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अस्‍पताल रूपी मोतियों को समन्‍वय के धागे में गूंथकर सुरक्षा की माला तैयार करने की जरूरत

दुर्घटना में घायल व्‍यक्ति को नजदीकी अस्‍पताल में प्राथमिक उपचार के बाद ही भेजा जाये बड़े अस्‍पताल
दुर्घटना स्‍थल के नजदीक के अस्‍पताल में प्राथमिक उपचार के बाद करें रेफर तो बच सकती हैं हजारों जानें
दुर्घटना में घायल 80 फीसदी मरीज बिना प्राथमिक उपचार पाये सीधे आते हैं ट्रॉमा सेंटर में

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। ट्रॉमा के चलते होने वाली मौतों की संख्‍या पर नियंत्रण के लिए यह आवश्‍यक है कि दुर्घटना में घायल व्‍यक्ति को सीधे ट्रॉमा सेंटर या बड़े अस्‍पताल न लाकर अगर पास के अस्‍पताल ले जाकर उसे प्राथमिक उपचार के साथ ही ट्रॉमा के उपचार की सुविधा मिले और बड़े अस्‍पताल के लिए रेफर करने से पहले उसके साथ अस्‍पताल का समन्‍वय स्‍थापित हो ताकि मरीज जब वहां रेफर होकर पहुंचे तो उसका इलाज तुरंत शुरू हो सके। यानी छोटे और बड़े अस्‍पतालों का आपसी नेटवर्क दुरुस्‍त किये जाने की व्‍यवस्‍था बननी चाहिये। यानी अस्‍पताल रूपी मोतियों को समन्‍वय के धागे में पिरोकर सुरक्षा की एक माला तैयार किये जाने की आवश्‍यकता है,  ऐसा हुआ तो ट्रॉमा से होने वाली बड़ी संख्‍या में मौतों पर लगाम लग सकती है।

यह सुझाव नवनिर्वाचित इंडियन सोसाइटी ऑफ ट्रॉमा एंड एक्यूट केयर के यूपी चेप्‍टर के फाउंडर अध्‍यक्ष व डीन, पैरामेडिकल साइंसेस, डॉ विनोद जैन ने Hospital Networking & Trauma protocol in Trauma  विषय पर अपने विचार व्‍यक्‍त करते हुए दिया। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के अटल बिहारी बाजपेयी साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में ट्रामा सर्जरी विभाग द्वारा उत्तर प्रदेश में पहली बार 9वीं इंडियन सोसाइटी ऑफ ट्रॉमा एंड एक्यूट केयर (आई0एस0टी0ए0सी0) की तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन उन्‍होंने जानकारी देते हुए बताया कि रैंकिंग के आधार पर किस प्रकार से अस्पतालों का प्रबंधन तय किया जाए कि ट्रॉमा के मरीज को बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो सके। उन्होंने बताया कि किस प्रकार से ट्रॉमा के मरीज को सबसे नजदीक के चिकित्सालय में प्राथमिक उपचार के साथ ही ट्रॉमा से जुड़ी उपचार सुविधा उपलब्ध हो सके और सभी अस्पतालों में समन्वय स्थापित हो सके ताकि किसी मरीज को रेफर करते समय किसी भी प्रकार की असुविधा न हो और मरीज की जान बचाई जा सके।

आपको बता दें कि अगर लखनऊ स्थित केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर की बात करें तो यहां 80 फीसदी मरीज चोट लगने के बाद पहले सीधे आते हैं भले ही वे कितनी भी दूर से आ रहे हों। इसे आसान शब्‍दों में यूं समझा जा सकता है कि अगर चोट लगने के बाद सबसे नजदीकी अस्‍पताल में जाकर स्थि‍ति के अनुसार विशेष सावधानियां बरतते हुए मरीज को प्राथमिक उपचार दिला दिया जाये और उसके बाद बड़े अस्‍पताल या ट्रॉमा सेंटर रेफर किया जाये तो उसे चोट लगने के बाद  गोल्‍डन आवर में ही इलाज मिल जायेगा जिससे हजारों जिन्‍दगियों को बचाया जा सकता है। अभी तक 80 फीसदी केस में होता यह है कि दुर्घटना स्‍थल से मरीज को सीधे बड़े अस्‍पताल या ट्रॉमा सेंटर लाते हैं जिसमें अस्‍पताल तक पहुंचने में अधिक समय लगता है नतीजा यह होता है कि कई बार समय से इलाज शुरू न होने के कारण मरीज को बचाना मुश्किल हो जाता है।

