सभी नौ अभियुक्तों की गिरफ्तारी हो चुकी, पुलिस कर रही है मनीष से पूछताछ
लखनऊ. गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बीती 10-11 अगस्त को हुई बच्चों की मौत के मामले में गिरफ्तारी से बाकी आखिरी अभियुक्त पुष्पा सेल्स के मालिक मनीष भंडारी को भी पुलिस ने आज सुबह गिरफ्तार कर लिया। बताया जाता है कि मनीष बिहार भागने की फिराक में था। पुलिस के अनुसार मनीष को आज ही अदालत में पेश कर रिमांड पर लेने की अर्जी दी जायेगी। बताया जाता है कि मनीष भंडारी शनिवार से ही अदालत में समर्पण करने के लिए प्रयासरत था, इसकी सूचना मिलते ही पुलिस ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी थी।
सीओ गोरखपुर कैंट अभिषेक कुमार सिंह ने बताया कि कि मनीष भंडारी को आज सुबह देवरिया बाईपास से गिरफ्तार किया गया है। उन्होंने बताया कि पुलिस को सूचना मिलने के बाद पुलिस टीम ने देवरिया बाईपास पहुंच कर गिरफ्तार कर लिया वह एक गाड़ी में सवार था। ज्ञात हो बीती 10-11 अगस्त को लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित होने के बाद 30 बच्चों की मौत हो गयी थी। इस मामले में सबसे पहले मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ राजीव मिश्र को निलंबित किया था इसके बाद डॉ कफील को एईएस प्रभारी के पद से हटाया गया था। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में डॉ राजीव मिश्र, उनकी पत्नी डॉ पूर्णिमा शुक्ला, एईएस प्रभारी डॉ कफील व ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कम्पनी के मालिक मनीष भंडारी सहित नौ लोगों को दोषी ठहराते हुए उनके खिलाफ एफआईआर लिखाने की सिफारिश की थी।
जिन नौ लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करायी गयी थी उनमें ऑक्सीजन सप्लायर कंपनी पुष्पा सेल्स के मालिक मनीष भंडारी पर आरोप है कि कंपनी पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड ने लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई की जिम्मेदारी को पूरा नहीं किया। ये काम क्रिमिनल एक्ट की कैटेगरी में आता है। कंपनी ने 2014 में इस अस्पताल में सप्लाई शुरू की थी। पेमेंट का यह झगड़ा 23 नवंबर 2016 से शुरू हुआ।
इसके अलावा निलंबित डॉ. राजीव मिश्र पर आरोप है कि घूस के लालच में इन्होंने 2016-17 के ढाई करोड़ रुपए लैप्स करा दिए और अगस्त में बजट होने के बावजूद घूस के लिए पुष्पा सेल्स का पेमेंट रोका। यह भी आरोप है कि ऑक्सीजन की कमी होने के बावजूद वे 10 अगस्त को सीनियर अफसरों को सूचना दिए बगैर मेडिकल कॉलेज से चले गए, जो आपराधिक साजिश की श्रेणी में आता है। इसी प्रकार एचओडी, एनेस्थीसिया डिपार्टमेंट डॉ. सतीश पर आरोप है कि ऑक्सीजन रुकने की जानकारी के बावजूद डॉ. सतीश डिपार्टमेंट और हेडऑफिस छोडक़र चले गए। उन्होंने बच्चों की जान बचाने की कोशिश नहीं की, जबकि उन्हें पता था कि ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत हो सकती है।
इंसेफलाइटिस डिपार्टमेंट हेड डॉ. कफील खान पर आरोप है कि एमसीआई में रजिस्ट्रेशन न होने के बाद भी पत्नी के नर्सिंग होम में प्रैक्टिस करते रहे। मरीजों के इलाज में जो कोशिश इन्हें करनी चाहिए थी, वो नहीं की। सरकारी डॉक्टर होते हुए भी उन्होंने मीडिया के जरिए लोगों और जनता को धोखा देने की कोशिश की। सरकारी नियमों का गलत इस्तेमाल किया। निलंबित प्रिंसिपल की पत्नी डॉ पूर्णिमा शुक्ला पर आरोप है कि भ्रष्टाचार कराने में इनका अहम किरदार था। वे लेखा विभाग के कर्मचारियों को फोन करके कमीशन और गैर कानूनी तरीके से पैसे वसूलती थीं।
चीफ फार्मासिस्ट, गजानंद जायसवाल पर आरोप है कि वह डॉ पूर्णिमा शुक्ला से मिलकर कमीशन के लिए फर्मों का पेमेंट करते थे। एकाउन्टेन्ट क्लर्क उदय प्रताप शर्मा, असिस्टेंट क्लर्क संजय त्रिपाठी, और क्लर्क सुधीर पांडेय को कि इन लोगों को घूस के लालच में लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई करने वाली कंपनी का पेमेंट रोकने का दोषी ठहराया गया है।
जांच रिपोर्ट में कहा गया था कि पुष्पा सेल्स नाम की कंपनी ने पेमेंट बकाया होने की वजह से ऑक्सीजन सिलेंडर की सप्लाई रोक दी थी। इस विषय में कंपनी का कहना है कि हमने 14 रिमांडर भेजे, लेकिन इसके बाद भी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल ने कोई एक्शन नहीं लिया।