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संत की संगति

जीवन जीने की कला सिखाती कहानी – 27 

डॉ भूपेंद्र सिंह

प्रेरणादायक प्रसंग/कहानियों का इतिहास बहुत पुराना है, अच्‍छे विचारों को जेहन में गहरे से उतारने की कला के रूप में इन कहानियों की बड़ी भूमिका है। बचपन में दादा-दादी व अन्‍य बुजुर्ग बच्‍चों को कहानी-कहानी में ही जीवन जीने का ऐसा सलीका बता देते थे, जो बड़े होने पर भी आपको प्रेरणा देता रहता है। किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय (केजीएमयू) के वृद्धावस्‍था मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ भूपेन्‍द्र सिंह के माध्‍यम से ‘सेहत टाइम्‍स’ अपने पाठकों तक मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य में सहायक ऐसे प्रसंग/कहानियां पहुंचाने का प्रयास कर रहा है…

प्रस्‍तुत है 27वीं कहानी –संत की संगति

एक जंगल में एक संत अपनी कुटिया में रहते थे।

एक किरात (शिकारी), जब भी वहां से निकलता संत को प्रणाम ज़रूर करता था।

एक दिन किरात संत से बोला कि‍ बाबा मैं तो मृग का शिकार करता हूं,

आप किसका शिकार करने जंगल में बैठे हैं ?

संत बोले – श्री कृष्ण का, और फूट फूट कर रोने लगे।

किरात बोला अरे, बाबा रोते क्यों हो ?

मुझे बताओ वो दिखता कैसा है ? मैं पकड़ के लाऊंगा उसको।

संत ने भगवान का वह मनोहारी स्वरूप वर्णन कर दिया….कि वो सांवला सलोना है, मोर पंख लगाता है, बांसुरी बजाता है।

किरात बोला: बाबा जब तक आपका शिकार पकड़ नहीं लाता, पानी भी नही पियूंगा।

फिर वो एक जगह जाल बिछा कर बैठ गया…

3 दिन बीत गए प्रतीक्षा करते-करते, दयालु ठाकुर को दया आ गयी, वो भला दूर कहां हैं,

बांसुरी बजाते आ गए और खुद ही जाल में फंस गए।

किरात तो उनकी भुवन मोहिनी छवि के जाल में खुद फंस गया और एक टक शयाम सुंदर को निहारते हुए अश्रु बहाने लगा,

जब कुछ चेतना हुयी तो बाबा का स्मरण आया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा शिकार मिल गया, शिकार मिल गया, शिकार मिल गया, और ठाकुरजी की ओर देख कर बोला,

अच्छा बच्चु .. 3 दिन भूखा प्यासा रखा, अब मिले हो,

और मुझ पर जादू कर रहे हो।

कृष्ण उसके भोलेपन पर रीझे जा रहे थे एवं मंद-मंद मुस्कान लिये उसे देखे जा रहे थे।

किरात, कृष्ण को शिकार की भांति अपने कंधे पे डाल कर और संत के पास ले आया।

बाबा,

आपका शिकार लाया हुं… बाबा ने जब ये दृश्य देखा तो क्या देखते हैं किरात के कंधे पे श्री कृष्ण हैं और जाल में से मुस्कुरा रहे हैं।

संत के तो होश उड़ गए, किरात के चरणों में गिर पड़े, फिर ठाकुर जी से कातर वाणी में बोले –

हे नाथ मैंने बचपन से अब तक इतने प्रयत्न किये, आप को अपना बनाने के लिए घर बार छोडा,  इतना भजन किया आप नहीं मिले और इसे 3 दिन में ही मिल गए…!!

भगवान बोले – इसका तुम्हारे प्रति निश्छल प्रेम व कहे हुए वचनों पर दृढ़ विश्वास से मैं रीझ गया और मुझ से इसके समीप आये बिना रहा नहीं गया

भगवान तो भक्तों के, संतों के आधीन ही होते हैं

जिस पर संतों की कृपा दृष्टि हो जाय उसे तत्काल अपनी सुखद शरण प्रदान करतें हैं। किरात तो जानता भी नहीं था की भगवान कौन हैं,

पर संत को रोज़ प्रणाम करता था संत प्रणाम और दर्शन का फल ये है कि 3 दिन में ही ठाकुर मिल गए

यह होता है संत की संगति का परिणाम!!

“संत मिलन को जाईये तजि ममता अभिमान ‘

ज्यों-ज्यों पग आगे बढ़े कोटिन्ह यज्ञ समान”

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