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लखनऊ। अगर सरकार इमरजेंसी मेडिकल सिस्टम बना दे तो दुर्घटना के चलते होने वाली मौतों की संख्या को आधा किया जा सकता है। गृह मंत्रालय के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार भारत में वर्ष 2014 में दुर्घटना में हुई मौतों की संख्या 4.5 लाख थी और इस संख्या में प्रतिवर्ष 13 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है।
सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश में
यह बात संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान एसजीपीजीआई के एडीशनल प्रोफेसर एनेस्थीसिया व इमरजेंसी मेडिसिन विभाग डॉ संदीप साहू ने यहां इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की लखनऊ शाखा द्वारा आयोजित तीन दिवसीय सतत चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रम में दूसरे दिन कही। उन्होंने कहा कि दुर्घटना के चलते हर साल विश्व भर में 1.2 अरब मौतें होती हैं, हर एक मिनट में एक दुर्घटना और हर चार मिनट में दुर्घटना के कारण एक व्यक्ति की मौत होती है। दुर्घटना में मौतों में अग्रणी राज्य तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र के साथ ही उत्तर प्रदेश का पहला स्थान है, इन राज्यों में कुल मौतों में 52 फीसदी हुई हैं जबकि इनमें अकेले उत्तर प्रदेश में 15 प्रतिशत मौतें हुई हैं।
सहायता करने वाले को परेशान नहीं करेगी पुलिस
विश्व के सबसे बड़े ट्रॉमा सेन्टर मेरीलैन्ड विश्वविद्यालय अमेरिका से इमरजेंसी एवं ट्रॉमा में प्रशिक्षण लेने वाले डॉ संदीप नेे कहा कि भारत में दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा दो पहिया वाहन 23 प्रतिशत, कार 10 प्रतिशत, ट्रक 20 प्रतिशत है। उन्होंने बताया कि दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों की संख्या को आधा करने के लिए आवश्यक है कि सरकार द्वारा एक इमरजेंसी मेडिकल सिस्टम बनाया जाये। उन्होंने बताया कि दुर्घटनाओं से बचाव की जानकारी, अस्पताल के बाहर दुर्घटना के दौरान समय से दिया जाने वाला प्राथमिक उपचार व ज्यादा घायल मरीज का समय से सही अस्पताल भेजने के लिए एम्बुलेंस व प्रशिक्षित प्राविधिज्ञ ज्यादा से ज्यादा लोग घायल मरीजों की मदद करें, उनके पास जायें, एम्बुलेंस बुलायें व अस्पताल में भर्ती करायें। उन्होंने बताया कि इसके लिए 30 मार्च, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने गुड समेटेरियन नियम को आदेशित किया है कि घायलों की मदद करने वालों को पुलिस व अस्पताल प्रशासन परेशान न करे, न उनसे पैसे व नाम पता मांगे। उन पर कोई कानूनी कार्यवाही न की जाये। उन्होंने कहा कि जरूरत है लोगों को इस नियम के बारे में जागरूक किया जाये व प्रशासन इसे कड़ाई से लागू करे।
दुर्घटनाओं से बचाव ही सबसे अच्छा तरीका
उन्होंने बताया कि इमरजेंसी मेडिकल सिस्टम को बनाने के लिए सरकार, न्यायपालिका, ब्यूरोक्रेसी, एनजीओ व आम व्यक्तियों में समन्वय की जरूरत है जिससे हम अपनी जरूरतों व कमियों के हिसाब से मेडिकल सिस्टम बना सकें। उन्होंने बताया कि इस मेडिकल सिस्टम के चार मुख्य स्तम्भ हैं, पहला बचाव, दूसरा अस्पताल के बाहर होने वाली इमरजेंसी व दुर्घटनाओं का समय से उचित उपचार, तीसरा अस्पताल के अंदर बगैर जुगाड़, सिफारिश व बगैर किसी भेदभाव के सबको उचित उपचार व चौथा उपचार के उपरान्त रिहैबिलिटेशन जिसमें उसकी मानसिक, शारीरिक, आर्थिक व पारिवारिक समस्याओं का समुचित निवारण हो सके। उन्होंने कहा कि दुर्घटनाओं से बचाव ही सबसे अच्छा तरीका है इसके लिए चार चीजें आवश्यक हैं ये हैं शिक्षा, नियम व कानून का कड़ाई से पालन करना, सुरक्षित सडक़ व ट्रांसपोर्ट सिस्टम विकसित करना, सही लोगों को प्रोत्साहित करना व गलत लोगों को कड़ाई से दंड देना।
