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डॉ सूर्यकान्त 1983 से कर रहे रक्तदान लगातार, अब तक हो चुका सौ के पार

-रक्तदान से कमजोरी नहीं आती बल्कि होता है नई ऊर्जा का संचार

-रक्तदाता दिवस पर केजीएमयू में राज्यपाल ने किया सम्मानित

सेहत टाइम्स

लखनऊ। डॉ. सूर्यकान्त ने किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज, लखनऊ में वर्ष 1983 में एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया था और एमबीबीएस के छात्र रहते हुए ही उन्होंने रक्तदान करना शुरू कर दिया था। इसके साथ ही एमबीबीएस के अन्य छात्रों को भी रक्तदान के लिए प्रेरित किया।

वर्ष 1993 में जब डॉ. सूर्यकान्त उत्तर प्रदेश जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष बने तो उन्होंने किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के ब्लड बैंक में 12 जनवरी (स्वामी विवेकानंद जयंती) से 23 जनवरी (सुभाष चंद्र बोस जयंती) के मध्य रक्तदान शिविर का आयोजन करना प्रारंभ किया। रक्तदान कार्यक्रम में किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के छात्र एवं जूनियर डॉक्टर्स, लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र तथा अन्य डिग्री कॉलेजों एवं विद्यालयों के छात्र भी रक्तदान किया करते थे। डॉ. सूर्यकान्त अपने जीवन में अब तक 100 से अधिक बार रक्तदान कर चुके हैं तथा कई अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से लोगों को रक्तदान करने के लिए प्रेरित किया है। रक्तदान करने से व्यक्ति को कोई नुकसान नहीं होता है, बल्कि नई ऊर्जा का संचार होता है। लोग डरते हैं कि रक्तदान करेंगे तो कमजोरी आ जाएगी जबकि डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि शरीर में पाँच लीटर रक्त होता है जिसमें एक बार रक्तदान करने में सिर्फ एक तिहाई लीटर ही रक्त दान करना पड़ता है और यह रक्त एक सप्ताह के अंदर शरीर में नए रक्त के रूप में बन जाता है जो कि शरीर को ज्यादा ताकतवर और ऊर्जावान बनाता है। अतः रक्तदान से डरना बिल्कुल नहीं चाहिए।

डॉ. सूर्यकान्त जब जूनियर डॉक्टर थे तो वह रोगी के लिए रक्तदान करने जाते थे तो साथ में चार-पांच रोगी के परिजनों को भी साथ में ले जाते थे और उनको साथ खड़ा कर लेते थे और खुद रक्तदान करने के बाद तुरंत खड़े होकर उनसे कहते थे कि आपके रोगी के लिए मैंने रक्तदान कर दिया अब आपकी बारी है और जब परिजन देखते थे कि डॉ. सूर्यकान्त ने रक्तदान कर दिया है और उनको कोई कमजोरी थकान नहीं महसूस हो रही है, उनके सामने स्वस्थ खड़े हैं तो वह भी रक्तदान कर दिया करते थे। डॉ. सूर्यकान्त ने आज सभी चिकित्सकों और चिकित्सा छात्रों से अपील की कि वह भी ऐसा ही करें रोगी के परिजनों के साथ रक्तदान करें। इस तरह से उन्हें यह विश्वास पैदा होगा कि रक्तदान करने से कोई कमजोरी नहीं आती है।

ज्ञात हो कि हाल ही में पटना के मां ब्लड सेंटर में डॉ. सूर्यकान्त को रक्तदान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित किया गया एवं उनका अभिनंदन किया गया। मां ब्लड सेंटर पटना, बिहार का सबसे बड़ा ब्लड बैंक है, जहां पर जनता को ब्लड मिलता भी है और उनसे डोनेशन भी करवाया जाता है। डॉ. सूर्यकान्त ने किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में पहली स्वयंसेवी संस्था की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाते हुए 22 जून 1998 को इसकी नींव रखवाई थी। इस संस्था का नाम हरिओम सेवा केंद्र है। उसके बाद अन्य संस्थाएं जैसे धनवंतरि सेवा न्यास, ईश्वर चाइल्ड वेलफेयर फाउंडेशन, पयाम ऐ इंसानियत फोरम, रोटरी क्लब तथा अन्य संस्थाएं डॉ. सूर्यकान्त के माध्यम से केजीएमयू में रक्तदान शिविर का आयोजित करती हैं और बहुत से लोगों का जीवन बचाती हैं। डॉ. सूर्यकान्त के रक्तदान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए आज रक्तदाता दिवस 14 जून को उन्हें और उनकी संस्था धनवंतरि सेवा न्यास को केजीएमयू के सभागार में प्रदेश की राज्यपाल आनन्दीबेन पटेल, राज्य स्वास्थ्य चिकित्सा शिक्षा मंत्री मंयकेश्वर शरण सिंह तथा प्रमुख सचिव स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग पार्थ सारथी सेन शर्मा, एमडी एनएचएम डॉ. पिंकी जोवेल एवं केजीएमयू की कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानंद द्वारा सम्मानित किया गया।

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