देर से इलाज में मिलती है मात्र 40 प्रतिशत सफलता
लखनऊ। शरीर में बड़ी गिल्टियां, साथ में बुखार आ रहा हो तो, यह लिम्फोमा कैंसर के स्पष्ट लक्षण हैं, इसके इलाज में देर नहीं करना चाहिये। इसी तरह खून की कमी और हड्डी में फ्रैक्चर हो रहा है तो माइलोमा कैंसर होता है, इसमें लोगों को खून में प्रोटीन की जांच कराकर, कैंसर विशेषज्ञ से भी जरूर मिलना चाहिये अन्यथा इलाज मुश्किल और कम फायदे वाला रह जाता है। यह जानकारी शनिवार को थर्ड आइएसएचबीटी-इएचए ट्यूटोरियल के दूसरे दिन केजीएमयू के प्रो.एके त्रिपाठी ने दी।
गोमती नगर स्थित निजी होटल में इंडियन सोसाइटी ऑफ हेमेटोलॉजी एडं ब्लड ट्रांसफ्यूजन, यूरोपियन हेमोटोलॉजी सोसाइटी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित लिम्फोप्रोलाइफेरेटिव एवं प्लाज्मा सेल डिसआर्डर विषयक तीन दिवसीय कार्यशाला के आयोजन सचिव प्रो.त्रिपाठी ने हाई ग्रेड लिम्फोमा कैंसर की जानकारी देते हुए बताया कि लिम्फोमा कैंसर के इलाज में आर-सीएचओपी नामक ट्रीटमेंट देते हैं। ‘ आर यानि एंटीबाडी इम्यून सिस्टम को मजबूत करने वाला और सीएचओपी मतलब कीमोथेरेपी की चार दवाएं। अगर मरीज का प्रारम्भिक चरण में ही इलाज शुरू होता है तो 80 प्रतिशत सफलता मिलती है, जबकि देर से आने से सफलता दर घट कर 40 प्रतिशत रह जाती है। नये शोधों द्वारा मरीज के इम्यून सिस्टम को बढ़ाने के लिए एंटीबाडी को कीमोथेरेपी के दुष्प्रभाव को कम करने और सफलता दर बढ़ाने के लिए नई दवाओं की जोडऩे का प्रयास किया जा रहा है। इसके अलावा जो 20 प्रतिशत मरीज होते हैं, उनमें दोबारा कैंसर होता हैं। इन मरीजों में ऑटोलोगस तकनीक अपनाते हैं, इसमें मरीज के ही स्टेम सेल बाहर निकालकर, हाई पावर कीमोथेरेपी देते है और बाद में वापस स्टेम सेल प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इसके बाद कीमो के बाद सुरक्षित स्टेम सेल पहुंचने से अच्छे सेल का निर्माण दोबारा शुरू होने लगता है।
नेफ्रोलॉजिस्ट के पहले कैंसर विशेषज्ञ के पास पहुंचें
प्रो.त्रिपाठी ने बताया कि माइलोमा कैंसर में कई प्रकार के लक्षण प्रकट होते हैं। हडड़ी में छोटे छोटे छेद हो जाते हैं और कमजोर होने की वजह से फ्रैक्चर आसानी से होते हैं। इसके अलावा खून की कमी की वजह से गुर्दे की समस्या आ जाती है, मरीज नेफ्रोलॉजिस्ट से इलाज कराते रहते हैं। जबकि खून की कमी होने पर, खून में प्रोटीन की जांच करायें ओर प्रोटीन बढ़ा होने पर कैंसर विशेषज्ञ के पास जरूर जाना चाहिये। इसके बाद नेफ्रोलॉजिस्ट से इलाज कराते रहें। उन्होंने बताया कि माइलोमा कैंसर के इलाज में डेवन केयर की जरूरत होती है। इसमें कीमोथेरेपी की जगह इंजेक्शन या दवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।
इलाज के बाद संक्रमण से बचना जरूरी
प्रो.त्रिपाठी ने बताया कि कीमोथेरेपी हो या अन्य इलाज, हाई पावर की दवाओं के प्रभाव से मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है। इसलिए कैंसर ठीक होने के बाद संक्रमण होने की संभावना अधिक होती है। संक्रमण फैलना मरीज के लिए घातक हो सकता है। इसलिए इलाज उपरांत कुछ माह तक विशेष सावधानी बरतनी चाहिये और बेहतर भोजन से इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाना चाहिये।