-कोरोना से इस तरह बचाया जा सकता है डॉक्टरों व अस्पताल कर्मियों को
-इप्सेफ के प्रवक्ता व आईपीए के महासचिव सुनील यादव ने दिये सुझाव
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। व्यवहारिक दिक्कतों के बाद नियमों, व्यवस्थाओं में परिवर्तन होना एक सतत और परिणामी प्रक्रिया है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण है उत्तर प्रदेश में ‘होम आइसोलेशन की अनुमति’। सरकार की इस अनुमति के बाद मृत्यु दर के आंकड़ों में कमी आयी है, मरीज के ठीक होने की गति बढ़ी है और सबसे बड़ी बात लोगों का डर दूर हुआ, जांच के लिए लोग स्वउत्साहित हुए, लेकिन अब फिर कोविड की जांच और उपचार के व्यवस्था प्रबंधन में बड़े बदलाव की जरूरत है।
यह कहना है इप्सेफ के प्रवक्ता व आईपीए के महासचिव सुनील यादव का। सुनील का कहना है कि चिकित्सालयों में स्वास्थ्यकर्मी लगातार संक्रमित हो रहे हैं, अनेक चिकित्सक, फार्मेसिस्ट संक्रमित होकर शहीद हो गए, ऐसा न हो कि मरीजो की सेवा करने वाले ही मरीज होकर पड़े हों और उनका उपचार करने वाला कोई न हो।( डरा नहीं रहा हूँ केवल एक तस्वीर जो मन मे आयी वो बताया)…
उन्होंने कहा कि संगठन का सुझाव है कि इसके लिए सबसे आवश्यक है — 1- चिकित्सालयों में आने वाले अनआइडेंटिफाइड मरीजों की तुरंत जांच, अगर इमरजेंसी में आने वाले या भर्ती होने वाले सभी मरीजों को तत्काल रैपिड जाँच के बाद उनकी भर्ती उपचार प्रक्रिया की जाए (रैपिड जांच/ एंटीजन में 2 से 3 मिनट का समय लगता है) तो चिकित्साकर्मी और चिकित्सालय दोनों की संक्रमण दर बिल्कुल कम हो जाएगी।
2.. पैथोलॉजी स्टाफ बढ़ाते हुए हर चिकित्सालय में ऐसी व्यवस्था हो कि वहां जांच के लिए आने वाला व्यक्ति परिसर में पर्चा, रजिस्ट्रेशन, सैंपल आदि के लिए बार-बार लाइन न लगे और पूरे अस्पताल में घूमता ना रहे। इसके लिए यथासंभव चिकित्सालय के प्रवेश द्वार के आसपास ही सिंगल विंडो पर सतत सैंपल, रजिस्ट्रेशन होना चाहिए जिससे कोई भी जाँच करने वाला व्यक्ति अधिकतम 15 से 30 मिनट में चिकित्सालय के बाहर चला जाये।
3. कोविड चिकित्सालयों के रिक्त बेड की सूचना ऑनलाइन होनी चाहिए जो सर्वसुलभ हो ।
4. चिकित्सा कर्मियों के संक्रमित होने पर उनके लिए अलग वार्ड या बेड आरक्षित होने अत्यंत आवश्यक है ।
इस प्रकार के सुझाव विशेषज्ञ टीम द्वारा प्रशासन को उपलब्ध कराया जाए तो शायद ये जनहित में होगा ।