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रोग के निदान और उपचार में उपयोगी क्रांतिकारी जानकारियों के साथ माइक्रोकॉन-2023 का आगाज

-पूर्व संध्या पर केजीएमयू में छह प्री कॉन्फ्रेंस कार्यशालाओं का आयोजन, 23 से 26 नवम्बर तक चलेगा सम्मेलन


सेहत टाइम्स

लखनऊ। रोग के निदान और उपचार में उपयोगी क्रांतिकारी जानकारियों से लबरेज प्री कॉन्फ्रेंस कार्यशालाओं के साथ 22 नवम्बर को माइक्रोकॉन-2023 की शुरुआत हो गयाी। 23 से 26 नवम्बर तक केजीएमयू के अटल बिहारी वाजपेयी साइंटिफिक सेंटर में होने वाले इंडियन एसोसिएशन ऑफ मेडिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट के इस तीन दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन 23 नवम्बर की शाम को भव्य समारोह के साथ करने की तैयारी है।

केजीएमयू में 22 नवम्बर को आयोजित छह कार्यशालाओं में सटीक तरीके से रोग की माइक्रोबॉयल पहचान करने के तरीकों में किस प्रकार तेजी लाई जाए, उभरते फंगल के खतरे से जूझ रही दुनिया में कैसे इस चुनौती से निपटा जाए, नैनोपोर की महत्वपूर्ण भूमिका, मौजूदा शोध साक्ष्य को संलेषित और विश्लेषण करने का तरीका, स्कैनिंग इलेक्ट्रो माइक्रोस्कॉपी का महत्व के साथ ही WHOnet सॉफ्टवेयर का प्रभावी ढंग से उपयोग करने जैसे विषयों पर कॉन्फ्रेंस में भाग ले रहे प्र​तिभागियों को महत्वपूर्ण जानकारियों के साथ माइक्रोबियल मार्वल्स का अनावरण हुआ।

कार्यशालाओं में माइक्रोबायोलॉजिस्ट, चिकित्सकों, शोधकर्ताओं और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के लिए आधारशिला प्रदान करना, मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी में नवीनतम प्रगति के बारे में जानने का विशेष अवसर मिला। इसके तहत बुनियादी और अनुवादात्मक अनुसंधान के बीच अंतर को पाटने के लिए डिज़ाइन की गई एक कार्यशाला में जीन टारगेटिंग द्वारा आनुवंशिक अध्ययन के लिए एक मॉडल के रूप में प्रयोगशाला पशु हैंडलिंग और सी. एलिगेंस में siRNA का उपयोग करने की जानकारियां दी गयीं। आनुवंशिक अध्ययन को आगे बढ़ाने में प्रयोगशाला पशु मॉडल, विशेष रूप से सी. एलिगेंस की अपरिहार्य भूमिका के बारे में बताया गया। इससे प्रतिभागियों को siRNA का उपयोग करके जीन लक्ष्यीकरण में अंतर्दृष्टि प्राप्त होगी, जिससे उनकी गहरी समझ को बढ़ावा मिलेगा।

इसी प्रकार एक कार्यशाला में नमूने से रिपोर्ट तक MALDI-TOF MS और स्वचालित के साथ माइक्रोबियल निदान को सुव्यवस्थित करने की जानकारी दी गयी। ऐसे युग में जहां परिशुद्धता और गति सर्वोपरि है, यह कार्यशाला क्रांति लाने पर केंद्रित है माइक्रोबियल निदान. मैट्रिक्स-असिस्टेड लेजर डिसोर्प्शन/आयोनाइजेशन टाइम-ऑफ़फ्लाइट मास स्पेक्ट्रोमेट्री (MALDI-TOF MS) और स्वचालित पहचान परीक्षण में अंतर्दृष्टि प्रदान करके, प्रतिभागी
को माइक्रोबियल पहचान में तेजी लाने और सटीकता बढ़ाने का तरीका सिखाया गया।


