-विश्व सेप्टीसीमिया दिवस पर 13 सितम्बर को केजीएमयू के पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर विभाग में सेप्सिस अपडेट-2023 का आयोजन
सेहत टाइम्स
लखनऊ। सेप्टीसीमिया यानी खून में संक्रमण के बढ़ते मामले चिंता बढ़ा रहे हैं, इसके कारणों में एंटीबायोटिक्स का बेवजह इस्तेमाल किया जाना एक बड़ा कारण है। भारत में एक वर्ष में लगभग 1 करोड़ 15 लाख लोग सेप्सिस से ग्रसित होते हैं एवं इससे लगभग 30 लाख लोगों की मृत्यु होती है। सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करने वाली इस बीमारी से सर्वाधिक प्रभावित बच्चे हो रहे हैं, प्रति वर्ष पांच वर्ष से कम आयु के 40 फीसदी बच्चे इसकी चपेट में आ जाते हैं। देखते ही देखते गंभीर होने वाली इस बीमारी में ऑर्गन फेल्योर का डर रहता है, यही वजह है कि आईसीयू में भर्ती होने वाले मरीजों में आधे मरीज सेप्टीसीमिया से ग्रस्त होते हैं, जिसमें 45 प्रतिशत मामले मल्टी ड्रग रेजिस्टेन्ट बैक्टीरिया के होते हैं, जो कि एंटीबायोटिक्स के अनावश्यक सेवन के चलते होती है।
इस महत्वपूर्ण विषय पर विश्व सेप्टीसीमिया दिवस (13 सितम्बर) पर केजीएमयू के पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर विभाग द्वारा एक कार्यक्रम सेप्सिस अपडेट 2023 आयोजित किया जा रहा है। इसके बारे में जानकारी देने के लिए आज विभाग द्वारा एक पत्रकार वार्ता का आयोजन किया गया। इस पत्रकार वार्ता में विभागाध्यक्ष प्रो वेद प्रकाश, पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो राजेन्द्र प्रसाद एवं यूरोलॉजी के डॉ अपुल गोयल ने सेप्टीसीमिया के बारे में विस्तार से जानकारी दी। डॉ वेद प्रकाश ने बताया कि सेप्टिसीमिया का अर्थ है- खून में संक्रमण। खून में संक्रमण की वजह से शरीर के विभिन्न अंगों में नुकसान होता है जिससे ब्लड प्रेशर में कमी, अंगों का निष्क्रिय होना (मल्टी ऑर्गन फेल्योर) हो सकता है। अगर सही समय पर इसकी पहचान एवं उपचार न किया जाये तो इससे मृत्यु भी हो सकती है।
डॉ वेद ने बताया कि पूरे विश्व में सेप्सिस के कारण प्रतिवर्ष लगभग 01 करोड 10 लाख लोगो की मृत्यु होती है। दुनिया भर में 5 में से 1 मृत्यु सेप्सिस से होती है एवं अस्पतालों में होने वाली मृत्यु में सबसे बड़ा कारण सेप्सिस है। सेप्सिस से सबसे ज्यादा मृत्यु बुजुर्ग एवं बच्चों में होती है। सेप्सिस के प्रमुख कारण है- निमोनिया, मूत्र मार्ग में संक्रमण, सर्जिकल साइट संक्रमण इत्यादि। उन्होंने बताया कि सेप्सिस का जोखिम कैंसर डायबिटीज आदि जैसी प्रतिरक्षा तंत्र कम करने वाली बीमारियों के ग्रसित लोगों में सबसे ज्यादा होता है।