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प्रोस्टेट ग्रंथि में अतिवृद्धि व कैंसर की पहचान जरूरी
दूसरे दिन के सत्र में केजीएमयू के डॉ एचएस पाहवा ने प्रोस्टेट ग्लैंड में अतिवृद्धि और कैंसर के बारे में जानकारी देते हुए बताया इन दोनों रोगों के लक्षण, बार-बार पेशाब लगना, पतली धार से पेशाब होना, पेशाब में रुकावट होना, लगभग एक जैसे होते हैं इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि दोनों रोगों की पहचान के लिए ठीक से जांच करायी जायें। उन्होंने बताया कि दोनों रोगों का इलाज दवाओं से सम्भव है लेकिन आवश्यक है कि यदि कैंसर है तो फिर इसकी पहचान में देर न हो।
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रेफरल पॉलिसी की जरूरत
मेयो इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के चिकित्सा अधीक्षक व असिस्टेंट प्रोफेसर जनरल सर्जरी डॉ आरबी सिंह ने कहा कि अगर राजधानी लखनऊ की बात की जाये तो ट्रॉमा के केसेज के लिए केजीएमयू स्थित ट्रॉमा सेंटर नाकाफी है क्योंकि यहां पर लोड बहुत है। उन्होंने यह भी कहा कि दरअसल रेफरल पॉलिसी लागू न होने के कारण अन्य जगहों से हर तरह के मरीजों को बिना देखे भी रेफर कर दिया जाता है, ऐसे में होता यह है कि ज्यादा जरूरतमंद मरीज को कभी-कभी समय पर इलाज नहीं मिल पाता है।
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इंटर कोस्टल ड्रेनेज में सावधानी बरतें
वरिष्ठ कन्सल्टेंट डॉ मनोज कुमार अस्थाना ने इंटर कोस्टल ड्रेनेज के बारे में बताया। उन्होंने सावधानी पूर्वक जांच करने के बारे में उपस्थित चिकित्सकों को जानकारी दी। इस सिस्टम में दुर्घटना के बाद आवश्यकता पडऩे पर चेस्ट में ट्यूब डालकर खून, हवा, मवाद, पित्त निकाला जाता है। उन्होंने बताया कि दुर्घटना में घायल 25 फीसदी मरीजों में यह दिक्कत होती है। उन्होंने बताया कि पिछले दिनों दुर्घटना में घायल यूपी के एक बड़े नौकरशाह को भी यह इलाज देना पड़ा था।
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लिंग न खुले तो करें तीन साल तक इंतजार
केजीएमयू के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के प्रोफेसर डॉ जेडी रावत ने बच्चे के लिंग की आगे की त्वचा न खुलने के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यदि बच्चे के साथ ऐसी समस्या है तो तीन साल तक की उम्र तक किसी तरह का ऑपरेशन न करायें क्योंकि इसके अपने आप खुलने की संभावना तीन साल तक होती है। अगर तीन साल की उम्र तक भी न खुले तो चिकित्सक से सम्पर्क करें जहां इसे छोटा सा ऑपरेशन करके खोल दिया जाता है। उन्होंने बताया कि कुछ लोग जबरदस्ती खोलने का प्रयास करते हैं जो कि ठीक नहीं है, ऐसा करने से इमरजेंसी जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। उन्होंने बताया यदि किसी बच्चे के लिंग में पेशाब का छेद जगह पर न बना हो यानी नीचे या ऊपर की तरफ हो तो ऐसे बच्चे का खतना नहीं कराना चाहिये, उसे चिकित्सक को दिखाना चाहिये क्योंकि खतना में उसकी काटी जाने वाली त्वचा का इस्तेमाल सही जगह पर नली बनाने में किया जा सकता है।
इससे पूर्व दूसरे दिन के सत्र में आये हुए लोगों का स्वागत आईएमए लखनऊ के अध्यक्ष डॉ पीके गुप्ता ने किया। आज के कार्यक्रम में आईएमए के वरिष्ठ सदस्य डॉ पीआर दुआ, डॉ एएम खान, डॉ अमिताभ रावत, डॉ अवनीश कुमार और डॉ एमएल टंडन भी उपस्थित रहे।
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