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गर्भावस्‍था में शुगर-थायरायड कंट्रोल नहीं, तो शिशु को एएसडी, एडीएचडी का बड़ा खतरा

प्री मेच्‍योर डिलीवरी वाले शिशुओं की प्रॉपर देखभाल जरूरी, ऐसे चिकित्‍सकों का अभाव 

पीडियाट्रीशियन डॉ आरके सिंह से सेहत टाइम्‍स की विशेष वार्ता

लखनऊ/वाराणसी। गर्भवती मां की अगर शुगर और थायरायड कंट्रोल नहीं है तो यह मान कर चलिये कि होने वाले बच्‍चे को ऑटिज्‍म स्‍प्रेक्‍ट्रम डिस्‍ऑर्डर (एएसडी), अटेन्‍शन डेफि‍शिट हाईपरऐक्टिविटी डिस्‍ऑर्डर (एडीएचडी) की शिकायत होने की पूरी संभावना है। शुगर और थायरायड के अलावा गर्भावस्‍था के दौरान मां का प्रॉपर डाइट न लेना, पर्यावरणीय प्रदूषण, गंदगी में तैयार खाने की चीजों का सेवन, फास्‍ट फूड का सेवन जैसे कारण भी पैदा होने वाले शिशुओं में न्‍यूरोलॉजिकल डिस्‍ऑर्डर का कारण बन रहे हैं।

 

यह महत्‍वपूर्ण जानकारी वाराणसी में पीस प्‍वॉइंट हॉस्पिटल के संस्‍थापक पी‍डियाट्रीशियन डॉ आर के सिंह ने ‘सेहत टाइम्‍स‘ के साथ एक विशेष वार्ता में दी। मैसूर से एमबीबीएस और दिल्‍ली स्थित नेशनल बोर्ड से डीएनबी करने वाले डॉ सिंह ने कहा कि नवजात की मौतों के मामले में उत्‍तर प्रदेश नम्‍बर एक पर है। जहां एक तरफ नियोनेटल न्‍यूरोलॉजिकल बीमारियों वाले बच्‍चों की संख्‍या बढ़ रही है वहीं इसका इलाज करने वाले चिकित्‍सक बहुत कम संख्‍या में हैं, इसलिए यह एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती से निपटने के लिए जहां हमें ऐसे बच्‍चों का इलाज करने वाले चिकित्‍सकों की उपलब्‍धता बढ़ाना सुनिश्चित करना है वहीं कोशिश यह करनी है कि बच्‍चों में इस तरह की कमी होने की नौबत ही न आये, इसके लिए मां के गर्भ से ही इसका ध्‍यान रखना होगा।   बहुत से केसों में गर्भावस्‍था के दौरान मां का संक्रमण पहचान में नहीं आता है, प्री मेच्‍योर डिलीवरी हो रही हैं। सबसे पहला किलर प्रीमेच्‍योर डिलीवरी है, समय से पहले जन्‍म लेने के कारण बच्‍चे प्रॉपर सांस नहीं ले पाते हैं, जिससे उनके ब्रेन में ऑक्‍सीजन की कमी हो जाती है, ऐसी स्थिति में अगर जन्‍म के बाद शुरुआत में ही प्री मेच्‍योर बच्‍चों का प्रॉपर ट्रीटमेंट नहीं हुआ तो आगे चलकर ये बच्‍चे न्‍यूरोलॉजिकल प्रॉब्‍लम्‍स के शिकार हो जाते है।

