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एनएमसी बिल से आयुष चिकित्‍सकों को नहीं मिलेगा एमबीबीएस जैसा दर्जा, मनमानी फीस की भी छूट नहीं

केजीएमयू, पीएमएस के चिकित्‍सकों ने की अपील, बिल का विरोध करने वाले भ्रम न पालें

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। नेशनल मेडिकल कमीशन बिल में यह प्रावधान नहीं है कि ब्रिज कोर्स करके बीएएमएस या बीयूएमएस जैसे आयुष डिग्रीधारक को एमबीबीएस की तरह प्रैक्टिस करने की छूट मिल जायेगी। यही नहीं, इसी तरह प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों को भी मनमानी तरीके से फीस निर्धारण का अधि‍कार दिये जाने की बात भी सही नहीं है।

यह कहना है बिल को गहनता से पढ़ने वाले प्रतिष्ठित चिकित्‍सकों का। आपको बता दें कि नेशनल मेडिकल कमीशन बिल को लेकर चल रहे चिकित्‍सकों के विरोध, दिल्‍ली एम्‍स सहित वहां के दूसरे अस्‍पतालों में हड़ताल के चलते बेपटरी हो चुकी स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं को पटरी पर लाने की कवायद जारी है। सरकार की ओर से जहां इस बारे में समझाने का प्रयास किया जा रहा है वहीं चिकित्‍सकों के बीच से भी कई चिकित्‍सक इस बिल को लेकर फैली भ्रांति को दूर करने का अपना सामाजिक दायित्‍व निभा रहे हैं। खास बात यह है कि ये सभी चिकित्‍सक केजीएमयू जैसी प्रतिष्ठित संस्‍था के हैं या उत्‍तर प्रदेश सरकार के चिकित्‍साधिकारी हैं। इन चिकित्‍सकों का कहना है कि चूंकि हमने बिल का अध्‍ययन किया है, इसलिए हमें यह लगता है कि विरोध करने वालों को उनकी आशंकाओं के बारे में क्लियर कर दें। ये चिकित्‍सक बिल के बारे में बताये जा रहे अपने विचार को अपने व्‍यक्तिगत विचार बता रहे हैं। क्‍योंकि ये चिकित्‍सक बिल का विरोध करने वाली संस्‍थाओं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, पीएमएस एसोसिएशन यूपी जैसी संस्‍थाओं से भी जुड़े हैं।

पीएमएस संघ के एक पदाधिकारी कहते हैं कि जिस तरह से बिल के खिलाफ बताया जा रहा है वैसा नहीं है, यह वास्तव में चिकित्सा क्षेत्र के लिए एक बहुत अच्छा सुधार है। उन्‍होंने कहा कि मैंने लोकसभा टीवी पर सारी कार्यवाही देखी थी, डॉ हर्षवर्धन ने विस्‍तार से सभी बातों को क्लियर किया है। इसके अनुसार एनएमसी के 25 सदस्‍यों में से 21 सदस्‍य प्रख्‍यात चिकित्‍सक होंगे। आपको बता दें कि कहा यह जा रहा है कि इसके सदस्‍यों में चिकित्‍सकों को तवज्‍जो नहीं दी गयी है।

एमबीबीएस करने के बाद एग्जिट परीक्षा के बारे में उन्‍होंने कहा कि  यह अंतिम वर्ष की परीक्षा, लाइसेंस परीक्षा, योग्यता के लिए पीजी प्रवेश के लिए और विदेशी स्नातकों के लिए एक विन्‍डो रूप में काम करेगा। यही नहीं इसमें एक बार सफल न होने पर फि‍र से प्रयास करने का पूरा अवसर है, प्रयासों की संख्‍या की कोई सीमा नहीं, एक बार…दो बार…या और ज्‍यादा। यहां तक ​​कि अगर किसी ने इसे पास कर लिया है, और वह अपने रैंक से संतुष्‍ट नहीं है  तो पीजी प्रवेश के लिए स्कोर में सुधार करने के लिए फिर से परीक्षा दे सकता है।

उन्‍होंने बताया कि लगभग सभी देशों में डॉक्टरों के रूप में अभ्यास करने के लिए लाइसेंस के लिए ऐसी परीक्षाएं हैं। इसलिए इसमें कुछ भी गलत नहीं है, इसके विपरीत यह एक स्वागत योग्य कदम है क्योंकि यह न्यूनतम आवश्यक ज्ञान के साथ डॉक्टरों को प्रैक्टिस के लिए तैयार करेगा। उन्‍होंने कहा कि इसी प्रकार सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाता का जो जिक्र किया गया है,  वे डॉक्टर नहीं हैं, बल्कि डॉक्टरों के सहायक हैं, और यह प्रणाली संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, चीन और कई अन्य देशों में प्रचलित है।

उन्‍होंने कहा कि यहां तक ​​कि विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे विकासशील देशों के लिए अनुशंसित किया है। ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं देना अत्यधिक आवश्यक है। ऐसे में इन सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाता की अहम भूमिका होगी।

चिकित्‍सकों का कहना था कि आज भी 10वीं पास व्यक्तियों में से लाखों लोग ग्रामीण और यहां तक ​​कि दिल्ली जैसे शहरों में डॉक्टरों के रूप में अभ्यास कर रहे हैं, ऐसे में ये सीएचपी उनकी जगह लेंगे।

चिकित्‍सकों ने कहा कि कहा जा रहा है कि निजी कॉलेजों को मनमाने तरीके से फीस निर्धारण का अधिकार होगा, यह गलत है। उन्‍होंने कहा कि देश में MBBS की कुल सीटें लगभग ।0000 हैं, इनमें

सरकारी कॉलेजों में 40000 सीटें तथा शेष 40000 निजी कॉलेजों में हैं। इनमें 40000 +20000 सीटों पर फीस का नियमन एनएमसी द्वारा निर्धारित तथा बाकी 20000 सीटों पर फीस निर्धारण सम्‍बन्धित राज्य सरकार के नियमों के अनुसार होगा।

किसी राज्य में मेडिकल कॉलेज की स्थापना राज्य सरकार के अनिवार्य प्रमाण पत्र के बिना की जा सकती है। सभी मेडिकल कॉलेजों का मूल्यांकन आयोग के रेटिंग बोर्ड द्वारा किया जाएगा और रैंक आवंटित की जाएगी। राज्य चिकित्सा परिषदें काम करना जारी रखेंगी क्योंकि वे वर्तमान में काम कर रही हैं।