-यूपी में पहली बार इम्पल्स ऑसिलोमीटर की सुविधा पल्मोनरी मेडिसिन विभाग में शुरू
-जांच में फूंकने की जरूरत न होने के चलते हवा में संक्रमण भी न्यूनतम
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग में आज 20 जनवरी से इम्पल्स ऑसिलोमीटर से फेफड़ों की जांच की सुविधा शुरू हो गयी है। इस मशीन से बच्चों और वृद्धों के भी फेफड़ों की क्षमता की जांच आसानी से और न्यूनतम हवा में संक्रमण के साथ हो सकेगी। अभी तक यह जांच स्पाइरोमीटर से की जाती है। इसमें मरीज को अपनी पूरी ताकत से फूंकने को कहा जाता है, जबकि इम्पल्स ऑसिलोमीटर में जोर लगाकर फूंकने की जरूरत नहीं है, इम्पल्स ऑसिलोमीटर यांत्रिक गुणों को मापकर श्वसन रोगों के निदान के लिए ध्वनि तरंगों का उपयोग करता है। यह जांच उत्तर प्रदेश के किसी सरकारी संस्थान में पहली बार शुरू हुई है।
इस जांच की शुरुआत विभाग में आज आयोजित एक वर्चुअल संगोष्ठी के मौके पर हुई। वर्चुवल संगोष्ठी की शुरुआत डॉ सजल डे, प्रोफेसर, पल्मोनरी मेडिसिन विभाग, एम्स, रायपुर द्वारा इम्पल्स ऑसिलोमीटर पर एक व्याख्यान के साथ हुई। उन्होंने इस नयी निदान पद्धति के उपयोग के बारे में विभाग के फ़ैकल्टी, रेजीडेंट डॉक्टर्स, संकाय कर्मचारियों को विस्तार पूर्वक बताया। डॉ सजल डे ने बताया कि क्योंकि इसको आसानी से किया जा सकता है, इसलिए इसका उपयोग छोटे बच्चों और बुजुर्ग लोगों में भी किया जा सकता है। ऐसे लोग जो उन प्रक्रियायों को करने में सक्षम नहीं हैं, जिनमें तेज़ी से सांस लेने की आवश्यकता होती है, बेडरेस्ट और आईसीयू रोगियों में भी इसका उपयोग आसानी से किया जा सकता है। प्रश्न उत्तर सत्र में डॉ सजल डे ने प्रतिभागियों के प्रश्नों का उत्तर दिया।
इस सत्र के बाद डॉ सूर्यकांत, प्रोफेसर और प्रमुख, श्वसन चिकित्सा विभाग, केजीएमयू लखनऊ जो आईएमए-एएमएस के नेशनल वाइस चेयरमैन भी हैं, ने इम्पल्स ऑसिलोमेट्री मशीन का उद्घाटन करते हुये कोविड युग में इस तकनीक के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि इस मशीन से फेफड़ों की कार्यक्षमता को मापते समय न्यूनतम एयरोसोल उत्पन्न होता है। डॉ सूर्यकांत ने आगे कहा कि यह प्रारंभिक चरण में सांस की बीमारियों का निदान करने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके साथ ही एक स्वस्थ आदमी पर इम्पल्स ऑसिलोमेट्री की प्रक्रिया का तकनीकी प्रदर्शन भी सब के सामने कार्यक्रम में किया गया।
इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के श्वसन चिकित्सा और बाल रोग विभागों के लगभग तीस स्नातकोत्तर छात्रों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। इस संगोष्ठी के चेयरपर्सन डॉ सूर्य कांत, सह-चेयरपर्सन डॉ राजीव गर्ग, कोऑर्डिनेटर डॉ अजय कुमार वर्मा, सह-कोऑर्डिनेटर बाल रोग विभाग की डॉ सारिका गुप्ता थीं।