Saturday , November 23 2024

प्रमुख सचिव का आह्वान, प्रदेश को टीबी मुक्त बनाने के लिए मिशन मोड में करें काम

-डॉ. सूर्यकान्त ने ड्रग रजिस्टेंस टीबी को प्रदेश के लिए बताया सबसे बड़ी चुनौती

-सरकारी मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों व जिला क्षय रोग अधिकारियों की प्रशिक्षण कार्यशाला शुरू

पार्थ सारथी सेन शर्मा

सेहत टाइम्स

लखनऊ। प्रदेश के 36 सरकारी मेडिकल कालेज के चिकित्सकों और जिला क्षय रोग अधिकारियों की तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का उद्घाटन बुधवार को केजीएमयू के कलाम सेंटर में मुख्य अतिथि, प्रमुख सचिव चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण व प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा, उत्तर प्रदेश पार्थ सारथी सेन शर्मा ने किया। राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के तहत आयोजित इस राज्यस्तरीय प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण में प्रमुख सचिव ने कहा कि प्रदेश को टीबी मुक्त बनाने के लिए अब मिशन मोड में काम करने की बड़ी जरूरत है। इसमें मेडिकल कालेज के चिकित्सक अहम् भूमिका निभा सकते हैं।

प्रमुख सचिव ने कहा कि प्रशिक्षण के माध्यम से प्राप्त जानकारी को चिकित्सक अब अपने-अपने जिलों के अन्य चिकित्सकों से साझा करेंगे और इसी स्तर का उन्हें प्रशिक्षण प्रदान करेंगे। सामूहिक प्रयास से ही टीबी की बीमारी को दूर किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि टीबी की स्क्रीनिंग और जांच के दायरे को बढ़ाते हुए मरीजों को गुणवत्तापूर्ण उपचार और सही पोषण की सुविधा मुहैया करायी जाए। शीघ्र जांच में टीबी का पता चलने पर जल्दी उपचार शुरू करके टीबी के संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए घर के नजदीक स्थापित आयुष्मान आरोग्य मंदिर (हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर) पर भी बीमारियों की स्क्रीनिंग और जाँच की सुविधा उपलब्ध है।

डॉ. सूर्यकान्त

इस अवसर पर उत्तर भारत के नौ राज्यों के क्षय उन्मूलन टास्क फ़ोर्स के चेयरमैन व केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त ने ड्रग रजिस्टेंस टीबी को प्रदेश के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताया। उन्होंने कहा कि साधारण टीबी छह माह के इलाज में ठीक हो जाती है, जबकि जटिल टीबी का उपचार कठिन होता है एवं एक से दो वर्ष तक चलता है। टीबी के इलाज में प्रयोग होने वाली दवाएं जब किसी मरीज पर बेअसर हो जाती हैं तो उसे एमडीआर टीबी (मल्टी ड्रग रेसिसटेन्ट) कहते हैं। एमडीआर के ऐसे मरीज जिनमें टीबी की नई और प्रभावी दवाओं के विरुद्ध भी प्रतिरोध उत्पन्न हो जाता है ऐसे मरीजों को एक्स.डी.आर. टीबी कहते हैं। पिछले कुछ वर्षो में जटिल टीबी (एमडीआर एवं एक्सडीआर टीबी) के उपचार के लिए नई दवाओं के प्रयोग पर पूरी दुनिया में अनुसंधान चल रहें हैं। ऐसे ही अनुसंधानों में से एक इंडियन काउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा किया जा रहा बीपाल नाम का अनुसंधान है। पूरे देश में इस शोध के सात केन्द्र हैं, जिनमें से दो (केजीएमयू लखनऊ व एस एन मेडिकल कालेज आगरा) उत्तर प्रदेश में हैं। इस शोध से मल्टी ड्रग रेसिसटेन्ट टीबी (एम.डी.आर. टीबी) तथा एक्सटेन्सिव ड्रग रेसिसटेन्ट टीबी (एक्स.डी.आर. टीबी) का उपचार दो वर्ष से घटकर तीन माह तक होने की सम्भावना है।

इस अवसर पर संयुक्त निदेशक/राज्य क्षय रोग नियन्त्रण कार्यक्रम अधिकारी डॉ. शैलेन्द्र भटनागर ने कहा कि प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत मेडिकल कालेज के चिकित्सकों और जिला क्षय रोग अधिकारियों में आपसी तालमेल बहुत जरूरी है। इसके लिए एक मुहिम के तहत मिलजुलकर ही टीबी की जांच और उपचार को और गुणवत्तापूर्ण बनाते हुए प्रदेश को टीबी मुक्त बनाया जा सकता है।

प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रदेश के स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. बृजेश राठौर, नेशनल टीबी टास्क फ़ोर्स के चेयरमैन डॉ. अशोक भारद्वाज, केजीएमयू की उप कुलपति डॉ. अपिजित कौर, उत्तर प्रदेश टीबी टास्क फ़ोर्स के चेयरमैन डॉ. गजेन्द्र विक्रम सिंह, डॉ. अजय वर्मा, डॉ. ज्योति वाजपेयी, विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉ. परमार, डॉ. संजय, डॉ. सोलंकी व अन्य प्रतिनिधि मौजूद रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.