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मंकीपॉक्स अभी भारत में नहीं, लेकिन इससे ज्यादा डरने की जरूरत नहीं

पीजीआईसीएच में आयोजित किया गया जागरूकता कार्यक्रम

सेहत टाइम्स
लखनऊ/नोएडा
। पीजीआईसीएच के निदेशक प्रो अजय सिंह ने कहा है कि मंकीपॉक्स वायरस अभी भारत मे नहीं आया है किन्तु विभिन्न समाचारों में प्रकाशित हो रही खबरों के माध्यम से आमजनों में भी एक चिंता का विषय बना हुआ है। इससे ज्यादा डरने की जरूरत नहीं है।

प्रो अजय सिंह ने यह बात संस्थान के माइक्रोबायोलॉजी विभाग एवं बाल रोग विभाग द्वारा ‘मंकीपॉक्स वायरस की पहचान एवं बचाव’ विषय पर जन जागरूकता कार्यक्रम के मौके पर कही। उन्होंने कहा कि साफ-सफाई का घ्यान रखें एवं मास्क का उपयोग करें। उन्होंने यह भी कहा कि हमें हमेशा इसका सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। इससे ग्रसित मरीज को हवादार कमरे में आइसोलेट रखना चाहिए तथा संभावित मरीज को मास्क एवं देखभाल करने वाले को ग्लब्स और मास्क का इस्तेमाल करना चाहिए।

कार्यक्रम में डॉ सुमी नंदवानी, विभागाध्यक्ष माइक्रोबायोलॉजी विभाग द्वारा बताया गया कि वर्ष 2022 में मंकीपॉक्स वायरस का प्रभाव अमेरिका सहित कई यूरोपीय देशों में देखने को मिला है जबकि अफ्रीका में यह पहले से ही मौजूद था। लगभग 50000 से ज्यादा प्रकार के वायरस समुंदर के गर्भ में मौजूद है जिनमें से समय-समय पर कोई न कोई वायरस जानवरों के साथ-साथ मनुष्य को भी अपनी गिरफ्त में लेता रहता है। मंकीपॉक्स एक जूनोटिक डिजीज है जो सर्वप्रथम 1958 में बंदरों में मिला था। मनुष्यों में सर्वप्रथम 1970 में इसका पहला केस युगांडा में देखने को मिला था। अफ्रीकी देशों में यह एक एंडेमिक की तरह पाया जाता है। यह जानवरों (गिलहरी, चूहों, प्रेरीडॉग) से इंसानों में उनके काटने या खरोच मारने से फैलता है। इस वायरस से ग्रसित इंसान अगर लंबे समय तक किसी दूसरे इंसान के संपर्क में रहता है तो उसमे भी यह वायरस फैल सकता है। उन्होंने कहा कि 2022 में यह पुरुषों से पुरुषों (होमो सेक्सुअल) में भी देखने को मिल रहा है तथा गर्भवती मां के प्लेसेंटा से भ्रूण में फैलता है । इसमें शरीर में पानी भरे रैशेज हो जाते हैं तथा यह चेचक की तरह फैलता है। भारत में जिन मरीजों को चेचक की वैक्सीन लगी है वह भी इस वायरस के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न कर सकते हैं। इसकी पहचान स्किन के रैशेज से सैंपल लेकर, गले से स्वाब एवं ब्लड सैम्पल की जांच के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है। भारत मे अभी इसकी जांच केवल एन आई वी पुणे में मौजूद है।

इस मौके पर डॉ भानु भाकरी बाल रोग विभाग ने कहा कि, मंकीपॉक्स को इस बार ऐसे देशों में देखा जा रहा है जहां साधारणतः यह नहीं मिलता है। इसमें बुखार, नाक बहने के शुरुआती लक्षण के साथ-साथ शरीर पर चकत्ते बनने लगते हैं। यह लक्षण 20 से 25 दिन तक रहते है। इस वायरस से ग्रसित होने पर मरीज को लक्षण आधारित उपचार की जरूरत होती है और आवश्यकता पड़ने पर इसकी दवा भी मौजूद है। इससे बचाव के लिए हमें बिना जरूरत के भीड़भाड़ वाली जगह पर जाने से बचना चाहिए बार-बार हैंड सैनिटाइजर का उपयोग एवं हाथ धोना चाहिए तथा मास्क का भी उपयोग करना चाहिए।

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