-30 देशों में किये गये ट्रायल में मृत्यु दर या अस्पताल में रहने के समय में कोई लाभ नहीं दिखा रेमेडिसविर से
लखनऊ/नयी दिल्ली। कोविड-19 के रोगियों के उपचार में प्रयोग की जा रही दवा रेमेडिसविर क्ल्ीनिकल ट्रायल में फेल हो गयी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा किए गए क्लिनिकल ट्रायल में रेमेडिसविर का COVID-19 मरीजों की अस्पताल में रहने या बचने की संभावना पर कोई असर नहीं पड़ा है। छह महीने तक किया गया ये दुनिया का सबसे बड़ा रैंडम ट्रायल था जिसमें मौजूदा दवाइयों के कोविड के इलाज में प्रभाविकता की जांच की गई। इसी दवा का इस्तेमाल अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीमार होने पर भी किया गया था।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कोविड-19 के उपचार के रूप में सबसे पहले इस्तेमाल होने वाली एंटीवायरल दवा रेमेडिसविर का डब्ल्यूएचओ ने “सॉलिडैरिटी” परीक्षण किया, जिसमें 30 देशों के 11,266 वयस्क रोगियों में रेमेड्सविर, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, एंटी-एचआईवी ड्रग कॉम्बिनेशन लोपिनवीर / रीटोनिविर और इंटरफेरॉन सहित चार संभावित ड्रग रेजिमेंट के प्रभावों का मूल्यांकन किया गया था।
इस बारे में डब्ल्यूएचओ ने गुरुवार को कहा कि अध्ययन में पाया गया कि 28 दिनों की मृत्यु दर या कोविड-19 के साथ अस्पताल में भर्ती मरीजों के हॉस्पिटल में रुकने की अवधि पर कोई असर नहीं पाया गया। इस ट्रायल के नतीजो का पुनर्आकलन किया जाएगा ताकि इनको मेडिकल जर्नल में छापा जा सके और इसे अभी वेबसाइट पर डाल दिया गया है।
इस ट्रायल के दौरान देखा गया कि 30 से ज्यादा देशों में अलग-अलग ट्रीटमेंट का मृत्यु दर पर क्या असर होता है इसपर शोध किया गया। साथ ही कितने दिन में इन दवाइयों को लेने वाले मरीजों को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ी और इनको कितने दिनों तक अस्पतालों में रहना पड़ा इसका भी आकलन किया गया। इन दवाओं के अन्य उपयोग जैसे समुदाय में मरीज़ों के रोग से बचाव के लिए इस्तेमाल और सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े सवालों का उत्तर खोजने के लिए दूसरे ट्रायल करने पड़ेंगे। हालांकि इस शोध से यह बात सामने आयी है कि महामारी के दौर में भी बड़े अंतरराष्ट्रीय शोध करना संभव है।