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भावी डॉक्टरों को जरूर पढ़ाया जाए मरीजों से उचित संवाद का पाठ : डॉ. सूर्यकान्त

“हीलिंग हैंड्स, केयरिंग हार्ट्स” थीम के साथ मनाया जा रहा राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस

डॉ. सूर्यकान्त

सेहत टाइम्स

लखनऊ। चिकित्सकों को समाज में धरती के भगवान के रूप में दर्जा प्राप्त है। यह उनके सेवा, समर्पण, करुणा और बेहतर देखभाल को देखते हुए मिला है, क्योंकि मुसीबत के वक्त उनकी प्राथमिकता में मरीज या जरूरतमंद होता है न कि उनकी अपनी निजी जिन्दगी। ऐसे चिकित्सकों के समर्पण के प्रति शुक्रिया अदा करने के लिए ही एक जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। इसी उद्देश्य के साथ आज हम इस दिवस को “हीलिंग हैंड्स, केयरिंग हार्ट्स” थीम के साथ मना रहे हैं। इसके मुताबिक़ स्टेस्थोस्कोप के साथ जहाँ वह सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा का प्रतिनिधित्व करते हैं वहीँ हीलर के रूप में रोगियों और जरूरतमंदों के जीवन में आशा का संचार करते हैं।

केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि वर्ष 1994 में जब से चिकित्सकीय पेशे को उपभोक्ता अधिनियम (कन्ज्यूमर एक्ट) में शामिल किया गया, तब से यह चिकित्सकीय पेशा सेवा का माध्यम न होकर एक व्यवसाय बन गया। भारत में ज्यादातर प्राइवेट अस्पताल/नर्सिंग होम अब एक व्यवसाय हैं और कई बार इसके मालिक डॉक्टर न होकर व्यवसायी ही होते हैं। ऐसे अस्पतालों को बनाने और चलाने में बहुत खर्च आता है। अतः यहाँ इलाज भी महंगा ही होगा। इससे डाक्टरों से मरीजों के सम्बन्धों का मनोविज्ञान और मानसिकता बदल रही है। मरीज की हालत गंभीर हो और धैर्य व सहनशीलता की सबसे ज्यादा जरूरत हो, मरीजों और चिकित्सकों के बीच स्थापित मर्यादा और सदव्यवहार की लक्ष्मण रेखा आसानी से और अक्सर ही ध्वस्त हो जाती है। कारणों की तह में जायें तो एक तथ्य यह भी सामने आता है कि दस-दस साल चिकित्सा शास्त्र के हर गूढ़ और गहन तथ्यों को समझने-बूझने में लगे डाक्टरों को मरीजों से उचित संवाद के बारे में बिल्कुल भी प्रशिक्षित नहीं किया जाता। पढ़ाई के दौरान प्रशासनिक प्रशिक्षण व कानूनी प्रशिक्षण भी नहीं दिया जाता, जिसके कारण आगे चलकर उन्हें मेडिको-लीगल व प्रशासनिक दायित्व निर्वाह करने में भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसीलिए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, इंडियन इंजीनियरिंग सर्विसेज की तर्ज पर इंडियन मेडिकल सर्विसिज (आई.एम.एस.) की मांग कर रही है।

एक बड़ा कारण जो डाक्टर-रोगी के रिश्तों को प्रभावित करता है वह है डाक्टरों की कमी। वर्ष 2018 की नेशनल हैल्थ प्रोफाइल रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति 11,082 जनसंख्या पर एक एलोपैथिक चिकित्सक है, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक (1,000 जनसंख्या पर एक चिकित्सक) से 10 गुना कम है। काम के बोझ से जुडे़ तनाव तो इस सेवा का हिस्सा बन ही चुके हैं। इन दोनों छोरों पर भी बड़े सुधार की तत्काल आवश्यकता है। एक अन्य कारण जो चिकित्सक रोगी के संबंधों को बिगाड़ रहा है, वह है समाज में बढ़ती उग्रता। इस सोच के कारण चिकित्सक रोगी का उपचार करे या समाज के बढ़ते उग्र स्वरूप से स्वयं की रक्षा करे या अपनी क्लीनिक या अस्पताल के शीशे टूटने से बचाए, यह भी एक विकराल समस्या कुछ वर्षों से तेजी से उभरी है। किसी रोगी की यदि उपचार के दौरान मृत्यु हो जाए तो तुरन्त आरोप लगता है कि डाक्टर की लापरवाही से मरीज की मृत्यु हो गई, जबकि सच्चाई यह है कि कोई भी चिकित्सक क्यों चाहेगा कि उसके मरीज की मृत्यु हो जाए या वह ठीक न हो। हर चिकित्सक अपने ज्ञान व जानकारी से रोगी को ठीक करने की कोशिश करता है, जीवन या मृत्यु चिकित्सक के वश में नहीं अपितु ईश्वर के हाथ में है, इस बात का ध्यान समाज को सदैव रखना चाहिए। अतः मरीजों और उनके परिजनों को भी अपने रवैये मे सकारात्मक परिवर्तन लाना होगा। यही कारण है कि आई.एम.ए. राष्ट्रीय स्तर पर एक ’’नेशनल मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट’’ की भी मांग कर रही है।

भारतीय चिकित्सक डा. बी.सी. रॉय के जन्म एवं निर्वाण दिवस (01 जुलाई) को ”चिकित्सक दिवस“ के रूप मे मनाते हैं। भारत रत्न डा. बिधान चन्द्र रॉय का जन्म 01 जुलाई, सन् 1882 को तत्कालीन बंगाल प्रेसीडेन्सी के अंतर्गत बांकीपुर (अब पटना) में हुआ था एवं उनकी मृत्यु 01 जुलाई 1962 को हुई। वह करीब 14 वर्षों तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे और मुख्यमंत्री रहने के दौरान भी वह मरीजों को मुफ्त देखते थे , जिस पर देश को गर्व है।

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