-मेदान्ता हॉस्पिटल में स्ट्रोक पर आयोजित संगोष्ठी में बचाव व उपचार पर दी गयी महत्वूपूर्ण जानकारियां
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। स्ट्रोक यानी फालिज या लकवा के मरीजों को अटैक पड़ने के अगर साढ़े चार घंटे के अंदर इलाज मिल जाये तो मरीज को स्वस्थ किया जा सकता है, अन्यथा की स्थिति में जान जाने के जोखिम से लेकर शरीर के अंग के बेकार हो जाने की आशंका बनी रहती है। यही नहीं इन साढ़े चार घंटों में 45 मिनट का समय सीटी स्कैन का भी शामिल है, जिसपर आगे के इलाज की दिशा तय होती है। इसलिए अटैक पड़ने के बाद जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी सुविधायुक्त अस्पताल मरीज को ले जाना चाहिये जिससे मरीज का इलाज समय से शुरू हो सके।
यह बात आज यहां मेदांती हॉस्पिटल के इमरजेंसी मेडिसिन विभाग के द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में विशेषज्ञों ने कही। संगोष्ठी में मेदान्ता अस्पताल के न्यूरो साइंस के निदेशक डॉ एके ठक्कर ने बताया कि आंकड़ों की अगर बात करें तो भारत में प्रति 2 सेकंड में एक व्यक्ति स्ट्रोक का शिकार होता है तथा प्रति 6 सेकंड में स्ट्रोक से एक व्यक्ति की मौत हो जाती है। उन्होंने बताया कि भारत में इस समय स्ट्रोक के 15 लाख मरीज हैं, दुर्भाग्य की बात है इनमें 30 से 40 प्रतिशत की तो मौत हो जाती है, और जो बच जाते हैं और समय से इलाज नहीं करा पाते हैं उन्हें और दिक्कत हो जाती है क्योंकि उनका कोई न कोई अंग प्रभावित हो जाता है, जिससे दिव्यांगता वाली स्थिति हो जाती है।
ऐसे रहें स्वस्थ कि लकवा न हो
उन्होंने बताया कि यह बीमारी आमतौर पर 50 वर्ष से ज्यादा वालों को ज्यादा होती है, और वह समय ऐसा होता है जब उस व्यक्ति के ऊपर पूरे परिवार की जिम्मेदारी होती है, ऐसे में व्यक्ति अगर पैरालाइज्ड हो गया तो इलाज कराने से लेकर परिवार चलाना एक बड़ी चुनौती हो जाती है, ऐसे में कोशिश यह होनी चाहिये कि व्यक्ति को लकवा का अटैक न पड़े इसके लिए ब्लड प्रेशर, शुगर, हार्ट की बीमारी, मोटापा, धूम्रपान करने वाले, शराब का सेवन करने वाले लोगों को यह बीमारी होने का डर ज्यादा रहता है। इसलिए कोशिश यह होनी चाहिये कि इन बीमारियों और नशे आदि से दूर रहें और अगर ये बीमारियां हैं तो उनके नियंत्रण के प्रति सचेत रहें।
दो तरह का होता है लकवा
डॉ ठक्कर ने बताया कि स्ट्रोक दो तरह का होता है एक में दिमाग की खून की नली फट जाती है जिसे ब्रेन हेमरेज कहते हैं तथा दूसरी स्थिति वह होती है जिसमें खून की नली बंद हो जाती है। उन्होंने कहा कि 80 फीसदी लोगों को खून की नली बंद होने की शिकायत होती है। ऐसे में अगर व्यक्ति को साढ़े चार घंटे के अंदर यह दवा इंजेक्शन से दे दी जाये तो खून का थक्का हट जाता है और नली साफ हो जाती है।
उन्होंने कहा कि मरीज को जल्दी से जल्दी अच्छे सभी तरह की सुविधा वाले अस्पताल में अगर ले जायें तो 24 घंटे के अंदर भी मरीज की स्थिति में काफी सुधार हो सकता है। चेहरा टेढ़ा हो जाये, आवाज बदल जाये, हाथ नहीं उठ रहा है ऐसे में तुरंत ऐसे अस्पताल ले जायें जहां खून का थक्का हटाने वाला इंजेक्शन जहां हो, उन्होंने बताया कि सामान्यत: जिला अस्पतालों में यह इंजेक्शन रहता है।
‘ब च आ व’ को रखें याद
संगोष्ठी में इमरजेंसी मेडिसिन, ट्रॉमा एंड एम्बुलेंस सर्विसेज के निदेशक डॉ लोकेन्द्र गुप्ता ने बताया कि इमरजेंसी मेडिसिन विभाग में जल्दी से जल्दी लाने की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका घरवालों की होती है जो अटैक के बाद यह पहचान लें कि यह फालिज का अटैक हो सकता है और शीघ्र ही मरीज को सुविधायुक्त अस्पताल ले जायें। उन्होंने बताया कि इसकी पहचान के लक्षणों के लिए ‘बचाव’ (ब च आ व) शब्द का फॉर्मूला याद रखने की जरूरत है। ‘ब च आ व’ में ब से बाजू यानी मरीज अगर अपनी बाजू न उठा पा रहा हो, च से चेहरा टेढ़ा दिख रहा हो, आ से आवाज अगर आवाज बदल रही हो तथा व वक्त यानी मरीज की जांच में वक्त का अवश्य खयाल रखें कि जल्दी से जल्दी डॉक्टर के पास पहुंचें जिससे सीटी स्कैन जल्दी से जल्दी हो सके। उन्होंने बताया कि लोगों को यह समझना ज्यादा जरूरी है कि मरीज को टाइम से अस्पताल ले आयें जिससे 45 मिनट सीटी स्कैन में बीतने के बाद तुरंत आवश्यक इलाज शुरू हो जाये। उदाहरण के लिए मरीज अटैक होने के एक घंटे में अस्पताल पहुंचा फिर 45 मिनट सीटी स्कैन में बीत गये, इस तरह कुल एक घंटे 45 मिनट का समय निकल गया अब बचे दो घंटे 45 मिनट के समय में मरीज का आवश्यक इलाज हो सके। संगोष्ठी में डॉ राकेश कपूर, डॉ आरके सरन, आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ पीके गुप्ता भी उपस्थित रहे।