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बदलते परिदृश्‍य में डायग्‍नोस्टिक सेवाओं के लिए पीपीपी मॉडल बेहतर !

-महंगी मशीनें, प्रशिक्षित मैनपावर, रखरखाव, संचालन, सुरक्षा मानकों का पालन जैसी अनेक बातों का खयाल रखना जटिल कार्य

-संजय गांधी पीजीआई के न्‍यूक्लियर मेडिसिन विभाग का स्‍थापना दिवस समारोह सम्‍पन्‍न

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। डायग्नोस्टिक विशिष्टताओं जैसे न्यूक्लियर मेडिसिन, रेडियोलॉजी और रेडियेशन थेरेपी चिकित्सा सेवा में अत्यंत महंगे संयंत्रों और विशिष्ट रूप से प्रशिक्षित जनशक्ति की आवश्यकता होती है। आणविक ऊर्जा विकिरण बोर्ड (Atomic Energy Radiation Board) जैसे नियामकों से इसके लिए वैधानिक मंजूरी भी अनिवार्य होती है। इन स्थितियों के कारण ऐसे नैदानिक और थेरेपी संयंत्रों को खरीदना, लगवाना, इनका संचालन करना और इन्हें बनाए रखना एक जटिल कार्य है।

इसी विषय पर आज 9 सितंबर को संजय गांधी पी जी आई के न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग ने अपनी स्थापना दिवस के अवसर पर “पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप- क्या इसका समय आ गया है” शीर्षक से  एक संगोष्ठी का आयोजन किया। यह कार्यक्रम संस्थान के निदेशक प्रोफेसर आर के धीमन की अध्यक्षता में न्यूक्लियर मेडिसिन के प्रमुख डॉ. एस. गंभीर और विभाग के अन्य संकाय सदस्यों द्वारा आयोजित किया गया था।

संगोष्‍ठी में कहा गया कि नैदानिक और थेरेपी प्रक्रियाओं की बढ़ती मांग के कारण ऐसे महंगे उपकरणों की आवश्यकता होती है। भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र की वास्तविकता यह है कि यहां 80% बिस्तर कॉर्पोरेट क्षेत्र में हैं और सरकारी क्षेत्र में ऐसे नैदानिक ​​उपकरणों की मांग बहुत अधिक है और लगातार बढ़ती जा रही है। इसके अलावा PMJAY जैसी विभिन्न सरकारी योजनाओं ने जांच की लागत को आम आदमी के लिए सुलभ बना दिया है। इससे ऐसी प्रक्रियाओं को करने के लिए अधिक नैदानिक ​​सुविधाओं की मांग भी बढ़ रही है। मरीज़ अंतर्निहित गुणवत्ता के साथ समय से रोग के निदान की भी उम्मीद करते हैं। ऐसी पृष्ठभूमि में सरकारी अस्पतालों में सेवाओं में त्वरित बदलाव का दबाव है। इससे अधिक उपकरण लगाने की मांग भी लगातार बढ़ती जा रही है।

संगोष्‍ठी में कहा गया कि इन मुद्दों को दूर करने के लिए देश में विभिन्न राज्यों द्वारा आजमाया और लागू किया गया एक संभावित समाधान सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) है, जिसके तहत एक विक्रेता अस्पताल परिसर में महंगी मशीन स्थापित करता है, संचालित करता है और उसका रखरखाव करता है और उत्पन्न राजस्व को भी साझा करता है। इससे सरकार न केवल फंड बचाती है, बल्कि कमाई में हिस्सेदारी भी बढ़ाती है और रोगी का टर्नअराउंड बढ़ता है।

कार्यक्रम में संस्थान के बाहर और अंदर से विभिन्न आमंत्रित वक्ताओं ने विषय से संबंधित विभिन्न बिन्‍दुओं पर अपने विचार प्रस्तुत किए। संस्थान के डीन डॉ. शालीन कुमार ने चर्चा का नेतृत्व किया और धन्यवाद प्रस्ताव भी दिया।

वक्ताओं में बंगलुरु से मणिपाल हेल्थ मैप्स समूह के अध्यक्ष नीरज अरोड़ा, संजय गांधी पी जी आई के रेडियोलाजी विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. अर्चना गुप्ता और केजीएमयू के रेडियोलॉजी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. दुर्गेश दिवेदी शामिल थे। वक्ताओं ने सरकारी क्षेत्र में इस तरह के उद्यम की जरूरतों और रोड मैप और योजना पर अपने विचार प्रस्तुत किए।

इससे पूर्व न्यूक्लियर मेडिसिन के प्रमुख डॉ. एस गंभीर ने विभाग की 1988 से वर्तमान तक की विकास यात्रा प्रस्तुत की और बताया कि न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग कैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा है व निदान व थेरेपी के लिए नवीनतम Theranostica procedures उपलब्ध करा रहा है।

निदेशक प्रो. आरके धीमन ने पी जी आई और न्यूक्लियर मेडिसिन के विकास और इसकी भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने उत्तर प्रदेश में इस तकनीक की आवश्यकता पर बल दिया। प्रोफेसर धीमन ने अधिक संख्या में रोगियों को इसे उपलब्ध कराने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला।

सरकारी स्तर पर सबसे अधिक संख्या में पीपीपी डायग्नोस्टिक्स चलाने वाले मणिपाल हेल्थ मैप्स समूहों के अध्यक्ष नीरज अरोड़ा ने ऐसी साझेदारी के लिए डिलीवरी के अंतिम बिंदुओं पर पर प्रकाश डाला।

केजीएमयू, रेडियोलॉजी विभाग के प्रो दुर्गेश दिवेदी ने एक सफल पीपीपी मॉडल स्थापित करने की बारीकियां बताईं। प्रोफेसर अर्चना गुप्ता विभागाध्यक्ष, रेडियोलॉजी, पी जी आई ने नए पीपीपी अनुबंध का मसौदा तैयार करने का तरीका बताया। डीन प्रो. शालीन कुमार के नेतृत्व में संबंधित मुद्दों पर बहुत ही स्वस्थ चर्चा हुई। सभी वक्ताओं और प्रतिभागियों को धन्यवाद ज्ञापन के साथ बैठक समाप्त हुई।

बताया जाता है कि यह गहन विचार-विमर्श विभिन्न मॉडलों पर गौर करने में काफी मदद करेगा, जो राज्य और देश के लिए अच्छे पीपीपी मॉडल विकसित करने में संभवतः मदद कर सकते हैं।

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