दिल को छूते शब्दों से गुंथी काव्यमाला-3
कहते हैं कि जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि, शब्दों का मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर होता है। शब्दों में इतनी ताकत होती है कि उनसे दिल में घाव बन भी सकता है और घाव भर भी सकता है, बस यह निर्भर इस पर करता है कि शब्दों से नश्तर बनाया है या मरहम। जीवन की आपाधापी, दौड़-भाग, मूड पर सीधा असर डालने वाले समाचारों से बोझिल होते मस्तिष्क को सुकून देने की एक कोशिश ‘सेहत टाइम्स’ प्रेरक कहानियों को प्रकाशित करके पहले ही शुरू कर चुका है, अब पाठकों के लिए दिल को छू लेने वाली काव्य रचनायें प्रस्तुत हैं। लखनऊ की कवयित्री अल्का निगम ने अनेक विषयों पर अपनी कलम चलायी है, उनके काव्य संग्रह लफ्जों की पोटली की दो और रचनाएं प्रस्तुत हैं…
ओ रे कन्हाई तू है बड़ा ही हरजाई
ओ रे कन्हाई तू है बड़ा ही हरजाई
काहे गोपियन बिच एक राधा तोहे भायी।
हाय ओ रे कन्हाई….
रज गोधूलि की माथे पे सजा के
पाछे पाछे गउअन के हम भी तो हैं भागे
काहे एक राधा ही तोको नजर आई रे,
ओ रे कन्हाई तू है बड़ा ही हरजाई रे
काहे गोपियन बिच एक राधा तोहे भायी।
बाँसुरी की तान जब कानों में है बाजे
पग घुँघरू बाँध साँसें मोरी नाचे।
राधा की पायलिया ही काहे तोहे भाई रे,
ओ रे कन्हाई तू है बड़ा ही हरजाई रे
काहे गोपियन बिच एक राधा तोहे भायी।
राधा राधा सुनके ये मनवा बौराये रे
एक तेरा नाम ही क्या वोही दोहराये रे।
मैंने भी तो अपनी सुध बिसराई रे,
ओ रे कन्हाई तू है बड़ा ही हरजाई
काहे गोपियन बिच एक राधा तोहे भायी।
ओ रे कन्हाई तू है बड़ा ही हरजाई
काहे गोपियन बिच एक राधा तोहे भायी।
हाय ओ रे कन्हाई….
अंतिम श्वास
ए देह की अंतिम श्वास मेरी
कुछ पल तो ठहर
कुछ पल तो ठहर….
नयनों के सजल मुहाने पे
जो चंद इच्छाएं रखी हैं
अंतिम क्षणों की बेला में
उन्हें बाँध तोड़ बह जाने दे।
ए देह की अंतिम श्वास मेरी
कुछ पल तो ठहर
कुछ पल तो ठहर….
एक डोर बंधी है रेशम की
कुछ तन और मन के रिश्तों की,
माना के साथ न जाएंगे
पर नयनों में भर ले जाने दे।
ए देह की अंतिम श्वास मेरी
कुछ पल तो ठहर
कुछ पल तो ठहर….
देह की जर्जर गठरी में
मेरे कर्मों की जो पूँजी है,
जो काँकर हैं उन्हें चुभने दे
पर मोती संग ले जाने दे।
ए देह की अंतिम श्वास मेरी
कुछ पल तो ठहर
कुछ पल तो ठहर….