उभरते फंगल खतरों से जूझ रही दुनिया में, इस कार्यशाला ने एक व्यापक सिंहावलोकन प्रस्तुत किया
प्रयोगशाला निदान तकनीकों, एंटिफंगल संवेदनशीलता परीक्षण (एएफएसटी), और अत्याधुनिक
आणविक विधियाँ की उपस्थित लोगों को निपटने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल से लैस किये जाने, फंगल संक्रमण से प्रभावी ढंग से, समय पर और सटीक रोगी देखभाल सुनिश्चित करने की जानकारी दी गयी।

कोविड-19 और उसके बाद से कोविड-19 महामारी का विकास जारी है, इस पर आयोजित कार्यशाला ने नैनोपोर की महत्वपूर्ण भूमिका का पता लगाया। नेक्स्ट-जेनेरेशन सीक्वेंसिंग (एनजीएस) न केवल वायरस को समझने में बल्कि इसके लिए मार्ग प्रशस्त करने में भी उपयोगी है।

एक अन्य वर्कशॉप में मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी में भविष्य के अनुप्रयोग पर चर्चा की गयी। इसमें प्रतिभागी
भी शामिल हुए। इसमें एनजीएस प्रौद्योगिकी की स्थिति और महामारी से परे स्वास्थ्य देखभाल के लिए इसके संभावित प्रभाव, शोध प्रश्न तैयार करने से लेकर परिणामों को संश्लेषित करने तक एक व्यवस्थित समीक्षा करना बताया गया। किसी विशेष विषय पर, साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने को सुनिश्चित करना और क्षेत्र को आगे बढ़ाना, ज्ञान के मौजूदा भंडार को समझने के इच्छुक शोधकर्ताओं और अभ्यासकर्ताओं के लिए कौशल महत्वपूर्ण है।

एक अन्य कार्यशाला का पहला घटक व्यवस्थित समीक्षा प्रक्रिया पर केंद्रित था। मौजूदा शोध साक्ष्यों को संश्लेषित और विश्लेषण करने के लिए एक सावधानीपूर्वक और संरचित दृष्टिकोण अपनाने, संपूर्ण साहित्य खोज, अध्ययन का आलोचनात्मक मूल्यांकन निष्कर्षों की व्यवस्थित प्रस्तुति शामिल है। उपस्थित लोगों को इसमें शामिल चरणों के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त हुई।

एक अन्य वर्कशॉप में मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी में पारंपरिक और नए अनुप्रयोग के तहत स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (एसईएम) की दुनिया पर प्रकाश डाला गया। एसईएम एक शक्तिशाली इमेजिंग तकनीक है
जो उच्च स्तर पर नमूनों की सतह आकृति विज्ञान की जांच करने के लिए इलेक्ट्रॉनों का उपयोग करती है।

इनके अतिरिक्त विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा समर्थित WHONET प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला प्रतिभागियों को सशक्त बनाती है। इसमें WHONET सॉफ़्टवेयर का प्रभावी ढंग से उपयोग करने का कौशल, निगरानी में वैश्विक प्रयासों को मजबूत करना, रोगाणुरोधी प्रतिरोध, सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए इस बढ़ते खतरे से निपटने के लिए डब्ल्यूएचओ के मिशन के साथ जुड़ना जैसी बातों के बारे में बताया गया।
इन कार्यशालाओं के वक्ताओं में डॉ. मालिनी आर. कपूर, डॉ. विकास मनचंदा, डॉ. नंदिनी सेथुरमन, प्रो. सोनल सक्सेना, डॉ. माला छाबड़ा, डॉ. अनुज शर्मा (डब्ल्यूएचओ), और प्रो. आर.के.गर्ग शामिल रहे तथा कार्यशाला के समन्वयकों में प्रो. अमिता जैन, प्रो. विमला वेंकटेश, डॉ. शीतल वर्मा, प्रो.प्रशांत गुप्ता, डॉ. पारुल जैन, डॉ. श्रुति राडेरा, डॉ. रुंगमेई एस के मराक, डॉ. अनुपम दास व अन्य ने कार्यशाला के सत्रों को संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्री-कॉन्फ्रेंस कार्यशालाओं में 300 से अधिक प्रतिभागियों की भारी प्रतिक्रिया देखी गई।

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