-जीसीसीएचआर में 160 मरीजों पर हुई स्टडी में 52 को फायदा, 43 की स्थिति यथावत, 65 रोगियों को नहीं हुआ फायदा
लखनऊ। होम्योपैथिक दवाओं से किडनी के क्रॉनिक रोगियों की डायलिसिस को बचाया जा सकता है, यही नहीं अगर किसी की डायलिसिस पहले से हो रही है तो भी उन्हें लम्बे समय तक ट्रांसप्लांट से बचाया जाना भी संभव है। गौरांग क्लिनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के चीफ कंसल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता ने यह बात यहां होटल ट्यूलिप में शनिवार को आयोजित डॉक्टर्स मीट में अपनी रिसर्च के प्रेजेंटेशन के दौरान कही। इस मीट का आयोजन नेटक्योर बायोटेक प्राइवेट लिमिटेड ने किया था।
डॉ गिरीश ने प्रेजेंटेशन देते हुए बताया कि जीसीसीएचआर में अब तक हुई रिसर्च बताती है कि होम्योपैथिक इलाज से पांच-पांच साल तक डायलिसिस/ट्रांसप्लांट से दूर रखने में सफलता मिली है, यहाँ तक कि एक मरीज को 15 वर्षों तक ट्रांसप्लांट की जरूरत नहीं पड़ी। डॉ गुप्ता ने बताया कि इस रिसर्च का प्रकाशन नेशनल जर्नल ऑफ होम्योपैथी में वर्ष 2015 वॉल्यूम 17, संख्या 6 के 189वें अंक में हो चुका है। रिसर्च के बारे में उन्होंने बताया कि इलाज से पूर्व मरीज के रोग की स्थिति का आकलन उसकी सीरम यूरिया, सीरम क्रिएटिनिन और ईजीएफआर की रिपोर्ट को आधार मानते हुए किया गया। इन मरीजों की किडनी का साइज देखने के लिए अल्ट्रासाउंड भी कराया गया। जिन 160 मरीजों पर शोध किया गया इनमें किसी भी रोगी की डायलिसिस नहीं हो रही थी अगर आयु की बात करें तो इसमें 109 रोगी 31 वर्ष से 60 वर्ष की आयु के थे, जबकि 30 वर्ष की आयु तक के 24 तथा 61 वर्ष की आयु से ऊपर वाले 27 मरीज थे। इनमें 151 मरीजों का इलाज पांच साल से कम तथा 9 मरीजों का फॉलोअप पांच वर्ष से ज्यादा अधिकतम 15 वर्ष तक किया गया है।
चार्ट के जरिये डॉ गुप्ता ने दिखाया कि समय-समय पर इन मरीजों की सीरम यूरिया, सीरम क्रिटेनिन और ईजीएफआर की जांच कराते हुए मॉनीटरिंग की गयी। डॉ गुप्ता ने बताया कि इन 160 मरीजों में 52 मरीजों को लाभ हुआ, जबकि 43 मरीजों की स्थिति जस की तस बनी रही लेकिन खराब भी नहीं हुई, जबकि 65 मरीज ऐसे थे जिन्हें होम्योपैथिक दवाओं से कोई लाभ नहीं मिला।
डॉ गुप्ता ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि को इंगित करते हुए बताया कि ये सभी मरीज किडनी फेल्योर की पहली से लेकर पांचवीं (प्राइमरी से एडवांस) स्टेज तक के थे, इनमें कई मरीज अपनी वर्तमान स्टेज से कम वाली स्टेज में वापस भी आ गये। इसके बारे में इस रिसर्च में डॉ गिरीश के सहयोगी के रूप में शामिल डॉ गौरांग गुप्ता ने प्रेजेंटेशन में ऐनीमेशनग्राफी के माध्यम से समझाया कि कितने-कितने मरीज लाभ पाकर वर्तमान खतरनाक स्टेज से नीचे कम खतरनाक स्टेज की ओर वापस आ गये।