सेप्सिस के कारणों की बात करें तो यह विभिन्न कारणों से होती है। इन कारणों में बैक्टीरिया, वायरस, फंगस, परजीवी संक्रमण और अस्पतालों से मिलने वाला संक्रमण है। इनसे फेफड़ों का संक्रमण (निमोनिया), पेशाब के रास्ते का संक्रमण (यूटीआई), त्वचा एवं अन्य अंगों का संक्रमण, फ्लू (इन्फ्लूएंजा), एचआईवी, कोविड, डेंगू वायरस, कैन्डिडा फंगस, एस्पराजिलस फंगस, मलेरिया आदि शामिल हैं।
डॉ वेद ने बताया कि एन्टीबायोटिक्स का सही तरह से इस्तेमाल न करना या बिना डाक्टरी सलाह के एन्टीबायोटिक्स का इस्तेमाल करना, सेप्सिस को बढ़ा सकता है। उन्होंने कहा कि आज जो स्थिति है, वह भयावह है, यदि ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन वही स्थिति आ जायेगी जो एंटीबायोटिक्स के अविष्कार से पूर्व थी, यानी संक्रमण पर काबू पाने वाली कोई दवा नहीं होगी, क्योंकि एंटीबायोटिक्स के अंधाधुंध और आधे-अधूरे इस्तेमाल से ड्रग रेजीस्टेंस की स्थिति पैदा हो रही है।
क्या होता है ड्रग रेजिस्टेंस
इसे और क्लियर करते हुए डॉ वेद ने कहा कि लोग छोटी-छोटी बातों जैसे जुकाम, दर्द जैसी दिक्कतें होने पर अपनी मर्जी से एंटीबायोटिक्स ले लेते हैं, इसमें वे दवा विक्रेता भी जिम्मेदार हैं जो बिना पर्चे के एंटीबायोटिक्स दे देते हैं। उन्होंने बताया कि यही नहीं लोग करते यह हैं कि एक दो टेबलेट खाने के बाद अगर थोड़ा फायदा हो गया तो दवा खाना छोड़ देते हैं, जबकि किसी भी एंटीबायोटिक्स की खाने अवधि चिकित्सक ही बैक्टीरिया का प्रकार देख कर तय करता है कि कितनी टेबलेट में वह बैक्टीरिया समाप्त हो जायेगा, जब आधा-अधूरा डोज मिलता है तो वह बैक्टीरिया पहले तो कमजोर पड़ता है लेकिन बाद में दवा का पूरा डोज न मिलने के कारण पुन: अपने को उस दवा के असर से बेअसर कर लेता है, यही स्थिति ड्रग रेजिस्टेंस कहलाती है।
डॉ वेद ने बताया कि सेप्सिस की बीमारी का पता लगाने के लिए विभिन्न प्रकार की खून की जाँचों जैसे (सीबीसी/सीआरपी/पीसीटी इत्यादि) एवं चिकित्सकीय परीक्षण करके इसका पता लगाया जा सकता है एवं बीमारी का सही तरह से आकलन करके उसका समय रहते समुचित इलाज दिया जा सकता है।
डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने बताया कि सेप्सिस के इलाज की बात करें तो अगर इसकी जल्दी पहचान कर ली जाये तो सटीक इलाज कर इसे नियंत्रित किया जा सकता है और समय रहते, मरीज की जान बचायी जा सकती है। उन्होंने बताया कि इसके इलाज के लिए ब्लड प्रेशर को नियमित रेंज में रखना आवश्यक है, इसके लिये कम बीपी को बढ़ाने की दवाओं के साथ-साथ, फ्ल्यूड का इस्तेमाल किया जाता है।
डॉ अपुल गोयल का कहना था कि विशेषज्ञ की मदद से एण्टीबायोटिक्स का सही एवं शीघ्र चुनाव एवं तथा उनका किस तरह इस्तेमाल किया जाना है, यह महत्वपूर्ण है। इसमें इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि डॉक्टर जब तक एंटीबायोटिक्स का कोर्स (खाने को) कहे तब तक अवश्य ही खाना जरूरी है। मरीज के वाइटल्स जैसे बीपी/पल्स/ऑक्सीजन तरह मॉनीटरिंग की जानी जरूरी है।