-आईएमए ने जताया था खुलकर विरोध, अब स्थगन के फैसले का किया स्वागत
सेहत टाइम्स
लखनऊ/नयी दिल्ली। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने डॉक्टरों के लिए केवल जेनेरिक दवाएं लिखने के अपने दिशानिर्देशों पर रोक लगा दी है, 24 अगस्त को लिये गये इस निर्णय से ब्रांडेड दवाओं बनाम जेनेरिक दवाओं को लेकर देश में छिड़ी बड़ी बहस पर विराम लगने की संभावना है। इस मुद्दे पर देश में चिकित्सकों के सबसे बड़े संगठन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने भी खुला विरोध जताते हुए देश की जनता के स्वास्थ्य हित में इस दिशानिर्देश को वापस लेने की मांग की थी। अब एसोसिएशन द्वारा इस पर स्थगन किये जाने पर आभार जताया गया है।
ज्ञात हो 2 अगस्त को जारी, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर (पेशेवर आचरण) विनियम, 2023 पर आईएमए के साथ-साथ भारतीय फार्मास्युटिकल एलायंस (आईपीए) ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि यह संभव नहीं है। यही नहीं देश के शीर्ष दवा नियामक, सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड ड्रग कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ) ने भी अधिसूचना में भाषा पर सवाल उठाया था।
24 अगस्त का निर्णय केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा आईएमए और आईपीए सहित विभिन्न हितधारकों के साथ दिशानिर्देशों पर चर्चा करने के लिए एक बैठक आयोजित करने के कुछ दिनों बाद आया, जिन्होंने दिशानिर्देशों के बारे में चिंता व्यक्त की थी। नयी अधिसूचना में आयोग द्वारा कहा गया है कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर (पेशेवर आचरण) विनियम, 2023 को तत्काल प्रभाव से स्थगित रखा जाता है… भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम, 2002, तत्काल प्रभाव से लागू होंगे।
ज्ञात हो जेनेरिक दवाओं पर निर्देशों के अलावा, एनएमसी दिशानिर्देशों में निरंतर चिकित्सा शिक्षा, सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के उपयोग और डॉक्टरों के एक गतिशील रजिस्टर को बनाए रखने जैसे मुद्दों पर निर्देश शामिल थे। इसने डॉक्टरों को दवा कंपनियों द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों में भाग लेने से भी रोक दिया गया था।
आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ शरद कुमार अग्रवाल और महासचिव डॉ अनिल कुमार जे नायक ने अपने विरोध में कहा था कि सरकार अगर जेनेरिक दवाओं को लागू करने के प्रति गंभीर है तो सरकार को जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए केवल जेनेरिक दवाओं को ही लाइसेंस देना चाहिए, किसी ब्रांडेड दवाओं को नहीं। उनका कहना है कि जेनेरिक दवाओं के लिए सबसे बड़ी बाधा इसकी गुणवत्ता के बारे में अनिश्चितता है। देश में गुणवत्ता नियंत्रण बहुत कमजोर है व्यावहारिक रूप से दवाओं की गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं है और गुणवत्ता सुनिश्चित किए बिना दवाएं लिखना रोगी के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगा।
आईएमए ने कहा था कि भारत में निर्मित 0.1% से भी कम दवाओं की गुणवत्ता का परीक्षण किया जाता है पदाधिकारी ने सुझाव दिया था कि इस कदम को तब तक के लिए टाल दिया जाना चाहिए जब तक सरकार बाजार में जारी सभी दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित नहीं कर लेती। रोगी की देखभाल और सुरक्षा पर समझौता नहीं किया जा सकता। आईएमए का कहना था कि सरकार ब्रांडेड, ब्रांडेड जेनेरिक और जेनेरिक जैसी कई श्रेणियों की अनुमति देता है और फार्मास्यूटिकल कंपनियों को एक ही उत्पाद को अलग-अलग कीमतों पर बेचने की अनुमति देता है। कानून में ऐसी खामियों को दूर किया जाना चाहिए।