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संजय गांधी पीजीआई के जूनियर रेजीडेंट ने फेल किये जाने से आहत होकर शुरू किया सत्‍याग्रह

-उत्‍तर पुस्तिका के पुनर्मूल्‍यांकन के लिए मुख्‍यमंत्री से लगायी गुहार

-रेजीडेंट डॉक्‍टर्स ऐसोसिएशन भी आयी समर्थन में, सिस्‍टम पर सवाल

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। लखनऊ वैश्विक महामारी कोविड-19 के कहर से जहां पूरा देश गुजर रहा है, वहीं दूसरी ओर देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक संजय गांधी पीजीआई के एक रेजिडेंट डॉक्टर ने अपनी व्‍यथा सीधे मुख्‍यमंत्री को लिखकर सिस्‍टम पर सवालिया निशान लगा दिया है।  संस्थान के न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग से एमडी कर रहे जूनियर रेजिडेंट डॉ मनमोहन सिंह ने अंतिम थ्योरी की परीक्षा में अनुत्तीर्ण किए जाने पर आश्‍चर्य व्‍यक्‍त करते हुए उत्‍तर पुस्तिका के पुनर्मूल्‍यांकन की गुहार लगायी है,  साथ ही इसके लिए 15 मई से तीन दिन तक भूखे रहते हुए सत्‍याग्रह शुरू कर दिया है।

रेजीडेंट डॉक्‍टर का कहना है कि मुझे पूरा विश्वास है की थ्योरी में मेरा प्रदर्शन अच्छा रहा है। अपनी पूरी जानकारी के अनुसार पिछले 3 साल से मैं लगातार थ्‍योरी में बेहतर प्रदर्शन करता रहा हूं, जबकि मेरी अंतिम वर्ष में थ्योरी की अंतिम परीक्षा में मुझे अनुत्तीर्ण किया गया है। रेजिडेंट ने यह भी कहा है कि मुझे दुख इस बात का भी है कि मेरे अनुत्तीर्ण होने के बारे में मुझे आज ऐन वक्त पर उस समय यह बताया गया जब मैं अपना प्रैक्टिकल एग्जाम देने पहुंचा। रेजीडेंट डॉक्‍टर का कहना है कि अपनी उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्‍यांकन के लिए न्यायिक सहायता सहायता की गुहार लगाने के अलावा मेरे पास कोई अन्य विकल्प नहीं है अपनी इस मांग को लेकर मैं आज से 3 दिन तक भूखे रहते हुए सत्याग्रह शुरू कर रहा हूं। इस घटना के सामने आने के बाद संजय गांधी पीजीआई की रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन ने पीड़ित रेजिडेंट के समर्थन में निदेशक को पत्र सौंपा है।

एसोसिएशन के अध्‍यक्ष डॉ आकाश माथुर व महासचिव डॉ अनिल गंगवार ने व्‍यवस्‍था पर सवाल उठाते हुए कहा है कि‍ मेडिकल कॉलेजों में यूँ तो श्रम कानूनों की धज्जियाँ उड़ाकर आठ घंटे की ड्यूटी के बजाय रेजिडेंट डॉक्टर्स से दिन-रात काम कराना एक नियम सा बन गया है, किंतु एक ऐसे वक़्त में जब सारा देश कोरोना के संकट से जूझ रहा है, ऐसे में पीजीआई जैसे संस्थानों में, जहाँ पहले से ही देश के सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी नीट परीक्षा के माध्यम से लिए जा रहे हैं, वहाँ कई विभागों द्वारा अकारण रेजिडेंट डॉक्टर्स को फेल किया जाना कहाँ तक उचित है?

दोनों डॉक्‍टरों ने कहा है कि अक्सर रेजिडेंट डॉक्टर्स को पढ़ने का वक़्त नहीं दिया जाता, दिन-रात मरीज़ों की सेवा सुश्रुषा में लगे ये रेजिडेंट फिर भी किसी तरह व्यक्तिगत जीवन की कीमत पर किताबें पढ़ने के लिए वक़्त निकालते हैं और फिर ऊल जलूल सैद्धान्तिक प्रश्नों (theoretical questions) से लबरेज़ ऐसी परीक्षा पद्धति‍ का हिस्सा बनते हैं जिसका न तो मरीज़ों के उपचार पर कोई सकारात्मक प्रभाव पड़ना है और ना ही एक डॉक्टर द्वारा जीवन भर मरीज़ों की देखरेख में वह उपयोगी सिद्ध होनी है, पर फिर भी यह रेजिडेंट पूर्ण निष्ठा के साथ परीक्षा देते हैं, फिर भी उन्हें अक्सर अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भी अकारण अनुतीर्ण करना किस तरह से न्यायपूर्ण माना जाए। ऐसे में यहाँ कुछ अन्य प्रश्न भी खड़े होते हैं:

1. क्या इस तरह देश के सर्वश्रेष्ठ छात्रों का अनुतीर्ण होना संस्थान और संस्थान द्वारा प्रदान किए जा रहे प्रशिक्षण की प्रणाली पर प्रश्न खड़े नहीं करता है ?

2. क्या अनुतीर्ण होने की स्थिति में किसी भी तरह की अपील का तंत्र मौजूद न होना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विरुद्ध नहीं है ?

3. देश में जब डॉक्टर्स की इतनी कमी है तब सिर्फ आत्मसंतुष्टि के लिए रेजिडेंट डॉक्टरों को अनुतीर्ण कर घर बैठाया जाना क्या राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में नहीं आएगा ?

फि‍लहाल इस घटना के बाद से अंदर खाने संस्‍थान में हड़कम्‍प मचा हुआ है, अब सबकी नजर शासन की ओर लगी हुई हैं, कि वहां से पत्र के जवाब में क्‍या फरमान आता है।