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भगवान शिव के श्राप के कारण नहीं होती है ब्रह्मा जी की पूजा

-महाशिवरात्रि पर मैत्रीबोध परिवार कर रहा है सबके कल्‍याणार्थ विशेष आयोजन

-पहली मार्च को रात्रि 11 बजे से आधी रात्रि के बाद 2 बजे तक होगा आयोजन

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के समक्ष एक बड़ा ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ। वे इसके बारे में कुछ नहीं जानते थे। इसलिए उन्होंने इस लिंग के आदि और अंत, के बारे में पता लगाने का निर्णय लिया। ब्रह्मा जी, एक हंस का रूप लेकर उसके शुरुआत का पता लगाने नीले आकाश की ओर चल पड़े और भगवान विष्णु उसके अंत की खोज में वाराह के रूप में ब्रह्मांड में गहरे नीचे की ओर चल पड़े।

जब भगवान विष्णु लौटे, उन्होंने हार मान ली कि वे ऊर्जा लिंग(ज्योतिर्लिंग) का अंत पता नहीं लगा पाए। भगवान ब्रह्मा भी नाकाम रहे, क्योंकि ये बड़ा ऊर्जा ज्योतिर्लिंग और कोई नहीं स्वयं भगवान शिव जी थे। हालांकि, वे हार नहीं मानना चाहते थे, इसलिए उन्होंने झूठ बोल दिया कि उन्होंने आदि का पता लगा लिया है। गवाही के तौर पर, उन्होंने सफेद केतकी का फूल दिखाया यह कहते हुए कि उन्हें यह ऊपर मिला है।

जैसे ही झूठ बोला गया, शिव जी प्रकट हुए। दोनों उनके चरणों में गिर गए। शिव जी ब्रह्मा जी के झूठ बोलने से नाराज हो गए, और इसलिए उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि उनकी पूजा कभी भी नहीं की जाएगी। शिव जी ने केतकी फूल को भी अपनी पूजा से वर्जित कर दिया।

महाशिवरात्रि पर हर साल भगवान शिव की आराधना की जाती है।उन्हें प्रतीकात्मक ‘शिव लिंग’ के रूप में पूजा जाता है जो पूरे विश्व का प्रतिनिधित्व करता है। इससे यह लिंग बहुत ही शक्तिशाली ऊर्जा केंद्र बन जाता है जिसके कारण प्राचीन समय में शिव जी के मंदिर ज्यादातर गांव की बाहरी सीमा पर होते थे। चूंकि लिंग से बहुत अधिक ऊर्जा निकलती है, इसे ठंडा रखना भी जरूरी है। इसलिए शिव मंदिर में, हमेशा लिंग के ऊपर एक जल से भरा कलश होता है जिसमें से निरंतर जल की धारा लिंग को ठंडा रखने के लिए उसके ऊपर टपकती रहती है। लिंग को अर्पण करने वाली चीजें(बिल्‍व पत्र/बिल्‍व फल, चावल, सेब, दूध) सभी प्रकृति में ठंडी होती है। इसका एक ही कारण है लिंग को ठंडा रखना होता है।

आध्यात्मिक रूप से, यह वह दिन है जब प्रकृति साधक को उसकी आध्यात्मिक ऊंचाई पर ले जाती है। मनुष्य को प्रभावित करने वाली दो प्राकृतिक शक्तियां हैं:

 (1) रजस – जोश और सक्रियता का गुण, न अच्छा और न ही बुरा

 (2) तमस – असंतुलन, विकार, अराजकता, चिंता, विनाश का गुण

शिवरात्रि व्रत का उद्देश्य इन दो प्राकृतिक शक्तियों के ऊपर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त करना है।

एक व्यक्ति के चैतन्य का स्वाभाविक शुद्धिकरण।

रात्रि के दौरान होने वाली ग्रहों की चाल से सकारात्मक, आध्यात्मिक ऊर्जाएं उत्पन्न होती हैं जो साधक को उसके ईश्वर से जुड़ने और परिवर्तन के मार्ग पर आगे बढ़ने में सहायता करती है जिससे वह स्वयं का बेहतर प्रारूप बन सके।

मैत्रीबोध परिवार द्वारा जारी विज्ञप्ति में बताया गया है कि मैत्रीबोध परिवार में महाशिवरात्रि को शिव जी के प्रति पूर्ण भक्ति और प्रेम के साथ मनाया जाता है जिससे वे मानवता को आध्यात्मिक परिवर्तन का आशीर्वाद प्रदान करें। विश्व के ऊर्जा केंद्र शांति क्षेत्र प्रेमगिरी आश्रम, कर्जत में शक्तिपीठम् में शिवलिंग और त्रिशूल स्थापित है।

दैविक त्रिशक्ति का निवास स्थान

शिव – श्री महाकालेश्वर के रूप में शिव लिंग

शक्ति- प्रेमस्वरूपिणी आदिशक्ति महाकाली मां

गुरु तत्व – आसन जो गुरु चेतना का प्रतिनिधित्व करता है

मानवता के उत्थान के लिए और परिवर्तन को गति देने के लिए दैविक शक्तियों का संपूर्ण मिलन।

मैत्रीबोध परिवार के मार्गदर्शक और संस्थापक मैत्रेय दादाश्री का कहना है, “अपने उत्थान और अपने आप को बेहतर बनाने के लिए आप सभी संसाधनों का उपयोग करें। जब आपके सभी प्रयास समाप्त हो जाएं, तो मुझे आप पर काम करने की अनुमति दें। आप उस परिवर्तन के साक्षी होंगे जो आप लम्बे समय से देखना चाहते थे।”

विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस महाशिवरात्रि, मैत्रेय के साथ परिवर्तन अनुभव करें! जैसे-जैसे 1 मार्च की मध्यरात्रि नजदीक आ रही है, आइए स्वयं को महाकालेश्वर की भक्ति में लीन कर लें और यू ट्यूब पर मैत्री बोध परिवार के सीधे प्रसारण में भक्तिमय संगीत का आनंद लें।

(उपरोक्त पौराणिक कथा मैत्रीबोध परिवार के सौजन्य से उपलब्ध कराई गई है इसमें दिए गए तथ्यों की पुष्टि ‘सेहत टाइम्स’ नहीं करता है)

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