बच्चों की न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के समाधान की दिशा में काफी प्रयास किये जाने की जरूरत
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ विजय से ‘सेहत टाइम्स’ की विशेष बातचीत
लखनऊ। बच्चों की न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर की समस्या एक बड़ी समस्या है। मैं अम्बेडकर नगर में हूं तो कम से कम आठ बच्चे तो मेरे ही सम्पर्क में हैं जो किसी न किसी न्यूरोलॉजिक डिसऑर्डर के शिकार हैं। चूंकि बच्चों की न्यूरोलॉजी में विशेषज्ञ बनाने वाली पढ़ाई भारत में एक-दो जगहों पर ही है, इसलिए इन बीमारियों को ठीक करने वाले विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं मिलते हैं, ऐसे बच्चों को उनके माता-पिता पहले तो अपने आसपास के जनरल फिजीशियन, बाल रोग विशेषज्ञ के पास या तो किसी न्यूरोलॉजिस्ट या मानसिक रोग विशेषज्ञ के पास ले जाते हैं, लेकिन उन्हें अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता है।
यह बात अम्बेडकर नगर के डॉ विजय यादव ने ‘सेहत टाइम्स’ से एक विशेष बातचीत में कही। लखनऊ के किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय केजीएमयू ने एमबीबीएस और एमडी करने वाले डॉ विजय ने बताया कि सीनियर रेजिडेंशियलशिप उन्होंने दिल्ली के लेडी हार्डिंग हॉस्पिटल से की है। डॉ विजय ने कहा कि अक्सर बच्चों की न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के डायग्नोस होने में देर हो जाती है। ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) के तहत आने वाली बीमारियों में समय से इलाज मिलने का बहुत महत्व हैं, जो कि आमतौर पर जागरूकता और संसाधनों के अभाव के कारण नहीं हो पाता है। एएसडी के अंतर्गत ही एक बीमारी होती है एसपर्जर सिंड्रोम, यही बीमारी एक फिल्म ‘माई नेम इज खान’ में शाहरुख खान को थी।
उन्होंने बताया कि बहुत बार ऐसा होता है कि बच्चा जब आता है और हमें लगता है कि उसके लक्षण एएसडी बीमारियों के हैं लेकिन उसे डायग्नोस करने के लिए जो टूल चाहिये होते हैं वे उपलब्ध नहीं होते हैं, यही नहीं उनके माता-पिता को बता भी दें कि आपके बच्चे को जो लक्षण हैं वे इस प्रकार की बीमारी के हैं तो उनके माता-पिता को लगता है कि जैसे कोई मानसिक बीमारी हो, और वह धीरे-धीरे समाज से कटने लगते हैं। चूंकि इसके इलाज की सुविधा उत्तर प्रदेश में तो कहीं है ही नहीं, लेकिन बाहर भी गिनी-चुनी जगहों पर इसके विशेषज्ञ होने से लोग अपने आसपास ही इलाज ढूंढ़ते हैं। ऐसे में वे बच्चे को न्यूरोलॉजिस्ट के पास ले जाते हैं तो न्यूरोलॉजिस्ट के पास इतना समय नहीं होता है कि वह बच्चे को आवश्यक टाइम दे सकें, जितना देना चाहिये। यही नहीं जिस प्रकार के विशेष तरीके से इसका इलाज किया जाना चाहिये उसकी सुविधा नहीं है। ऐसे में उसे प्रॉपर इलाज नहीं मिल पाता है। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि पहले जागरूकता, फिर डायग्नोसिस और उसके बाद उपचार की दिक्कत एक बड़ी चुनौती है।
एसोसिएशन ऑफ चाइल्ड ब्रेन रिसर्च (एसीबीआर) के संस्थापक डॉ राहुल भारत के ‘ब्रेन रक्षक’ प्रोग्राम के बारे में डॉ विजय का कहना था कि हां अभी तक जो मैंने सुना है उससे पता चलता है कि न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर्स बीमारियों में काफी कारगर होगा। ऐसे प्रोग्राम से मैं जुड़ना भी चाहूंगा। ज्ञात हो कि लंदन यूके से मेडिकल की पढ़ाई करने वाले चाइल्ड न्यूरोलॉजी के स्पेशियलिस्ट डॉ राहुल भारत ने बच्चों की न्यूरो की समस्याओं से संबंधित बीमारियों विशेषकर ऑटिज्म के इलाज के लिए एक ऐसा प्रोग्राम तैयार किया है जो बाल रोग विशेषज्ञों के लिए ही है, इस कोर्स के अनुसार प्रशिक्षण से ऐसे बच्चों को इलाज उनके नजदीक मिल सके, इसके लिए डॉ राहुल प्रदेश भर में बाल रोग विशेषज्ञों को ‘ब्रेन रक्षक’ प्रोग्राम से जोड़ रहे हैं।