चिकित्‍सक किसी भी क्षेत्र का हो उसे एटीएलएस और ट्रॉमा केयर की जानकारी जरूरी

इस अवसर पर एम्स के पूर्व निदेशक एवं इंडियन सोसाइटी ऑफ ट्रॉमा  एंड एक्यूट केयर के चेयरपर्सन प्रो0 एमसी मिश्रा ने “Research opportunities and areas in trauma care”  विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि कोई भी चिकित्सक चाहें वह किसी भी क्षेत्र का विशेषज्ञ हो जान बचाने के लिए उसे ए0टी0एल0एस0 और ट्रॉमा केयर के बारे में जानकारी होनी चाहिए क्योंकि ट्रॉमा मरीज की जान बचाने के लिए सबसे पहले उस मरीज की हालत को स्थिर करना आवश्यक होता है। इसके साथ ही उन्होंने ट्रॉमा के क्षेत्र में क्या नई रिसर्च हो रही हैं या हो सकती हैं और यह क्यों जरूरी है इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि रिसर्च के द्वारा ही हम अपने आप को बेहतर बनाने के साथ ही नई तकनीक एवं उपचार के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं।

सड़कों को सुरक्षित बनाये जाने की जरूरत

के0जी0एम0यू0 जरनल सर्जरी के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो0 रमाकांत ने Efforts on Road Safety-Are They Enough?  विषय पर चर्चा करते हुए बताया कि देश की सड़के कितनी सुरक्षित हैं और किस प्रकार से उन्हें और अधिक सुरक्षित बनाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि छोटी-छोटी चीजों में सुधार करके सड़कों को सुरक्षित बनाया जा सकता है, जिससे वर्तमान समय के मुकाबले होनी वाली सड़क दुर्घटनाओं को कम किया जा सकता है और सड़क हादसों में होनी वाली मौत के आकड़ों को कम किया जा सकता है। इसके साथ ही उन्होंने सड़क पर छुट्टा घूमने वाले जानवरों के लिए सरकार से विशेष कानून बनाकर उसका सख्ती से अनुपालन कराए जाने की मांग की, ताकि जानवरों की वजह से होने वाली दुर्घटना के मामलों में कमी आए।

सांस की नली और सर्वाइकल स्‍पाइन की सुरक्षा जरूरी

केजीएमयू न्यूरोसर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ बीके ओझा ने Early Management of Severve Traumatic Brain Enjury के विषय पर गंभीर सिर की चोटों के प्राथमिक इलाज के तरीके के बारे में जानकारी दी और बताया कि सांस की नली और सर्वाइकिल स्पाइन (रीढ़ के ऊपर की हड्डी) को सुरक्षित रखा जाए तो भी बहुत सी जान बचाई जा सकती हैं।

अंदरूनी रक्‍तस्राव रोकना बहुत जरूरी

ट्रामा सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ संदीप तिवारी ने Damage Control Surgery & Haemostatic Resuscitation  पर अपने व्याख्यान में बताया कि किस प्रकार से गंभीर मरीजों की सर्जरी की जाए और किस प्रकार से जानलेवा अंदरूनी रक्तस्राव को रोका जाए, जिससे कि मरीज की जान बचाई जा सके।

मदद करने में कानूनी बाध्‍यता आड़े नहीं

ट्रॉमा सर्जरी विभाग के डॉ समीर मिश्रा ने ट्रामा से जुड़ी कानूनी पेंचीदगियों और नियमों के बारे में विशद विवेचना करते हुए जानकारी दी कि अगर हम किसी भी मरीज को अस्पताल पहुंचाते है तो पुलिस या किसी अन्य को अपने जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं है और न ही उस व्यक्ति पर किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

हेलमेट और सीट बेल्‍ट पर जोर

दूसरे दिन के कार्यक्रम के समापन समारोह के अवसर पर चिकित्सा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो एमएलबी भट्ट मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इस अवसर पर उन्होंने के0जी0एम0यू0 ट्रॉमा सर्जरी विभाग एवं उक्त कार्यक्रम की आयोजन समिति को बधाई देते हुए कहा कि दो दिवसीय इस कार्यक्रम में सड़क सुरक्षा से जुड़ी काफी अह्म जानकारी चिकित्सकों एवं अन्य लोगों को प्राप्त हुई और हम सड़क सुरक्षा से जुड़े नियमों का पालन करते हुए हेलमेट एवं सीट बेल्ट का प्रयोग कर सड़क दुर्घटना में होने वाली मौत के आंकड़ों को कम कर सकते हैं।