करें व्यायाम, पीयें ढाई लीटर पानी, हर बर्थडे पर करायें प्राथमिक जांचें
पांचवें एडवांस कोर्स इन न्यूट्रीशन एंड मेटाबोलिज्म के आयोजन पर विशेषज्ञों का जमावड़ा
लखनऊ। किडनी की बीमारी भारत में बहुत तेजी से बढ़ रही है लेकिन अफसोस यह है कि इसकी चिकित्सा और इससे बचाव के लिए सरकार के स्तर पर अन्य बीमारियों की अपेक्षा बहुत कम इंतजाम हैं। किडनी की बीमारी से बचने के लिए आवश्यक है कि हम अपने खानपान पर ध्यान दें। किडनी की बीमारी गरीबों को ज्यादा होती है क्योंकि इसका सीधा सम्बन्ध कुपोषण से है। गरीब महिलाएं जब गर्भवती होती हैं, उस समय उनकी खुराक जब पोषण से रहित होती है तब गर्भ में पल रहे बच्चे पर इसका असर पड़ता है और इसका नतीजा यह होता है कि जब बच्चा करीब 15 वर्ष का हो जाता है तो किडनी की बीमारी उसे अपनी चपेट में ले लेती है। आंकड़ों के अनुसार 33 फीसदी बच्चों में पोषण की कमी होती है।
पांचवें एडवांस कोर्स इन न्यूट्रीशन एंड मेटाबोलिज्म में चिकित्सकों ने पत्रकारों को अनेक जानकारियां दीं। इन चिकित्सकों में डॉ अमित गुप्ता, डॉ प्रतिम सेन गुप्ता, डॉ अनीता सक्सेना, डॉ नारायण प्रसाद, डॉ रवि कुशवाहा, डॉ मानस बेहरा शामिल थे। डॉ अमित गुप्ता ने बताया कि किडनी रोगों से बचाव के लिए खानपान पर विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिये। इसके लिए व्यायाम करें, ज्यादा नमक न खायें, पानी प्रचुर मात्रा में (ढाई लीटर) पीयें, छोटी-छोटी बातों में पेनकिलर और एंटीबायटिक न लें, जीवन शैली पर ध्यान दें, धूम्रपान न करें, ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर पर कंट्रोल रखें।
जूस नहीं पीयें, फल खायें
विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि फलों का जूस पीने के बजाय सीधे फल खायें जिससे फाइबर की कमी न हो। आम, पपीता, आंवला खाने की सलाह दी गयी। डॉ प्रतिम सेन गुप्ता ने बताया कि हमारे देश में किडनी रोगों पर सरकार का उतना ध्यान नहीं है जितना होना चाहिये क्योंकि सबसे तेजी से किडनी के रोग बढ़ रहे हैं। इसके गवाह ये आंकड़े हैं इसके अनुसार प्रति वर्ष देश में 8000 किडनी ट्रांसप्लांट होते हैं जबकि 8000 ही पानी वाली डायलिसिस और डेढ़ लाख हीमोडायलिसिस होती हैं।
पानी में हेवी मेटल्स देते हैं किडनी रोग
भारत में किडनी की बीमारियां होने के कारणों के बारे में बताते हुए चिकित्सकों ने कहा कि जहां पानी में हेवी मेटल, कैडमियम, मरकरी, आर्सेनिक आता है, वहां के लोगों को किडनी की बीमारी होने का खतरा रहता है। इसी प्रकार किसानों में भी यह बीमारी प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। इसकी वजह है कि किसान लगातार घंटों खेतों में काम करता रहता है, जिससे उसके शरीर से पानी की कमी होती रहती है लेकिन उसकी पूर्ति के लिए वह पानी नहीं पी पाता है। धीरे-धीरे यह स्थिति बढ़ती जाती है और वह किडनी रोग का शिकार हो जाता है।
कांवड़ियों को होता है खतरा
इसी प्रकार जब कांवडि़ये निकलते हैं तो वे लगातार चलते रहते हैं, वह भी प्यासे रहकर, लगातार भूखे-प्यासे चलते रहने से शरीर पर मेहनत पड़ती है, ऐसे में मसल्स डैमेज हो जाती हैं और खून में मिल जाती हैं। यही खून जब किडनी में पहुंचता है तो वह किडनी को डैमेज कर देता है। कांवड़़ यात्रा के दिनों में कई कांवड़िये इसका शिकार हो जाते है। इसी प्रकार देखा गया है कि सुपारी से किडनी में फाइब्रोसिस हो जाती है, कमरक खाने से भी किडनी को नुकसान पहुंचता है।
चिकित्सकों ने सलाह दी कि किडनी रोगों से बचाव ही सबसे अच्छा रास्ता है। इसके लिए स्वस्थ व्यक्ति को भी 30 वर्ष की आयु के बाद हर जन्मदिन पर किडनी के रूटीन टेस्ट कराते रहना चाहिये। इनमें यूरीन रुटीन, सीरम क्रिटेनाइन तथा ब्लड प्रेशर जांच आवश्यक है।