-लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉ विक्रम सिंह ने दिया सेप्सिस पर वक्तव्य
सेहत टाइम्स
लखनऊ। संक्रमण की शुरुआत में ही यदि चिकित्सक व अस्पताल के अन्य स्टाफ यदि छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखें तो मरीज की किडनी को सेप्सिस के संक्रमण से बचाया जा सकता है।
यह बात डॉ राम मनोहर लोहिया संस्थान के डॉ विक्रम सिंह ने आज विश्व सेप्टीसीमिया दिवस (13 सितम्बर) पर केजीएमयू के पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर विभाग में आयोजित सेप्सिस अपडेट 2023 में केजीएमयू अपने प्रेजेंटेशन में कही। उन्होंने सेप्सिस से होने वाली गुर्दे की बीमारी पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि जब भी लोगों को संक्रमण होता है तो एक तिहाई मरीजों को रीनल इंजरी यानी गुर्दे की बीमारी हो जाती है जबकि आईसीयू में भर्ती होने वाले 50 प्रतिशत लोगों को रीनल इंजरी हो जाती है। डॉ विक्रम ने कहा कि स्टडी में पाया गया है कि संक्रमण होने के प्रारम्भ में कुछ ऐसे मॉलीक्यूल्स हैं जिनके पता चलने पर किडनी में होने वाले संक्रमण को रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि इसके लिए संक्रमण की शुरुआत होने पर ही चिकित्सक के साथ ही अन्य अस्पताल के स्टाफ की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाती है। अगर सही तरीके से इस पर ध्यान दे दिया जाये तो मरीज की स्थिति को गंभीर होने से बचाया जा सकता है जिससे उसे आईसीयू में भी भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
इसे स्पष्ट करते हुए डॉ विक्रम ने कहा कि जैसे चिकित्सक को चाहिये कि वह शुरुआती स्टेज में संक्रमण को प्रॉपर एंटीबायोटिक देकर समाप्त करें, यही नहीं इस पर लगातार मॉनीटरिंग की जानी चाहिये जिससे संक्रमण का लोड कम होते ही दवा का डोज भी कम कर देना चाहिये। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार शरीर में फ्ल्यूड बैलेंस पर नजर रखना जरूरी है, जैसे मरीज ने कितना लिक्विड लिया और कितना लिक्विड शरीर के बाहर निकला इसका सही मेजरमेंट बहुत सावधानी से करना चाहिये। बहुत बार ऐसा होता है कि न तो मरीज के इनटेक का सही मेजरमेंट का रिकॉर्ड रखा जाता है और न ही उसके द्वारा की जा रही पेशाब का मेजरमेंट सही दर्ज किया जाता है, यह स्थिति भी संक्रमण के न ठीक होने बल्कि बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होती है।