बच्‍चों के डॉक्‍टर को ही दिखाना चाहिये  

इलाज की बात करें तो प्रॉपर नियोनेटल जानकारी वाले चिकित्‍सक, प्रॉपर नियोनेटल न्‍यूरोलॉजिकल जानकारी रखने वाले चिकित्‍सक ही इसके इलाज में कारगर भूमिका निभा सकते हैं। डॉ आरके सिंह ने कहा कि प्री मेच्‍योर डिलीवरी वाले बच्‍चे के जन्‍म के पहले माह में उसके ब्रेन का प्रॉपर इलाज नहीं हुआ तो आगे चलकर बच्‍चे का ब्रेन सामान्‍य तरीके से काम नहीं कर सकता। उन्‍होंने कहा कि बच्‍चे के पैदा होने के समय ऐसा पीडियाट्रीशियन होना चाहिये जो प्री मेच्‍योर डिलीवरी वाले बच्‍चों को मैनेज कर सके।  डॉ सिंह ने कहा कि बच्‍चे की न्‍यूरोलॉजिकल बीमारियों की स्थिति में हमेशा बच्‍चों के ही न्‍यूरोलॉजिस्‍ट को दिखाना चाहिये, क्‍योंकि ऐसा न करने से पूरी संभावना है कि केस ठीक होने के बजाये बिगड़ जायें।

गर्भावस्‍था से ही करना होगा बचाव

उन्‍होंने कहा कि शिशु रुग्‍णता (नियोनेटिकल मो‍रबिडिटी) के मामले में हमारी स्थिति बहुत खराब है। उन्‍होंने कहा कि शिशु रुग्‍णता न आये इसके लिए बचाव शिशु के गर्भ में रहने के समय से ही हो जानी चाहिये। इसके लिए पीडियाट्रीशियन और गाइनोकोलॉजिस्‍ट को आपस में मिलकर चलना होगा, जिसका सर्वथा अभाव है। उन्‍होंने कहा कि अगर 34 माह से पहले डिलीवरी हो रही है तो वह प्रीमेच्‍योर है और उस स्थिति में डिलीवरी से पहले या डिलीवरी के एक दिन पहले मैग्‍नीशियम का डोज देना बहुत जरूरी है। यह होने वाले शिशु को न्‍यूरोलॉजिकल बीमारियों से बचाने में बहुत सहायक होगा।   उन्‍होंने कहा कि गर्भावस्‍था के दौरान से डीएचए का डोज जरूर देना चाहिये इसकी पूर्ति के लिए अलसी का तेल, सूरजमुखी का तेल जिसमें एएलए होता है जो शरीर में जाकर डीएचए में परिवर्तित हो जाता है। इसके अलावा अखरोट, बादाम के साथ ही नॉन वेज में मछली, मछली का तेल के सेवन से भी डीएचए की पूर्ति होती है। डीएचए की प्रॉपर खुराक से बच्‍चा बहुत शार्प माइंड वाला पैदा होगा।

अच्‍छा कदम साबित हो सकता है ब्रेन रक्षकप्रोग्राम

यह पूछने पर कि इन परिस्थितियों में ‘ब्रेन रक्षक’ कार्यक्रम की भूमिका कैसी रहेगी, इस पर उन्‍होंने कहा कि हालांकि ब्रेन रक्षक प्रोग्राम के बारे में मैं नहीं जानता हूं लेकिन अगर ऐसा कोई प्रोग्राम है तो निश्चित ही यह बहुत अच्‍छा कदम है, क्‍योंकि बच्‍चों की न्‍यूरोलॉजी को समझ कर उसका इलाज करने वाले चिकित्‍सक न होने के कारण बहुत दिक्‍कतें हैं, जो इस तरह के कार्यक्रम से दूर हो सकती हैं।

 

ज्ञात हो एसोसिएशन ऑफ चाइल्‍ड ब्रेन रिसर्च के संस्‍थापक डॉ राहुल भारत ने यूके से न्‍यूरोलॉजी में विशेषज्ञता हासिल की है तथा  डॉ राहुल भारत ने चार फेज की रिसर्च के बाद पीडियाट्रीशियंस के लिए ‘ब्रेन रक्षक’ ट्रेनिंग प्रोग्राम तैयार किया है जिसका कोर्स करके पीडियाट्रीशियंस ऑटिज्‍म जैसी बच्‍चों की बीमारियों का सटीक उपचार कर सकते है। डॉ राहुल ने पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजी की पढ़ाई कैंब्रिज यूके से की है। डॉ राहुल ब्रिटिश पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजी एसोसिएशन के सदस्य और पीडियाट्रिक एपिलेप्सी ट्रेनिंग के ट्रेनर हैं।