इमरजेंसी चिकित्सा सेवाओं को छोड़कर बाकी सभी चिकित्सा सेवाएं बंद रहीं
केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित नेशनल मेडिकल काउंसिल (NMC) के विरोध में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के ‘कॉल फोर ऐक्शन’ के आह्वान पर आज देश भर के डॉक्टरों ने इमरजेंसी चिकित्सा सेवाओं को छोड़कर बाकी सभी चिकित्सा सेवाएं बंद रखीं, जिसके कारण देश के लगभग सभी प्रमुख राज्यों में विशेष रूप से टियर 2, 3, 4 शहरों और कस्बों में गैर-आपातकालीन सेवायें बन्द रहीं, जिसके कारण मरीजों की चिकित्सा सेवायें प्रभावित हुईं।
आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रवि वानखेडकर ने यह दावा करते हुए कहा है कि जिस तरह से हमारे एक आह्वान पर डॉक्टरों ने बंदी में साथ दिया है, यह सिद्ध करता है कि सरकार के एमएनसी विधेयक खिलाफ आईएमए को अपने संघर्ष में शानदार नैतिक विजय मिली है।
डॉ रवि वानखेडकर ने घोषणा की है कि दरअसल आईएमए की ओर से गैर आपातकालीन सेवाओं को बंद रखने का आह्वान सरकार के लिए केवल एक चेतावनी संकेत था। यदि सरकार जन विरोधी और अमीरों के हितों को साधने वाले गैर लोकतांत्रिक एवं गैर संघीय एनएमसी विधेयक को लागू करेगी तो आईएमए अपने आंदोलन को तेज करने के लिए मजबूर होगा। उन्होंने कहा कि “संघर्ष जारी रहेगा“। उन्होंने दोहराया कि आईएमए का मुद्दा आम आदमी का मुद्दा है।
डॉ रवि वानखेडकर ने कहा कि हम समाज के हाशिए के और वंचित वर्गों के हितों की रक्षा के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप करने की अपील करते है।
50 प्रतिशत सीटों पर बोली लगाकर एडमिशन का अधिकार मिल जायेगा निजी मेडिकल कॉलेजों को
इस सम्बंध में आईएमए के लखनऊ कार्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में आईएमए उत्तर प्रदेश के प्रेसीडेंट इलेक्ट डॉ ए एम खान ने बताया कि NMC बिल के तहत निजी मेडिकल कॉलेजों में 50 प्रतिशत सीटें अपने हिसाब से भरने का अधिकार मिल जायेगा, यही नहीं उन पर एडमिशन सबसे ज्यादा बोली लगाने वालों का होगा। इसका एक बड़ा नुकसान कम आमदनी वाले अभिभावकों के बच्चों का होगा। इस विधेयक के लागू होने के बाद देश में चिकित्सा शिक्षा का खर्च कई गुना बढ़ जाएगा, और यहां तक कि ऊपरी मध्यम वर्ग के लोग के लिए भी इस खर्च को वहन करना असंभव हो जाएगा। उत्तराखंड और महाराष्ट्र में ऐसे मामले देखे जा चुके हैं जहां प्रबंधन ने एमबीबीएस के लिए प्रति वर्ष 25 लाख रुपये का शुल्क बढ़ा दिया।
NMC में डॉक्टरों की आजादी खत्म हो जायेगी
उन्होंने यह भी कहा कि NMC में डॉक्टरों की आजादी को खत्म कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि 25 सदस्यों वाले NMC में डॉक्टरों की भागीदारी सिर्फ पांच सीटों पर ही है। हम लोगों ने नौ सीटों की मांग की थी। इसके लिए बनी स्टीयरिंग कमेटी में कई सदस्य इससे सहमत थे लेकिन 32 सदस्यीय कमेटी में सत्तारूढ़ पार्टी के 17 सदस्य होने के कारण यह बात लागू नहीं हो पायी।
कॉरपोरेट कल्चर विकसित करना चाह रही है सरकार
लखनऊ शाखा के सचिव डॉ जेडी रावत ने कहा कि यह विधेयक लागू होने से चिकित्सा की पढ़ाई महंगी होगी और इसका भार जनता पर ही पड़ेगा।
डॉ अलीम सिद्दीकी ने कहा कि सरकार कॉरपोरेट कल्चर विकसित करना चाह रही है, लेकिन अगर यह हुआ तो चिकित्सकों को भी ज्यादा संसाधन जुटाने पड़ेंगे, उसमें लागत बढ़ेगी, जिसका बोझ अंततः मरीज पर ही पड़ेगा।
ब्रिज कोर्स करके आयुष डॉक्टरों को MBBS की मान्यता देना न्यायसंगत नहीं
डॉ रमा श्रीवास्तव ने कहा कि MBBS कोर्स सबसे कठिन कोर्स है, यह गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। ऐसी स्थिति में एक ब्रिज कोर्स करके आयुष डॉक्टरों को MBBS की मान्यता देना न्यायसंगत नहीं है।
एमसीआई को समाप्त कर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का गठन पूर्णतः अलोकतांत्रिक
पत्रकार वार्ता में उपस्थित डॉ जीपी सिंह, डॉ मनोज श्रीवास्तव, प्रेसीडेन्ट इलेक्ट आईएमए लखनऊ डा जेपी सिह सहित सभी का कहना था कि हम चाहते हैं कि सरकार मौजूदा विधेयक पर पुनर्विचार करे। सभी ने नेशनल मेडिकल कमीशन बिल का विरोध करते हुए इस बिल को पूर्णतः अलोकतांत्रिक, गरीबों के विरुद्ध, संघीय विरोधी, कमजोर समुदाय विरोधी एवं अमीरों को रास आने वाला बताया गया है। इस बिल के माध्यम से भारत सरकार के समस्त अधिकारों को केन्द्रीयकृत करने का इरादा स्पष्ट दिखाई देता है। लोकतांत्रिक तरीके से चुने हुए एमसीआई को समाप्त कर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का गठन पूर्णतः अलोकतांत्रिक है।
महंगी पढ़ाई एवं महॅगा इलाज का बोझ जनता पर पड़ेगा
महंगी पढ़ाई एवं महॅगा इलाज का बोझ जनता पर पड़ेगा यह स्पष्ट है कि मौजूदा स्नातकोत्तर नीट परीक्षा में सामाजिक आर्थिक कमजोर वर्ग के छात्रों का प्रदर्शन कमजोर रहा है। एग्जिट टेस्ट के रूप मे अंतिम एम0बी0बी0एस0 परीक्षा का उपयोग विभिन्न कारणों से गरीब व पिछड़े समुदायों के छात्रों के लिए दुष्कर होगा जिसके परिणामस्वरूप सम्बन्धित राज्य चिकित्सा परिषदों के साथ पंजीकृत नहीं हो पायेंगे। फाइनल इयर की परीक्षा जो एक्जिट परीक्षा माना जायेगा वह यूनीर्वसिटी एक्ट की अवहेलना है।