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निमोनिया : विकासशील देशों में बच्चों, बुजुर्गों और रोगियों की मौत का प्रमुख कारण

-विश्व निमोनिया दिवस (12 नवम्बर 2024) पर विशेष लेख डॉ सूर्यकान्त की कलम से

डॉ सूर्यकान्त

पूरी दुनिया में 12 नवम्बर को वर्ल्ड निमोनिया डे मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम ‘हर सांस मायने रखती है : निमोनिया को उसके मार्ग में ही रोकें’ है।

फेफड़े की वह बीमारी, जिसमें एक या दोनों फेफड़ों के हिस्सों में सूजन आ जाती है तथा पानी भी भर जाता है इस स्थिति को निमोनिया कहते हैं। निमोनिया अधिकतर फेफड़े के संक्रमण के कारण होती है लेकिन अन्य कारणों से भी हो सकती है, जैसे कैमिकल निमोनिया, एस्परेशन निमोनिया, ऑबस्ट्रक्टिव निमोनिया आदि।
बैक्टीरिया : न्यूमोकोकस, हिमोफिलस, लेजियोनेला, मायकोप्लाज्मा, क्लेमाइडिया, स्यूडोमोनास के अलावा कई वायरस : इन्फ्लूएन्जा, स्वाइन फ्लू एवं कोरोना आदि फंगस एवं परजीवी रोगाणुओं के कारण भी निमोनिया हो सकती है। टीबी के कारण भी फेफड़े में निमोनिया हो सकती है।

यह एक आम बीमारी है जिसका बचाव एवं इलाज संभव है, पर समय से सही इलाज नहीं करने पर यह भयावह रूप ले सकती है और मौत का कारण भी बन सकती है। भारत में संक्रामक रोगों से होने वाली मृत्यु में से लगभग 20 फीसदी मौतें निमोनिया की वजह से होती हैं। इसके अलावा अस्पताल में होने वाले संक्रामक रोगों में यह बीमारी दूसरे पायदान पर है।

प्रतिवर्ष निमोनिया से लगभग 45 करोड़ लोग प्रभावित होते हैं। 19वीं शताब्दी में विलियम ओस्लर द्वारा निमोनिया को मौत का सौदागर कहा गया था, लेकिन 20वीं शताब्दी में एंटीबायोटिक उपचार और टीकों के कारण मृत्युदर में काफी कमी आयी। इसके बावजूद विकासशील देशों में बुजुर्गों, बच्चों और रोगियों में निमोनिया अभी भी मृत्यु का एक प्रमुख कारण बना हुआ है।

वैसे तो यह संक्रमण किसी को भी हो सकता है, पर कुछ बीमारियां एवं स्थितियां ऐसी हैं, जिसमें निमोनिया होने का खतरा अधिक होता है, जैसे धूम्रपान, शराब एवं किसी भी नशा से पीड़ित लोग, डायलिसिस करवाने वाले रोगी, हृदय-फेफड़े-लिवर की बीमारियों के मरीज, मधुमेह, गंभीर गुर्दा रोग, बुढ़ापा या कम उम्र : नवजात एवं कैंसर के मरीज तथा एड्स के मरीज जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।

निमोनिया का संक्रमण मुख्यतः तीन तरीकों से होता है।

  1. श्वांस के रास्ते : खांसने या छींकने से
  2. खून के रास्ते : डायलिसिस वाले मरीज या अस्पताल में भर्ती मरीज जो लम्बे समय से आईवी लाइन पर है या दिल के मरीज जिन्हें पेसमेकर लगा होता है।
  3. एसपीरेशन मुंह एवं ऊपरी पाचन नली के स्त्रावों का फेफड़ों में चला जाना जो खांसी करने के प्रक्रिया के खराब हो जाने की वजह से होता है। ऑपरेशन के उपरान्त तथा वेन्टिलेटर के मरीजों में

