–राज्य में एंडोक्राइनोलॉजी, किटिकल केयर जैसे कई विषयों में सुपर स्पेशियलिटी की एक भी सीट नहीं
-आईएमए के पूर्व अध्यक्ष ने कहा, नीट की टॉपर दूसरे राज्य में पढ़ने के लिए मजबूर
सेहत टाइम्स
लखनऊ/राजकोट। गुजरात में सबसे अधिक मधुमेह के मामले रिपोर्ट किए गए हैं। विश्व मधुमेह संघ के अनुसार भारत में लगभग चार करोड़ लोग डायबिटीज से ग्रस्त है इनमें से 8 से 10% लोग गुजरात से हैं। राज्य में डायबिटीज की स्थिति इतनी गंभीर होने के बावजूद गुजरात में डायबिटीज के मरीजों के इलाज करने के लिए सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर बनने के लिए डीएम एंडोक्राइनोलॉजी की एक भी सीट गुजरात के किसी भी मेडिकल कॉलेज में नहीं है। न सिर्फ एंडोक्राइनोलॉजी बल्कि रेह्यूमेटोलॉजी, मेडिकल जेनेटिक्स, क्लीनिकल हेमेटोलॉजी, इन्फेक्शियस डिजीज एवं क्रिटिकल केयर की भी डीएम सीट गुजरात में नहीं है। नतीजा यह है कि जहां इन विषयों में सुपर स्पेशियलिटी की पढ़ाई करने वालों को दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है, वहीं मेडिकल कॉलेज, अस्पतालों में इन रोगों से सम्बन्धित रोगियों को उच्च श्रेणी का उपचार नहीं मिल पाता है।
व्यवस्था की इस खामी की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए राजकोट के इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और गुजरात स्टेट पैथोलॉजिस्ट माइक्रोबायोलॉजिस्ट एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ राजेंद्र ललानी ने कहा कि गुजरात देश के विकसित राज्यों में पहले नंबर पर है, साथ ही गुजरात और केंद्र में एक ही सरकार होने के बावजूद राज्य में इन विधाओं की एक भी सीट मेडिकल कॉलेजों में न होना ताज्जुब और चिंता का विषय है।
गुजरात की टॉपर व ऑल इंडिया की 22वीं रैंक वाली डॉक्टर राज्य से बाहर जाने पर मजबूर
उन्होंने बताया कि सुपर स्पेशलिटी नीट में की परीक्षा में 1314 एमडी मेडिसिन डॉक्टर बैठे थे, इनमें डॉ पंक्ति ललानी ने एसएस नीट में गुजरात में प्रथम तथा ऑल इंडिया में 22वीं रैंक प्राप्त की है। डॉ पंक्ति डीएम एंडोक्राइनोलॉजी करना चाहती हैं लेकिन गुजरात में इसकी एक भी सीट न होने के कारण उन्हें मजबूरीवश बंगलुरु के मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लेना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में भी डीएम एंडोक्राइनोलॉजिस्ट 4 डीएनबी एंडोक्राइनोलॉजिस्ट 2 सीटें हैं, उड़ीसा और असम में भी डीएम एंडोक्राइनोलॉजिस्ट की चार-चार सीटें हैं लेकिन गुजरात जैसे राज्य में एक भी सीट ना होना अफसोस की बात है।
मधुमेह के मामले ज्यादा होने की वजह
उन्होंने बताया कि भारत में सबसे अधिक मधुमेह के मामले गुजरात में होने से गुजरात मधुमेह का केंद्र बन चुका है इसके कारणों के पीछे उन्होंने कहा कि गुजराती पैटर्न के भोजन में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बहुत ज्यादा होती है इसके अतिरिक्त दैनिक खाद्य पदार्थों में चीनी/गुड़ मिलाने की आदत, स्वस्थ जीवन शैली के महत्व के बारे में जागरूकता का अभाव, मोटापा, मधुमेह के लिए अनुवांशिक प्रवृत्ति के कारण राज्य में डायबिटीज के मरीजों की संख्या बहुत ज्यादा है।
डॉ ललानी ने मांग की कि सरकारी मेडिकल कॉलेज में एंडॉक्राइनोलॉजी विभाग खोले जाने चाहिए जिससे अधिक से अधिक लोग डायबिटीज की जांच करा कर उचित उपचार प्राप्त कर सकें। उन्होंने कहा कि एंडॉक्राइनोलॉजी का सुपर स्पेशलिटी इलाज उपलब्ध होने से डायबिटीज से ग्रस्त व्यक्ति का इलाज गुजरात में ही आसानी से करना संभव हो सकेगा। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार थायराइड, पिट्यूटरी ग्रंथि, हारमोंस का रोग जैसी बीमारियों का उपचार सरकारी सुविधा में उपलब्ध नहीं है, जिसकी वजह से रोगियों को दूसरे राज्यों के मेडिकल कॉलेज में जाना पड़ता है जिसमें काफी खर्च आता है। डॉ ललानी ने कहा कि सरकार एंडोक्राइनोलॉजी विभाग खोल कर और सरकारी अस्पतालों में योग्य एंडोक्राइनोलॉजिस्ट की भर्ती कर लोगों की इस कठिनाई को कम कर सकती है और उनके लिए सर्वोत्तम देखभाल प्रदान कर सकती है।