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ठीक हो गए हैं तो भी दवा लेना डॉक्टर की सलाह पर ही बंद करें

टीबी दिवस की पूर्व संध्या पर विशेषज्ञों की टीबी रोगियों से अपील

लखनऊ. भारत से ट्यूबरकुलोसिस यानी टीबी उन्मूलन के लिए 2025 का लक्ष्य रखा गया है लेकिन इसमें सबसे ज्यादा बाधक एमडीआर यानी मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट के केस हैं. आपको बता दें विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से 2030 तक पूरे विश्व से टीबी उन्मूलन करने का लक्ष्य है लेकिन भारत सरकार ने इसे 2025 तक ख़त्म करने का लक्ष्य रखा है.

 

विश्व टीवी दिवस के अवसर पर केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर वेद प्रकाश, वल्लभ भाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक डॉ. राजेंद्र प्रसाद, केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ आर एस कुशवाहा, पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर अजय कुमार वर्मा ने यहाँ आयोजित एक पत्रकार वार्ता में टीबी के सम्बन्ध में कई महत्वपूर्ण जानकारियां दीं. पत्रकार वार्ता में बताया गया कि TB को खत्म करने के लिए बहुत जरूरी है कि एमडीआर के केसेस को खत्म किया जाए. बताया गया कि एमडीआर के केसेस बढ़ने की मुख्य वजह यह होती है कि टीबी का मरीज अपना इलाज बीच में ही छोड़ देता है. विशेषज्ञों ने बताया कि सामान्यता टीबी को ठीक किया जा सकता है लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि शुद्ध एवं पौष्टिक खानपान, अच्छी दिनचर्या और पूरा इलाज लिया जाए. उन्होंने बताया कि कई बार यह देखा जाता है कि मरीज पूरा इलाज नहीं करवाते हैं उन्होंने बताया कि टीबी के सामान्य मरीजों का इलाज 6 से 8 महीने तथा एमडीआर टीबी का इलाज 2 साल तक चलता है.

 

विशेषज्ञों ने बताया कि कुछ मरीज ऐसा करते हैं कि कुछ दिन दवा खाने के बाद जैसे ही वह ठीक होने लगते हैं वह यह सोचकर कि अब मैं ठीक हो गया हूं, दवा लेना बंद कर देते हैं, जबकि यह आराम फौरी तौर पर होता है. डॉक्टरों ने कहा कि हम लोगों की ऐसे मरीजों से अपील है कि वह टीबी की दवा लेना अपने मन से बंद ना करें, कोर्स पूरा करें. डॉक्टरों का कहना है कि दरअसल होता यह है की शुरुआत में दवा खाने के बाद जब टीवी के कीटाणु शिथिल पड़ जाते हैं तो मरीज को आराम महसूस होता है लेकिन टीबी के शरीर से जड़ से खत्म करने के लिए पूरा इलाज ही करना एकमात्र विकल्प है, तात्कालिक लाभ लेना नहीं. डॉक्टरों ने कहा कि मरीजों को यह समझना चाहिए कि बीच में दवा बंद करने का परिणाम यह होता है कि रोग फिर से उभर आता है और फिर दोबारा इलाज करने पर पहले दी जा चुकी दवाएं काम नहीं करती हैं, यानि मरीज उन दवाओं के प्रति रेसिस्टेंट हो जाता है, यही स्थिति एमडीआर टीबी कहलाती है.

 

पत्रकार वार्ता में बताया गया कि भारत में हर 3 मिनट में 2 मरीजों की मौत TB से हो रही है. इसी प्रकार हर साल लगभग 211 मरीज प्रति लाख जनसंख्या में क्षय रोग से ग्रसित हो रहे हैं, इनमें 7 मरीजों में क्षय रोग के साथ HIV भी होता है और 11 मरीजों को एमडीआर हो जाता है. इसके अतिरिक्त इन  211 मरीजों में से 32 मरीजों की क्षय रोग से मृत्यु हो रही है हर साल लगभग 3% नए एमडीआर टीबी रोगी हो रहे हैं तथा 12% पुराने मरीजों में एमडीआर रोग पाया जा रहा है. इसके अलावा लगभग 16% टीबी के मरीज ऐसे हैं जिनमें मधुमेह भी है और लगभग 2.8% मधुमेह रोगियों को टीबी रोग हो जाता है. भारत में करीब 6 करोड़ मधुमेह रोगी हैं जिनमें से 18 लाख टीबी  की चपेट में है यह संख्या तेजी से बढ़ रही है उन्होंने कहा की TB मुक्त भारत के संकल्प के लिए भारत सरकार ने जो दिशानिर्देश जारी किए हैं उनका अनुपालन कड़ाई से किया जाना चाहिए. विशेषज्ञों ने आमजनों से अपील की कि चूँकि टीबी संक्रामक रोग है ऐसे में टीबी के रोगी खांसते-छींकते समय मुंह पर कपड़ा रख लें, जिससे टीबी के विषाणु दूसरों को न संक्रमित कर सकें.

 

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