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होशियार चिकित्‍सक होने के बावजूद यदि कानूनी पहलुओं की जानकारी नहीं तो आप फंस सकते हैं

-संजय गांधी पीजीआई में पहली मई को आयोजित होने वाले सेमिनार में कोई भी चिकित्‍सक ले सकता है भाग

-हॉस्पिटल एडमिनिस्‍ट्रेशन विभाग आयोजित कर रहा नेशनल सेमिनार, पंजीकरण कराना आवश्‍यक

डॉ राजेश हर्षवर्धन

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। एक चिकित्‍सक को अपनी चिकित्‍सीय विधा के साथ ही यह भी जानने की आवश्‍यकता है कि मरीज के उपचार के समय, अस्‍पताल के संचालन के समय किन-किन कानूनी पहलुओं को ध्‍यान में रखना चाहिये क्‍योंकि कई बार ऐसा होता है कि जानकारी न होने के कारण चिकित्‍सक कानूनी पचड़ों में फंस जाते हैं, यानी मरीज सेवा उनके लिए मुसीबत बन जाती है। अनजाने में होने वाली गलती, जिसे करने की उसकी कोई मंशा नहीं थी, लेकिन हो जाती है, जिससे वे कानूनी दायरे में फंस जाते हैं। ऐसी ही महत्‍वपूर्ण जानकारियां चिकित्‍सकों को देने के लिए संजय गांधी पीजीआई में अस्‍पताल प्रबंधन विभाग द्वारा रीजनल चैप्‍टर एकेडमी ऑफ हॉस्पिटल एडमिनिस्‍ट्रेशन के संयुक्‍त तत्‍वावधान में आगामी 1 मई को राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी “Legal Aspects of Medical & Managerial Practice” (LAMP) का आयोजन किया जा रहा है। इस संगोष्‍ठी में कोई भी चिकित्‍सक भाग ले सकता है, इसके लिए उसे पंजीकरण कराना अनिवार्य है।

यह जानकारी देते हुए संगोष्‍ठी का आयोजन करने वाले एसजीपीजीआई के हॉस्पिटल एडमिनिस्‍ट्रेशन डिपार्टमेंट के विभागाध्‍यक्ष व रीजनल चैप्‍टर एकेडमी ऑफ हॉस्पिटल एडमिनिस्‍ट्रेशन के अध्‍यक्ष डॉ राजेश हर्षवर्धन ने बताया कि चिकित्‍सक को उसकी पढ़ाई के दौरान कहीं यह नहीं बताया जाता है कि उपचार के दौरान उन्‍हें किन-किन कानूनी पहलुओं को ध्‍यान में रखना है। उन्‍होंने बताया कि 1 मई को एक दिवसीय नेशनल सेमिनार का उद्देश्‍य कानूनी पहलुओं से चिकित्‍सकों को अवगत कराना है। उन्‍होंने बताया कि चिकित्‍सक चाहे वह सरकारी अस्‍पताल में कार्य करता हो या फि‍र निजी क्षेत्र में, अनेक ऐसे कानूनी पहलू हैं जिनके बारे में उसे जानना चाहिये। नये-नये कानून बने हैं, उनके बारे में जानना चाहिये।

डॉ हर्षवर्धन ने बताया कि कोई मरीज जब इमरजेंसी में पहुंचता है तो क्‍या-क्‍या औपचारिकताएं आवश्‍यक हैं, यदि पहले से मृत अवस्‍था में आया है तो क्‍या औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं, इलाज के दौरान मृत्‍यु होने पर क्‍या करना है, मरीज की चिकित्‍सा करने के लिए किन बातों में मरीज के परिजनों की सहमति लेनी आवश्‍यक है। उन्‍होंने बताया कि ऐसा भी होता है कि सर्जरी के पूर्व सहमति भी ले ली, लेकिन बाद में पता चला कि जिस बात की सहमति ली थी, बाद में उसे दूसरी बीमारी निकल आयी तो क्‍या करना होगा। उन्‍होंने बताया कि मान लीजिये एक स्‍पेशियलिस्‍ट अपने कार्य मे तो एक्‍सपर्ट है, बहुत अच्‍छा इलाज करता है लेकिन अगर उसे कानूनी पहलुओं की जानकारी नहीं है तो वह वह मुसीबत में फंस सकता है।

डॉ हर्षवर्धन ने कहा कि एक सरकारी चिकित्‍सक जिस दिन से सरकारी सेवा में आता है, उसकी जिम्‍मेदारी बहुत बढ़ जाती है, वह कई तरह के कानूनी पहलुओं में बंध जाता है, लेकिन इसके बारे में उसे कहीं सिखाया नहीं जाता है। उन्‍होंने कहा कि ऐसा तक होता है कि चिकित्‍सा के अतिरिक्‍त डॉक्‍टर को प्रशासनिक जिम्‍मेदारी भी सौंपी जाती है, जिसे वह निभाता है लेकिन उसे यह पता नहीं होता है कि उसे किन कानूनी पहलुओं को ध्‍यान में रखना है। यहां तक कि कोई घटना होने पर जब इन्‍क्‍वायरी कमेटी बैठती है उस कमेटी में भी डॉक्‍टर को रखा जाता है, ऐसे में अगर डॉक्‍टर को कानूनी पहलुओं की जानकारी नहीं होगी तो वह इन्‍क्‍वायरी कैसे कर पायेगा, उसे इसकी कहीं ट्रेनिंग तो दी नहीं जाती है।

डॉ हर्षवर्धन ने बताया कि इन्‍हीं सब पहलुओं पर जानकारी देने के लिए जज, सेक्रेटरी लॉ, एम्‍स दिल्‍ली, चंडीगढ़ पीजीआई जैसे संस्‍थानों के विशेषज्ञों को इस सेमिनार में स्‍पीकर के रूप में आमंत्रित किया गया है। ये विशेषज्ञ कानूनी पहलुओं की बारीकिया बतायेंगे जो निश्चित रूप से चिकित्‍सकों के लिए लाभकारी होगी।

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