिकित्सकों से जुड़े विभिन्न गंभीर मुद्दों को प्रकाश में लाने, जागरूकता पैदा करने और एकमत बनाने के उद्देश्य से आईएमए पिछले एक माह से एक गहन अभियान चला रहा था। ज्ञात हो आईएमए देश में चिकित्सकों का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण संगठन है।
देश भर से 70,000 से अधिक चिकित्सकों ने दिल्ली में दर्ज करायी अपनी उपस्थिति
पूरे भारत से आये 70,000 से अधिक चिकित्सकों ने इसमें हिस्सा लिया, जिनमें नेशनल मेडिकल एसोसिएशंस के प्रतिनिधि शामिल थे। इनमें प्रमुख संगठन थे- फेडरेशन ऑफ ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गाइनीकोलॉजिकल सोसाइटीज ऑफ इंडिया (एफओजीएसआई), इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी), एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडिया (एपीआई) तथा कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (सीएसआई) आदि। जो दिल्ली आ नहीं सके वे लाइव वेबकास्ट के जरिये डिजिटली जुड़े रहे।
चिकित्सकों पर हमले, पीसी पीएनडीटी एक्ट का असंगत रूप, क्षतिपूर्ति की सीमा आदि प्रमुख मुद्दे
इस बारे में बताते हुए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन व हार्ट केअर फाउंडेशन के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. के के अग्रवाल तथा आईएमए के मानद महासचिव डॉ. आरएन टंडन ने एक संयुक्त वक्तव्य में कहा, ‘यह चिकित्सा जगत के लिए एक मुश्किल वक्त है। यह सत्याग्रह हमें तब करना पड़ा जब लगा कि अब बहुत हो चुका, और चिकित्सकों की मांगों पर आश्वासनों के अलावा और कोई कदम नहीं उठाया जा रहा। चिकित्सकों में काफी लंबे समय से असंतोष दिखायी देता रहा है। लिपिकीय त्रुटियों के लिए भी आपराधिक मुकदमे चलाये जा रहे हैं और पीसी पीएनडीटी एक्ट की ऐसी धाराओं के तहत भी चिकित्सकों पर कार्रवाई की जा रही है, जिनका चिकित्सकीय इलाज से संबंध नहीं है। पीसी पीएनडीटी एक्ट और वेस्ट बंगाल क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट चिकित्सा पेशे के हित में नहीं हैं। इनसे अंतत: समाज का भी अहित ही हो रहा है। अब जरूरत है एकजुट होने और न्याय के लिए संघर्ष की।’
उन्होंने कहा कि आईएमए ने इस मामले में पिछले कुछ माह में अनेक पहलें की हैं जैसे कि स्टॉप एनएमसी सत्याग्रह, डॉक्टरों पर हमलों के विरोध में दो बार राष्ट्रीय स्तर पर विरोध दिवस, मेडिकल कॉलेजों में हड़ताल पर रोक, पश्चिम बंगाल क्लिनिकल एस्टाब्लिशमेंट एक्ट के खिलाफ नेशनल ब्लैक डे आदि। इसके अलावा, तीन बार कार्य समितियों की बैठक और दो बैठकें फोमा की आयोजित की गयीं।
अब किसी भी तरह का और अन्याय बर्दाश्त नहीं
इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम में एकत्रित चिकित्सा पेशेवरों के एक विशाल समूह को संबोधित करते हुए, डॉ. के के अग्रवाल ने कहा, ‘दिल्ली चलो आंदोलन की अपार सफलता इस बात का संकेत है कि चिकित्सा जगत अब किसी भी तरह का और अन्याय बर्दाश्त नहीं करेगा। हमें इस पेशे के आदर्श स्वरूप को वापस स्थापित करने की दिशा में काम करना चाहिए। चिकित्सकों पर हिंसा बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जायेगी। चिकित्सकों को संविधान के ढांचे के अंतर्गत तक न्याय नहीं मिल पा रहा है। यह शांतिपूर्ण आंदोलन हमारी ओर से सरकार को एक संकेत है कि उचित कदम उठाने क समय आ गया है।’
ये हैं मांगें
उन्होंने कहा कि हमारी मांगें हैं कि डॉक्टरों की लापरवाही व लिपिकीय चूकों पर आपराधिक मामले न चलाये जायें, मेडिकल कर्मियों पर हिंसा के खिलाफ केंद्र सरकार कानून बनाये, डॉक्टरों पर सीपीए की क्षतिपूर्ति की सीमा तय हो, इलाज और पर्चा लिखने में चिकित्सकों को पेशेवर स्वायत्तता दी जाये, पीसी पीएनडीटी, सेंट्रल सीईए और वेस्ट बंगाल सीईए एक्ट में सुधार हो, चिकित्सा प्रणालियों का अवैज्ञानिक तरीके से मिश्रण न किया जाये, एमबीबीएस स्नातकों का सशक्तिकरण हो, एक दवा, एक कंपनी, एक दाम, अंतर मंत्रालय समितियों की रिपोर्ट पर छह सप्ताह के भीतर अमल हो, सिंगल विंडो एकाउंटेबिलिटी तय हो, डॉक्टरों व चिकित्सा संस्थानों का सिंगल विंडो रजिस्ट्रेशन हो, एनएमसी नहीं चाहिए, पेशागत स्वतंत्रता बनाये रखने के लिए आईएमसी में बदलाव हो, नेक्स्ट के स्थान पर सभी एमबीबीएस का एक साथ फाइनल एग्जाम हो, मेडिकल डॉक्टरों व अन्य मेडिकल कर्मियों के लिए देश भर में समान सेवा शर्तें लागू हों और समान कार्य, समान वेतन, अस्थाई नियुक्तियों पर रोक लगे, नीट परीक्षा सही प्रकार से करायी जाये, हर सरकारी स्वास्थ्य समिति में आईएमए सदस्य भी शामिल किये जायें, केंद्र सरकार एंटी क्वेकरी लॉ बनाये, निजी चिकित्सकों की आपातकालीन सेवाओं का पुनर्भुगतान हो, फैमिली मेडिसिन की 25,000 पीजी सीट रखी जायें, जनरल प्रेक्टिस में सहायता प्राप्त अस्पताल एवं रिटेनरशिप का विधान हो, तथा जीडीपी का 5 प्रतिशत स्वास्थ्य बजट होना चाहिये।