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सीओपीडी से बचना है तो बचना होगा धुएं भरे वातावरण से

-विश्‍व सीओपीडी दिवस (17 नवम्‍बर) पर सम्‍पूर्ण जानकारी से भरपूर लेख डॉ सूर्यकान्‍त की कलम से

डॉ सूर्यकान्‍त

क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सी.ओ.पी.डी.) फेफड़े की एक प्रमुख बीमारी है, जिसे आम भाषा में क्रॉनिक ब्रोन्काइटिस भी कहते हैं। प्रतिवर्ष नवम्बर के तीसरे बुधवार को विश्व सी.ओ.पी.डी. दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष के सी.ओ.पी.डी. दिवस की थीम है-स्वस्थ फेफड़ेः कभी अधिक महत्वपूर्ण नहीं रहे (हेल्दी लंग्सः नेवर मोर इम्पोवर्टेन्ट)।किन्तु इस कोरोना काल ने हमें हमारे एक जोड़ी फेफड़ों की अहमियत बता दी है।विश्व सी.ओ.पी.डी. दिवस का आयोजन ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव लंग डिजीज (गोल्ड) द्वारा दुनिया भर में सांस रोग विशेषज्ञों और सी.ओ.पी.डी. रोगियों के सहयोग से किया जाता है। इसका उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना, विचार साझा करना और दुनिया भर में सी.ओ.पी.डी. के बोझ को कम करने के तरीकों पर चर्चा करना है। विश्व सी.ओ.पी.डी. दिवस का आयोजन प्रत्येक देश में चिकित्सकों, शिक्षकों और जनता द्वारा किया जाता है। पहला विश्व सी.ओ.पी.डी. दिवस सन् 2002 में आयोजित किया गया था। हर साल 50 से अधिक देशों में इसका आयोजन किया जाता है, जिससे यह दिन दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण सीओपीडी जागरूकता और शिक्षा कार्यक्रमों में से एक बन जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार सी.ओ.पी.डी.दुनिया भर में होने वाली बीमारियों से मौत का तीसरा प्रमुख कारण है। भारत सी.ओ.पी.डी. के प्रसार में दुनिया में सबसे आगे है, सी.ओ.पी.डी. के कारण होने वाली मौतो में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है और तेजी से आगे निकल रहा है। सन् 2019 में विश्व में 32 लाख लोगों की मृत्यु इस बीमारी की वजह से हो गयी थी वही भारत में लगभग 5 लाख लोगों की मृत्यु हुयी थी। अगर हम विश्व की दस प्रमुख बीमारी की बात करें तो सन् 1990 में यह छठवीं मुख्य बीमारी थीं वही अब यह तीसरे नम्बर पर आ गयी है।

धूम्रपान सी.ओ.पी.डी. का प्रमुख जोखिम कारक है, किन्तु आज विश्व में बढ़ता हुआ वायु प्रदूषण, इसके मुख्य कारणों में से एकहै। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा भोजन बनाने में उपयोग होने वाले उपले, लकड़ी, अंगीठी, मिट्टी के चूल्हे के द्वारा निकलने वाले धुएं से भी यह बीमारी हो सकती है। सर्दी का मौसम शुरू को चुका है। सुबह सुबह फॉग एवं स्मॉग भी जल्द ही आसमान पर छाने लगेगा। इस समय वायु प्रदूषण और बढ़ जाता है। इसके साथ ही सांस की बीमारियां, निमोनिया एवं क्रॉनिक ब्रोन्काइटिस का प्रकोप बढ़ने लगा है, जिसकी वजह से बीमारी की तीव्रता बढ़ जाती है और सी.ओ.पी.डी. के मरीजों को ज्यादा तकलीफ होती है। फलस्वरूप मरीजों में सांस के दौरे, मरीजों का अस्पताल में बड़ी संख्या में भर्ती होना, और अधिक मृत्यु दर देखी जाती हैं।