निमोनिया के प्रमुख लक्षण

तेज बुखार, खांसी एवं बलगम : जिसमें कई बार खून के छीटें भी हो सकते हैं, सीने में दर्द, सांस फूलना एवं कुछ मरीजों में दस्त, मतली और उल्टी, व्यवहार में परिवर्तन जैसे मतिभ्रम, चक्कर, भूख न लगना, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द, सर्दी लग कर शरीर ठंडा पड़ जाना, सिरदर्द, चमड़ी का नीला पड़ना इत्यादि। खून की जांच, बलगम की जांच, छाती का एक्स-रे, निमोनिया की पहचान करने के लिए महत्वपूर्ण जांचें हैं।

बैक्टीरियल निमोनिया : जो कि सबसे ज्यादा होने वाली निमोनिया है, का मुख्य इलाज है, एंटीबायोटिक्स जो कि बीमारी का कारण बने हुए जीवाणु पर कार्य करता है। अधिकतर मरीज बाहय रोगी विभाग द्वारा इलाज करा सकते हैं, पर अगर यह बीमारी किसी अन्य बीमारी के साथ जुड़ी हुई है एवं 65 वर्ष के ऊपर की उम्र के व्यक्ति को हुई है या रोगी गम्भीर रूप से बीमार है, तो अक्सर अस्पताल में भर्ती करके इलाज कराना पड़ सकता है। एंटिबायोटिक के अतिरिक्त तरल पदार्थ का सेवन, ऑक्सीजन, अगर सांस तेज फूल रही है, नेबुलाइजेशन अन्य उपाय हैं।

निमोनिया से बचाव संभव

चूंकि यह बीमारी ठंड के मौसम में ज्यादा होती है, अतः ठंड से बचना प्रमुख है, यह बच्चों एवं बुजुर्गों लोगों में और अधिक महत्वपूर्ण है। अन्य बचावों के रूप में अधिक से अधिक पानी का सेवन करना, धूम्रपान, शराब एवं अन्य नशा का पूर्णतः त्याग करना, मधुमेह एवं अन्य बीमारियों को नियंत्रण में रखना।

-धूम्रपान एवं शराब का नशा त्यागना जरूरी है। मधुमेह के मरीजों को अपने चिकित्सक से अपने शुगर की नियमित जांच करवाते रहना चाहिए एवं शुगर नियंत्रण में रखना चाहिए।

-निमोनिया का सबसे प्रमुख कारण होता है. न्यूमोकोकस जीवाणु, अतः इससे बचने के लिए वैक्सीन : टीका लगवाना चाहिए। यह वैक्सीन : न्यूमोकोकल वैक्सीन 65 वर्ष से उपर के व्यक्ति, जटिल ह्नदय रोग, लिवर व किडनी रोगी, दमा एवं गंभीर श्वांस की बीमारियों के मरीज, मधुमेह एवं एड्स पीड़ित, शराब का नशा करने वाले लोग एवं वह मरीज जिनकी तिल्ली निकाल दी गई हो, को अवश्य लगवानी चाहिए। इसके साथ ऐसे रोगियों को प्रतिवर्ष इन्फ्लूएन्जा की वैक्सीन भी लगवानी चाहिएए जो कि वायरल निमोनिया से भी बचाव करती है।

-इसके अलावा अस्पताल में होने वाले संक्रमण से बचने के कई अलग तरीके हैं जैसे हाथ धोने का उचित तरीका अपनाना, नेबुलाइजर एवं आक्सीजन के उपकरण का उचित स्टरलाइजेशन, वेन्टीलेटर एवं एन्डोट्रेकियल ट्यूब की नियमित एवं सही तरीके से सफाई एवं आईवी लाइन का नियमित रूप से बदलना आदि।

-निमोनिया के लिए व्यक्ति की प्रतिरोग क्षमता अर्थात इम्युनिटी भी जिम्मेदार होती है। अगर व्यक्ति की इम्युनिटी अच्छी है तो निमोनिया होने का खतरा कम हो जाता है। इम्युनिटी बढ़ाने के लिए स्वस्थ जीवन शैली अपनाऐं, हरी सब्जियों व फलों का सेवन करें तथा फास्ट फूड से बचें, योग व प्राणायाम करें।

(लेखक डॉ सूर्यकान्त केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हैं)

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