-विश्व सेप्सिस दिवस पर केजीएमयू के पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग में 13-14 सितम्बर को दो दिवसीय सम्मेलन
सेहत टाइम्स
लखनऊ। एंटीबायोटिक्स का दुरुपयोग भविष्य के लिए घातक है। एक हालिया अध्ययन के अनुसार भारत में आईसीयू के आधे से अधिक मरीज सेप्सिस से पीड़ित हैं, पिछले एक दशक में ऐसे मामले तेजी से बढ़े हैं। एक अध्ययन में देशभर के 35 आईसीयू से लिए गए 677 मरीजों में से 56 प्रतिशत से अधिक मरीजों में सेप्सिस पाया गया। और इसमें अधिक चिंता की बात यह थी कि 45 प्रतिशत मामलों में, संक्रमण बहु-दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण हुआ था। एंटीबायोटिक दवाओं के अनुचित या विलंबित उपयोग से संक्रमण बढ़ सकता है, खासकर तब जब बैक्टीरिया उपचार के प्रति प्रतिरोधी होते हैं, जिससे सेप्सिस का खतरा बढ़ जाता है।
यह जानकारी पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग द्वारा विश्व सेप्सिस दिवस के उपलक्ष्य में 13 और 14 सितंबर को आयोेजित किये जा रहे 2-दिवसीय सम्मेलन के बारे में आज 12 सितम्बर को बुलायी गयी पत्रकार वार्ता में दी गयी। पत्रकार वार्ता में केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रोफेसर (डॉ.) वेद प्रकाश, वीपी चेस्ट इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली के पूर्व निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) राजेंद्र प्रसाद, केजीएमयू के यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर (डॉ.) अपुल गोयल, क्रिटिकल केयर मेडिसिन के प्रमुख प्रोफेसर (डॉ.) अविनाश अग्रवाल, रेस्पायरेटरी मेडिसिन के प्रो0 (डा0) आरएएस कुशवाहा मौजूद रहे। पत्रकार वार्ता में बताया गया कि यह सम्मेलन डॉक्टरों, नर्सों और अन्य प्रमुख प्रदाताओं सहित स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की एक विस्तृत शृंखला के बीच सेप्सिस प्रबंधन में सर्वोत्तम प्रथाओं के कार्यान्वयन के लिए जागरूकता बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया है।
डॉ वेद प्रकाश ने बताया कि नवीनतम अनुमान के अनुसार, विश्व में सालाना लगभग 5 करोड़ लोगों को सेप्सिस होती है जिसमें और लगभग 1 करोड़ 10 लाख मरीजों की मृत्यु हो जाती है। भारत में प्रतिवर्ष सेप्सिस से लगभग 1 करोड 10 लाख व्यक्ति ग्रसित होते हैं जिनमें लगभग 30 लाख व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है। भारत में सेप्सिस से मृत्यु दर लगभग प्रति 100,000 लोगों पर 213 है, जो वैश्विक औसत दर से काफी अधिक है। सेप्सिस सभी उम्र और पृष्ठभूमि के लोगों को प्रभावित कर सकता है। इसकी घटनाएं बढ़ रही हैं, पिछले कुछ दशकों में इसमें अत्यधिक वृद्धि देखी गई है। सेप्सिस को टीकाकरण और अच्छी देखभाल से रोका जा सकता है और शीघ्र पहचान और उपचार से सेप्सिस मृत्यु दर को 50 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि सेप्सिस प्रमुखतः निमोनिया (फेफडों में संक्रमण) मूत्र मार्ग में होने वाला संक्रमण या ऑपरेशन की जगह होने वाले संक्रमण की वजह से होता है। सेप्सिस के लिए प्रमुख रूप से शुगर (डायबिटीज) कैंसर के मरीज एवंरोग प्रतिरोधक क्षमता कम करने वाली दवांइयां जैसे स्टेरॉइड खाने वाले मरीज ज्यादा प्रभावित होते है। सेप्सिस का सबसे आम कारण, जीवाणु संक्रमण, है जो विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न हो सकता है, इनमें वायरल संक्रमण, फंगल संक्रमण, परजीवी संक्रमण, अस्पताल से प्राप्त संक्रमण, समुदाय-प्राप्त संक्रमण, नशीली दवाओं का सेवन भी इसके लिए जिम्मेदार होता है। इसके अतिरिक्त कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोग, जैसे कि कीमोथेरेपी से गुजरने वाले, प्रत्यारोपण प्राप्तकर्ता और एचआईवी एड्स वाले व्यक्तियों में संक्रमण के ज्यादा मामले सामने आते हैं। सबसे गंभीर मामलों में, सेप्सिस सेप्टिक शॉक में बदल सकता है, जिसमें बेहद कम रक्तचाप, परिवर्तित चेतना और कई अंग विफलता के लक्षण होते हैं। सेप्टिक शॉक एक जीवन-घातक आपातकाल है।
सेप्सिस के लक्षण
सेप्सिस एक चिकित्सीय आपातकाल है जो तेजी से विकसित हो सकता है। शीघ्र उपचार के लिए इसके संकेतों और लक्षणों की शीघ्र पहचान महत्वपूर्ण है। 1. बुखार या हाइपोथर्मिया 2. हृदय गति का बढ़ना 3. तेजी से सांस लेना एवं सांस फूलना 4. भ्रम या परिवर्तित मानसिक स्थिति 5. निम्न रक्तचाप 6. सांस लेने में कठिनाई इसके लक्षणों में शामिल हैं।