बांझ रोग कारण और निवारण विषय पर आयोजित हो रही एक दिवसीय कार्यशाला
लखनऊ। संतानहीनता के लिए जिम्मेदार महिला और पुरुष दोनों बराबर-बराबर होते हैं। बांझपन के लिए 40 फीसदी महिलायें और 40 फीसदी ही पुरुष तथा 20 प्रतिशत दोनों जिम्मेदार होते हैं। इसलिए जब भी संतानहीनता की जांच कराने जायें तो पति-पत्नी दोनों जायें। संतानहीनता के कारणों की अगर बात करें तो महिलाओं में हारमोनल खराबी, फेलोपियन ट्यूब में खराबी, यौन रोग, अंडों का न बनना है जबकि पुरुषों में पाये जाने वाले कारणों में सेमेन में स्पर्म न होना या फिर कम होना होता है, लेकिन ऐसे पुरुषों को भी अब निराश होने की जरूरत नहीं है, वे भी इक्सी टीसा विधि से अपनी संतान होने का सुख प्राप्त कर सकते हैं।
यह जानकारी बांझ रोग विशेषज्ञ डॉ सुनीता चन्द्रा ने होटल फॉर्च्यून में आयोजित पत्रकार वार्ता में दी। पत्रकार वार्ता का आयोजन लखनऊ ऑब्स एंड गायनेकोलॉजिस्ट सोसाइटी और मॉर्फिअस लखनऊ फर्टिलिटी सेंटर के तत्वावधान में बांझ रोग कारण और निवारण विषय पर 20 अप्रैल को आयोजित होने वाली एक दिवसीय कार्यशाला की जानकारी देने के लिए किया गया था। पत्रकार वार्ता में मॉर्फिअस फर्टिलिटी सेंटर मुम्बई से आये रवीन्द्र भी उपस्थित थे। डॉ सुनीता चन्द्रा ने इक्सी टीसा विधि के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि दरअसल कुदरती रूप से पुरुषों में शुक्राणु बनते रहते हैं लेकिन किसी कारण वे स्वाभाविक प्रक्रिया के दौरान शरीर से निकल नहीं पाते हैं या कम मात्रा में निकलते हैं। ऐसी स्थिति में इक्सी टीसा विधि के तहत पति के अंडकोष से सीधे ही शुक्राणुओं को निकालकर लैब में पत्नी के अंडों से निषेचित कराकर भ्रूण तैयार होने के बाद भ्रूण को गर्भाशय में प्रवेश करा दिया जाता है। यानी निल या अति अल्प शुक्राणु रिपोर्ट वाले पुरुष जिन्हें पहले किसी अन्य पुरूष के शुक्राणुओं को लेने की विवशता होती थी, अब टीसा-इक्सी विधि से वो पुरुष भी अपने स्वयं के शुक्राणु से पिता बन सकते है।
बच्चा न चाहने के चलते गर्भपात कराना पड़ सकता है महंगा
डा सुनीता ने बताया कि आज की लाइफ स्टाइल के चलते संतानहीनता हमारे समाज की बहुत बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनती जा रही है। इसका कारण है कि आज के समय मे शादी की उम्र बढ़ती जा रही है। उसमें भी बहुत से पति-पत्नी तुरंत बच्चा नहीं चाहते हैं यानी 4-5 साल इसी तरह निकल जाते हैं, फिर उसके बाद जब दोनों माता-पिता बनने की प्लानिंग करते हैं तो महिला की उम्र और ज्यादा हो चुकी होती है। उन्होंने बताया कि 30 वर्ष की आयु के बाद जितना भी समय बढ़ता जाता है उतनी ही महिला के अंडों की गुणवत्ता, संख्या कम होती जाती है। उन्होंने बताया कि अक्सर पति-पत्नी एक गलती करते हैं कि विवाह के बाद जब पत्नी गर्भवती हो जाती है तो बच्चा इतनी जल्दी न चाहने के चलते गर्भपात करा देते हैं, उन्होंने बताया कि यह बहुत गलत बात है, बच्चा न चाहने के लिए गर्भनिरोध के जब इतने साधन मौजूद हैं तो पति-पत्नी को उनका प्रयोग करना चाहिये। उन्होंने बताया कि इसका नतीजा यह होता है गर्भपात कराने से संक्रमण के चलते फिर से पत्नी को गर्भधारण करने में कठिनाई हो जाती है।