लक्षणः

सी.ओ.पी.डी. की बीमारी में प्रारम्भ में सुबह के वक्त खांसी आती है, धीरे-धीरे यह खांसी बढ़ने लगती है और इसके साथ बलगम भी निकलने लगता है। सर्दी के मौसम में खासतौर पर यह तकलीफ बढ़ जाती है। बीमारी की तीव्रता बढ़ने के साथ ही रोगी की सांस फूलने लगती है और धीरे-धीरे रोगी सामान्य कार्य जैसे- नहाना, धोना, चलना-फिरना, बाथरूम जाना आदि में भी अपने को असमर्थ पाता है। पीड़ित व्यक्ति का सीना आगे की तरफ निकल आता है। रोगी फेफड़े के अन्दर रुकी हुई सांस को बाहर निकालने के लिए होठ गोल कर मेहनत के साथ सांस बाहर निकालता है, जिसे पर्स लिप ब्रीदिंग कहते है। गले की मांसपेशिया उभर आती है और शरीर का वजन घट जाता है।पीड़ित व्यक्ति को लेटने में परेशानी होती है। इस बीमारी के साथ हृदय रोग होने का भी खतरा बढ़ जाता है। बीमारी की तीव्रता बढ़ने पर इस बीमारी में शरीर के अन्य अंगों पर भी बुरा असर पड़ता है। हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है, हृदय रोग, किड़नी रोग, लिवर रोग, मानसिक रोग, अनिद्रा, अवसाद व कैंसर आदि का खतरा बढ़ जाता है।

परीक्षणः

सामान्यतः प्रारंभिक अवस्था में एक्स-रे में फेफड़े में कोई खराबी नजर नहीं आती, लेकिन बाद में फेफड़े का आकार बढ़ जाता है। इसके परिणामस्वरूप दबाव बढ़ने से दिल लम्बा और पतले ट्यूब की तरह (ट्यूबलर हार्ट) हो जाता है। इस रोग की सर्वश्रेष्ठ जांच स्पाइरोमेटरी (कम्प्यूटर के जरिये फेफड़े की कार्यक्षमता की जांच) या पी.एफ.टी. ही है, लेकिन वर्तमान कोविड काल में ये जांचें बहुत आवश्यकता पड़ने पर ही की जाती हैं क्योंकि इनसे संक्रमण फैलने का खतरा रहता है। गंभीर रोगियों में ए.बी.जी. के जरिये रक्त में ऑक्सीजन और कार्बन डाईऑक्साइड की जांच की जाती है। कुछ रोगियों में सी.टी. स्कैन की भी आवश्यकता पड़ती है।

उपचारः

सी.ओ.पी.डी. के उपचार में इन्हेलर चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ है जिसे चिकित्सक की सलाह से नियमानुसार लिया जाना चाहिए। सर्दियों में दिक्कत बढ़ जाती है, इसलिये चिकित्सक की सलाह से दवा की डोज में परिवर्तन किया जा सकता हैं। खांसी व अन्य लक्षणों के होने पर चिकित्सक के सलाहनुसार संबधित दवाइयां ली जा सकती है। खांसी के साथ गाढ़ा या पीला बलगम आने पर चिकित्सक की सलाह से एन्टीबायोटिक्स ली जा सकती है। गम्भीर रोगियों में नेबुलाइजर, ऑक्सीजन व नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन (एन.आई.वी.) का उपयोग भी किया जाता है। आधुनिक चिकित्सा के रूप में अब लंग स्टेंट, वाल्व, लंग वॉल्यूम रिडक्शन सर्जरी (एल.वी.आर.एस) तथा फेफड़े का ट्रांसप्लांट जैसे उपचार भी किये जा रहे हैं।

अगर कोरोना महामारी के परिदृश्‍य में कहा जाय तो कोरोना का खतरा उनलोगों को ज्यादा होता है जो सी.ओ.पी.डी. या किसी अन्य बीमारी से पीड़ित हैं और यह बीमारी नियंत्रण में नहीं है। कोरोना से बचाव के लिए सी.ओ.पी.डी. के रोगियों को अपना समुचित उपचार कराना चाहिए।

