-मन को ठीक करने की दवा देने से मिली बीमारी को हराने में सफलता
-दो दिवसीय नेशनल होम्योपैथिक कॉन्फ्रेंस में डॉ गौरांग गुप्ता ने प्रस्तुत किया शोध पत्र
सेहत टाइम्स
लखनऊ। होम्योपैथिक फ्रेटरनिटी ऑफ इंडिया द्वारा यहां अटल बिहारी वाजपेयी साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में 2 और 3 जुलाई को आयोजित दो दिवसीय नेशनल होम्योपैथिक कॉन्फ्रेंस-2022 में चिकित्सकों द्वारा बीस से ज्यादा शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। इनमें कैंसर, गुर्दा रोग, त्वचा रोग, ऑटो इम्युन डिजीज, हड्डी रोग, नेत्र रोग, छाती रोग पर होम्योपैथिक दवा के असर को लेकर की गयी स्टडीज शामिल रहीं।
लखनऊ के गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के डॉ गौरांग गुप्ता ने शारीरिक रोगों की उत्पत्ति और होम्योपैथिक उपचार में मन की भूमिका पर की गयी अपनी स्टडी प्रस्तुत की। इस स्टडी में यह पाया गया कि अनेक प्रकार की शारीरिक बीमारियों की उत्पत्ति कहीं न कहीं मानसिक स्थिति के कारण हुई। वर्ष 2013 से वर्ष 2016 तक तीन साल चली डॉ गौरांग की यह स्टडी प्रतिष्ठित जर्नल होम्योपैथिक हैरिटेज में प्रकाशित हुई है।
डॉ गौरांग गुप्ता ने अपने पेपर प्रेजेन्टेशन में कहा कि 21वीं सदी में ऑटोइम्यून डिजीज का दौर चल रहा है जबकि कुछ दशकों पूर्व कॉलरा, डिप्थीरिया जैसी संक्रमण की डिजीज ज्यादा होती थी। उन्होंने कहा कि ऑटोइम्यून डिजीजेज यानी जब हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति हमारे ही शरीर के खिलाफ कार्य करना शुरू कर देती है, तो यह विभिन्न प्रकार की शारीरिक व्याधियां पैदा कर देती है। जबकि रोग प्रतिरोधक शक्ति का कार्य हमें बीमारियों से बचाने और उनसे लड़ना होता है।
उन्होंने बताया कि ऑटो इम्यून डिजीजेज में चूंकि डिजीज का कारण नहीं पता होता था इसलिए इसका इलाज भी मुश्किल होता था। उन्होंने बताया कि इस पर शोध किया गया तो पाया कि इसका सीधा संबंध मानसिक स्थितियों से है। डॉ गौरांग ने बताया कि गुस्सा, घबराहट, अवसाद जैसे तरह-तरह के मानसिक परिस्थितियां के कारण ऑटो इम्यून रोग हो रहे हैं। ऑटो इम्यून रोग के कारण होने वाली शारीरिक व्याधियों के पीछे मन की सोच की भूमिका है, और यह उतना ही पक्का है कि अगर बाहर उजाला है इसका मतलब सूरज निकला ही होगा तभी उजाला है।
उन्होंने बताया कि शोध में जहां इसके कारण पता करना चुनौती थी वहीं इसका उपचार भी खोजना था। उन्होंने बताया कि ऐसे मरीजों को उनकी मन:स्थिति को केंद्र में रखते हुए दवाएं दी गयीं तो शारीरिक व्याधि तो ठीक हुईं साथ में दूसरी बीमारियां भी सही हो गयीं। उन्होंने बताया कि स्टडी में पाया गया कि 39 प्रतिशत लोग ऐसे थे जो पूरी तरह ठीक हो गये जबकि 61 प्रतिशत रोगियों को आंशिक लाभ हुआ। डॉ गौरांग की यह रिसर्च 2015 में होम्योपैथिक हेरिटेज जर्नल में प्रकाशित हुई थी। आपको बता दें कि होम्योपैथिक हेरिटेज जर्नल में उन्हीं रिसर्च का प्रकाशन होता है जिसे जर्नल की ओर से गठित टीम स्वयं भी अपने स्तर पर परखती है।