संतानहीनता होने पर जांच के लिए पति-पत्नी दोनों जायें
उन्होंने बताया कि शादी के बाद जब पति-पत्नी संतान के लिए प्रयत्न करें लेकिन प्रयत्न के एक साल बाद भी अगर महिला गर्भवती न हो तो दोनों को डॉक्टर के पास सलाह लेने और जांच कराने जरूर जाना चाहिये। जबकि परेशानी की बात यह है कि आज भी बहुत सारे दम्पति डॉक्टर के पास तब आते है जब उपचार की सफलता का कीमती समय निकल चुका होता है। 30 साल से अधिक उम्र की महिलाओं के अंडे बनने कम हो जाते है, इसके साथ ही अंडो की क्वालिटी भी अच्छी नही रहती है। इससे गर्भपात और होने वाले बच्चे में जन्मजात खराबी आने का खतरा रहता है। इसके समाधान के लिए विज्ञान ने कई अच्छे तरीके निकाल लिए है। जांच के बाद यह तय किया जाता है कि गर्भधारण करने के लिए किस तरह के इलाज की जरूरत होगी। सही उम्र में डॉक्टर के पास आने पर उचित उपचार से संतान प्राप्ति हो सकती है।
उसाइटडोनेशन विधि का उपयोग ओलिगो स्पेर्मिया में भी
संतानहीनता की सबसे बड़ी वजह महिलाओं में हारमोनल खराबी, फेलोपियन ट्यूब में खराबी,यौन रोग,अंडों का न बनना और पुरुषों में शुक्राणुओं का न बनना या कम होना है। आई.वी.एफ. व इक्सी इसका एक आधुनिक इलाज है। इस इलाज में महिला की ओवरी से अंडे निकाल कर उसे प्रयोगशाला में स्पर्म से निषेचित कराया जाता है। भ्रूण बनने के बाद महिला के गर्भाशय में ट्रांसफर कर दिया जाता है, इसमे पति व पत्नी के अपने अंडे और शुक्राणु का उपयोग किया जाता है। जिन महिलाओं में अंडे नही बन पाते हैं उसमे उसाइटडोनेशन विधि का उपयोग किया जाता है। पहले इस विधि का प्रयोग उस समय किया जाता था जब महिला की फैलोपियन ट्यूब खराब हो। अब संतानहीनता के अन्य कारणों में जैसे ओलिगो स्पेर्मिया में भी इस उन्नत तकनीक का सफलतापूर्वक प्रयोग किया जाता है।
अंडे-शुक्राणु प्रिजर्व करायें फिर कैंसर का इलाज करायें
एक अन्य महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि यदि महिला या पुरुष कैंसर से ग्रस्त होकर उसका इलाज कराने जा रहा है और बाद में वह संतान चाहता है तो पुरुष अपने स्पर्म और महिला अपने अंडों के साथ ही निषेचित भ्रूण क्रायो प्रिजर्वेशन विधि से लंबे समय तक पुनः उपयोग के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है। उन्होंने बताया कि यह सुविधा लखनऊ फर्टिलिटी सेंटर में भी उपलब्ध है।
एक दिवसीय कार्यशाला के बारे में उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला में देश के जाने माने विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं, इनमें डॉक्टर मोहन राउत मुम्बई, डॉ जयश्री सिरधर इंदौर, डॉ विवेक वी हैदराबाद, डॉ सौरभ अग्रवाल (सीनिअर यूरोलोजिस्ट) लखनऊ व लखनऊ के मेडिकल कॉलेज की प्रोफेसर डॉ अंजू अग्रवाल, प्रोफेसर डॉ अमित पांडेय, सहायक प्रोफेसर डॉ वंदना सोलंकी आदि डॉक्टर अपने विचार और अनुभव साझा करेंगे।