बचावः

सी.ओ.पी.डी. का सर्वश्रेष्ठ बचाव धूम्रपान को रोकना है। जो रोगी प्रारम्भ में ही धूम्रपान छोड़ देते हैं उनको अधिक लाभ होता है। इसके अतिरिक्त अगर रोगी धूल, धुआं या गर्दा के वातावरण में रहता है या कार्य करता है उसे शीघ्र ही अपना वातावरण बदल देना चाहिए या ऐसे काम छोड़ देने चाहिए। ग्रामीण महिलाओं को लकड़ी, कोयला या गोबर के कंडे (उपले) के स्थान पर गैस के चूल्हे पर खाना बनाना चहिए। इस सम्बन्ध में भारत सरकार की उज्ज्वला योजना, जिसमें 15 नवम्बर 2021 तक 8.6 करोड़ गरीब परिवारों को मुफ्त एल.पी.जी. कनेक्शन दिया गया है) भी प्रभावी हो रही है।उज्‍ज्वला योजना के दूसरे चरण की भी शुरूआत हो चुकी है। इसके अतिरिक्त सी.ओ.पी.डी. के रोगियों को प्रतिवर्ष इन्फ्लूएंजा वैक्सीन बचाव के लिए लगवाना चाहिए, जबकि न्यूमोकोकल वैक्सीन भी जीवन में एक बार लगवाना चाहिए। कोविड काल में मास्क लगाना अति आवश्यक माना गया है, यह हमें वायु प्रदूषण से भी बचाता है जिससे सी.ओ.पी.डी. का खतरा कम होता है।

क्या करें :

सर्दी से बचकर रहें। पूरा शरीर ढंकने वाले कपड़े पहनें। मास्क लगायें, सिर, गले और कान को खासतौर पर ढकें। सर्दी के कारण साबुन पानी से हाथ धोने की अच्छी आदत न छोड़े, यह कवायद आपको जुकाम, फ्लू तथा कोरोना की बीमारी से बचाकर रखती है। गुनगुने पानी से नहाएं। सांस के रोगी न सिर्फ सर्दी से बचाव रखें वरन नियमित रूप से चिकित्सक के सम्पर्क में रहें व उनकी सलाह से अपने इन्हेलर की डोज भी दुरुस्त कर लें। कई बार इन्हेलर्स की मात्रा बढ़ानी होती है तथा आमतौर पर ली जाने वाली नियमित खुराक से ज्यादा मात्रा में खुराक लेनी पड़ती है। धूप निकलने पर धूप अवश्य लें। शरीर को मालिश करने पर रक्त संचार ठीक होता है। सर्दी, जुकाम, खांसी, फ्लू व सांस के रोगियों को सुबह-शाम भाप लेनी चाहिए। यह गले व सांस की नलियों (ब्रान्काई) के लिए फायदेमंद है। चिकित्सक की सलाह से वैक्सीन का प्रयोग जाड़े के मौसम में सक्रिय हानिकारक जीवाणुओं से सुरक्षा प्रदान करता है।

क्या न करें:

सर्दी में सांस के मरीजों को मार्निंग वॉक नहीं करनी चाहिए। सुबह-सुबह ठण्डे पानी से न नहायें। सांस के रोगियों को अलाव के धुयें से बचना चाहिये अन्यथा इससे उन्हें सांस का दौरा पड़ सकता है। साबुन से हाथ धोये बिना भोजन करने, आंख, नाक या मुंह को छूने से बचें। हाथ मिलाने से बचें। नमस्ते करना ज्यादा स्वास्थ्यकर अभिवादन है। इससे आप फ्लू, कोरोना समेत कई छूने से फैलने वाले संक्रमणों से बच सकते हैं।

(लेखक डॉ सूर्यकान्त केजीएमयू के पल्‍मोनरी मेडिसिन विभाग में एचओडी हैं)

धुएं से बचेंगे तो सीओपीडी से भी बचे रहेंगे

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