आज दिनांक 19 जनवरी, 2018 को किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के दंत संकाय के प्रॉस्थोडोंटिकस विभाग द्वारा ‘बेसिक टू एडवांस्ड इंप्लांटोलॉजी’ विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन प्रारम्भ हुआ। कार्यशाला का उद्देश्य डेन्टल इम्प्लांट के विषय में चिकित्सकों का ज्ञान बढ़ाना है। कार्यशाला का उद्धाटन मुख्य अतिथि प्रो मदनलाल ब्रह्म भट्ट, कुलपति, किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय और विशिष्ट अतिथि, हेमंत राय, प्रधान सचिव, विज्ञान एवं तकनीक विभाग के करकमलो से संपन्न हुआ। कार्यशाला के प्रथम दिन अतिथि व्याख्यान एवं व्यक्तिगत प्रशिक्षण दिया गया।
कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में कुलपति ने अपने उद्बोधन में कहा कि दंत संकाय विभाग द्वारा लागातार विभिन्न कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है । इन कार्यशालाओं के माध्यम से बी0डी0एस0 के विद्यार्थि यों एवं रेजिडेंट डॉक्टरों और संकाय सदस्यों को क्लीनिकल एक्सपोजर मिलता है, इम्प्लांट लगाने और उपचार की नई विधियों का पता चलता है और उनके ज्ञान में वृद्धि होती है। विभिन्न कार्यशाला में आने वाले अतिथि वक्ता तमाम नए विद्यार्थि यों को बहु उपयोगी ज्ञान प्रदान करते हैं जिससें वो नैदानिक कार्यों में दक्षता हासिल कर सकें। इस कार्य में दंत संकाय के अंतर्गत प्रॉस्थोडोंटिकस विभाग अग्रणी भूमिका अदा कर रहा है। कार्यक्रम में हेमंत राय ने अपने उद्बोधन में कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में आधुनिक तकनीक की जरूरत है। इस तरह की कार्यशालाओं का उद्देश्य मरीज की जरूरत के अनुकूल होना चाहिए।
प्रॉस्थोडोंटिकस विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो पुरन चंद ने कहा कि पहले यह माना जाता था कि डेंटल इम्प्लांट लगाने के लिए विशेषज्ञ दंत चिकित्सकों का होना अति आवश्यक है तथा डेंटल इम्प्लांट महंगे होते हैं और केवल अमीर लोग ही इसे करा सकते हैं । किन्तु हमारा उद्देश्य है कि इस प्रकार की कार्यशालाओं के माध्यम से हमारे यहां से जो भी बी०डी०एस ग्रेजुएट दंत चिकित्सक निकले वो भी इस तरह के इम्प्लांट्स लगा सकें और यह इम्प्लांट लगाने की तकनीक जनसमान्य के लिए भी आसानी से उपलब्ध हो सके। इसलिए इस कार्यशाला में बी०डी०एस० पास इंटर्न चिकित्सकों को प्रथमिकता के तौर पर पंजीकृत किया गया।
कार्यक्रम में प्रो मनु राठी, पीजीआई, रोहतक द्वारा अतिथि व्याख्यान में बताया गया कि बोन ग्राफ्ट तकनीक के माध्यम से गली हुई हड्डियों में भी ओरल इम्प्लांट लगाया जा सकता है जिनमें किसी चोट की वजह से किसी बीमारी के कारण से हड्डियां गल गई हों। इसके लिए इस तकनीक के माध्यम से शरीर के अन्य भागों से दंत इम्प्लांट लगाने के लिए अस्थि ले ली जाती है, जैसे मरीज के ऊपर के जबड़े से, निचे के जबड़े से तालू के पिछले भाग से या हिप ज्वाईंट से, पसलियों आदि से। ऐसे मरीज जिनका किसी कारण से अन्य जगहों से अस्थि नही ली जा सकती ऐसे मरीजों को बनावटी ग्राफ्ट लगाया जाता है। ऐसे आर्टिफिशियल ग्राफ्ट सिंथेटिक मटेरीयल से बने होते हैं। एैसे आर्टिफिशियल ग्रफ्ट एनिमल बोन, कोरल, मिनरल पार्ट, ग्लास पाॅलीमर नैनो टेक्नोलजी से बनाए जाते हैं।
पहले इंप्लांट काफी महंगे होते थे किन्तु वक्त के साथ नई तकनीकों के प्रयोग के साथ अब इम्प्लांट काफी
सस्ते हो गए हैं जो कि आम आदमी भी आसानी से लगवा सकता है। ऐसे इम्प्लांट को दांत निकालने के तुरंत बाद लगाया जा सकता है किन्तु कुछ परिस्थितियों में कुछ समय के बाद लगाया जाता है। कार्यक्रम में डाॅ0 दिनेश राय ने बताया कि डेन्टल की तुरंत लोडिंग करके मरीज के
समय और पैसे दोनों को बचाया जा सकता है। मरीजों को दांत निकालने के बाद उसी दिन 24 से 48 घंटे के अंदर इंट्राओरल वेल्डिंग तकनीक के माध्यम से नए दांत लागए जा सकते हैं। उन्होंने बताया की इस तकनीक के माध्यम से इम्प्लांट लगाने के 48 घण्टे के अंदर संपूर्ण बत्तीसी को लगाया जा सकता है। इस तकनीक में वेल्डिंग द्वारा ऊपर के टाॅप को जोड़ दिया जाता है जिससे की इम्प्लांट हिलता नही है। इस तकनीक से त्वरित कार्य होता है और मरीज शीघ्र बोलने और खाने लगता है। तथा सबसे महत्वपूर्ण बात की इसमें मरीज की दो बार सर्जरी नही करनी पड़ती है। प्रोस्थोडोंटिक्स विभाग के डाॅ० कमलेश्वर सिंह, संयुक्त आयोजन सचिव द्वारा डेन्टल ब्रिज और उसके रिमूवल प्रोस्थोडोंटिक्स के ऊपर इम्प्लांट के महत्व को बताया गया। डेण्टल इम्प्लांट को लगाने में दांत को रिड्यूस नही करना पड़ता जिससे दर्द और पानी लगने की समस्या
नही आती है। डेंटल इम्प्लांट को लगाने से खाना चबाने की क्षमता बढ़ जाती है, जब हम रिमूवल डेंटल प्रोस्थोडोंटिक्स से कम्पेयर करते हैं तो ये अत्याधुनिक उपचार का तरीका है जिससे दातों का प्रत्यारोपण किया जाता है। डाॅ० लक्ष्य कुमार ने बताया कि इस कार्यशाला में पूरे भारत से 80 दंत विशेषज्ञों, रेजिडेंट डॉक्टरों द्वारा प्रतिभाग किया जिससे डेन्टल इम्प्लांट के प्रति लोगों की कुशलता बढ़ेगी।