-आईएमए लखनऊ ने आयोजित किया स्टेट लेवल रिफ्रेशर कोर्स एवं सीएमई कार्यक्रम
सेहत टाइम्स
लखनऊ। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ, पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में उच्च पदों पर सेवाएं देने के बाद वर्तमान में एरा मेडिकल कॉलेज में सेवाएं दे रहे अध्यापकों के अध्यापक, चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने चिकित्सकों को सलाह दी है कि सतत चिकित्सा शिक्षा सीएमई जैसे कार्यक्रमों में अवश्य भाग लिया करें क्योंकि इन सीएमई में व्याख्यान देने वाले विशेषज्ञ बहुत मेहनत कर नयी-नयी जानकारियां खोजकर लाते हैं, जो आपकी प्रैक्टिस में एक नया अध्याय लिखती हैं। डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने इसके साथ ही डॉक्टरों को मरीजों की सेवा के बीच अपनी स्वयं की सेहत ठीक रखने के लिए खुद को भी रोज एक घंटे का समय देने की सलाह दी।
डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने यह उद्गार इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लखनऊ द्वारा आज रविवार 2 अप्रैल को यहां आईएमए भवन में आयोजित स्टेट लेवल रिफ्रेशर कोर्स और सतत चिकित्सा शिक्षा सीएमई में मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि हजार दिन तक अपने आप पढ़ने से बेहतर एक दिन विद्वान शिक्षक से ज्ञान अर्जित करना है। आपको बता दें कि आज आयोजित सीएमई में उतनी उपस्थिति नहीं थी जितनी होनी चाहिये थी। उन्होंने कहा कि डॉक्टर अपनी सेहत पर ध्यान नहीं देते हैं, जो कि गलत है, उन्हें मरीजों की सेवा करने के साथ–साथ अपने लिए भी एक घंटे का समय निकालना चाहिये। उन्हें अपनी जीवन शैली पर ध्यान अवश्य देना चाहिये। उन्होंने कहा कि ऐसा मैं इसलिए भी कह रहा हूं कि मैं जितने मरीजों को देखता हूं उनमें 25 प्रतिशत डॉक्टर होते हैं। उन्होंने कहा कि लाइफ स्टाइल ऐसी हेल्दी होनी चाहिये कि दवा खाने की जरूरत न पड़े।
इससे पूर्व आईएमए के अध्यक्ष डॉ जेडी रावत ने अपने स्वागत भाषण में सीएमई के बारे में जानकारी देते हुए आये हुए अतिथियों का स्वागत किया। सचिव डॉ संजय सक्सेना ने आज के आयोजन की रूपरेखा की जानकारी दी। उन्होंने आये हुए लोगों के प्रति धन्यवाद प्रस्ताव पेश किया। इस मौके पर मंच पर डॉ संजय सक्सेना, डॉ जेडी रावत, डॉ जीपी सिंह, डॉ सूर्यकान्त, डॉ मनीष टंडन, डॉ विनीता मित्तल भी उपस्थित रहे।
टीबी का इलाज करने वाले निजी डॉक्टरों को दी महत्वपूर्ण सलाह
डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने टीबी के उपचार में हाल ही में किये गये बदलाव पर अपना व्याख्यान देते हुए कहा कि टीबी के मरीज का जब सरकारी केंद्र पर इलाज होता है तो वहां तो डॉक्टर नयी-नयी गाइडलाइंस से परिचित रहते हैं, साथ ही टीबी के इलाज के सेट पैटर्न के अनुसार इलाज होता है लेकिन निजी डॉक्टर जो टीबी का इलाज करते हैं, उन्हें टीबी का इलाज करते समय विशेष सावधानियां बरतनी चाहिये। उन्होंने कहा कि सर्वप्रथम टीबी के मरीज का नोटिफिकेशन तो कराना ही चाहिये, साथ ही अगर टीबी के मरीज का खुद इलाज कर रहे हैं तो उनके लिए चुनी जाने वाली दवाओं के बारे में कुछ बातों का अवश्य ध्यान रखें। उन्होंने कहा कि मरीज को दवा का डोज उसके वजन के अनुसार ही निर्धारित करें। इसके साथ ही स्टैन्डर्ड और ख्यातिलब्ध दवाओं को ही लिखें क्योंकि आजकल मार्केट में 60 फीसदी दवाएं अधोमानक आ रही हैं, जिनके सेवन से जहां मरीज ठीक नहीं होगा वहीं डॉक्टर की साख को भी बट्टा लगेगा।
उन्होंने कहा कि मरीज कोर्स को बीच में ही न छोड़ें, यह जिम्मेदारी भी डॉक्टर की है। उन्होंने कहा कि डॉक्टर मरीज की काउंसलिंग करें। उन्होंने कहा कि डॉक्टर की जिम्मेदारी पब्लिक हेल्थ को भी दुरुस्त रखने की है, और यदि मरीज ने कोर्स के बीच में ही दवा छोड़ दी तो उसके रेजिस्टेंस होने का डर रहता है, जिससे मरीज के स्वास्थ्य के खराब होने के साथ ही उस मरीज के द्वारा दूसरों को भी संक्रमित करने का डर रहता है।
उन्होंने कहा कि नयी गाइडलाइन के मुताबिक अब निर्धारित इलाज पूरा होने के बाद मरीज का दीर्घकालिक फॉलोअब किया जाना अनिवार्य बनाया गया है। उन्होंने कहा कि इलाज समाप्त होने के दो साल बाद तक मरीज की प्रत्येक छह माह में उसका फॉलोअप कर देखना होगा कि उसका संक्रमण कहीं वापस तो नहीं आ गया है। उन्होंने कहा कि एक नया टर्म आया है पोस्ट टीबी लंग डिजीज, यानी टीबी के इलाज के बाद उसे होने वाली परेशानियों पर नजर रखी जायेगी, देखा जायेगा कि इलाज के बाद भी कोई कसर तो नहीं रह गयी है।
प्रत्येक जहर को निष्प्रभावी करने वाले उपचार की पुस्तक का विमोचन
इस मौके पर इंडियन सोसाइटी ऑफ टॉक्सीकोलॉजी की ‘पाकेटबुक ऑफ प्वॉइजनिंग प्रोटोकॉल्स’ का विमोचन भी हुआ। इस बुक के बारे में जानकारी देते हुए डॉ आशुतोष कुमार शर्मा ने बताया कि जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है कि यह किताब जेब में भी रखी जा सकती है। इस किताब में प्रत्येक प्रकार के जहर से बचने के लिए किये जाने वाले उपचार के बारे में जानकारी दी गयी है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर इसकी प्रस्तुति हो चुकी है, अब आज इसे राज्य स्तर पर जारी किया गया है। उन्होंने बताया कि इस किताब को पीएचसी लेवल तक पहुंचाने की योजना है। इस किताब में दी गयी जानकारी को अपनाते हुए कोई भी एमबीबीएस डॉक्टर विष से बचाव का इलाज कर सकता है।
इस मौके पर डॉ विजय कुमार, डॉ आरबी सिंह, डॉ जीपी कौशल, डॉ सरिता सिंह, डॉ संजय श्रीवास्तव, डॉ राजीव सक्सेना, डॉ प्रांजल अग्रवाल, डॉ वारिजा सेठ, डॉ सुमित सेठ, डॉ ऋतु सक्सेना, डॉ निरुपमा, डॉ प्रज्ञा खन्ना, डॉ सरस्वती देवी, चिकित्सा प्रकोष्ठ भाजपा लखनऊ के संयोजक डॉ शाश्वत विद्याधर सहित अनेक पदाधिकारी व आईएमए सदस्य भी उपस्थित रहे।